अनुरागी चित्त ही जाने
अनुरागी चित्त की गति
श्रृंगारित स्नेहित स्पंदन
मंद-मंद मद-मत्त मति
ऊब उदधि नैनों से उद्गत
ॠतंभरा की ॠणि उदासी
मख-वेदी में मन का मरम
हिय बीच हिलग प्यासी
सोन चिरैया सुख सपना
विकट विदाही विकलता
कली से कमलिनी का क्लेश
क्षण-क्षण क्षत हो छलकता
रस रसिकों को ज्ञात कहाँ
कि रचना रक्त से रचती है
चिर-वियोगी चित्त की चिंता
प्रघोर पीड़ाओं से गुजरती है .
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
अनुप्रास की अनुपम छटा है। वियोगी ही था पहला कवि।अभी सूत्र नही बदला।
ReplyDeleteवाह ,बेहतरीन🌻
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह!गज़ब का सृजन आदरणीया दी।
ReplyDeleteरस रसिकों को ज्ञात कहाँ
कि रचना रक्त से रचती है
चिर-वियोगी चित्त की चिंता
प्रघोर पीड़ाओं से गुजरत है..मन को छू गई रचना।
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
संवेदना और सौंदर्य..दोनो की सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteअप्रतिम रचना..
ReplyDeleteसच जिसपर गुजरती हैं वही जानता है
ReplyDeleteविशुद्ध हिंंदी की उत्कृष्ट रचना...वाह अमृता जी
ReplyDelete‘जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति-सी छायी.दुर्दिन में आँसू बनकर वह आज बरसने आयी’
ReplyDeleteकाव्य का सृजन सम्भवतः ऐसे ही होता है
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अमृता दी।
ReplyDeleteऊब उदधि नैनों से उद्गत
ReplyDeleteॠतंभरा की ॠणि उदासी
मख-वेदी में मन का मरम
हिय बीच हिलग प्यासी....
बहुत ही सुंदर व प्रभावशाली शब्द संयोजन।
अनुराग-रस व्यथित अनुरागिनी के क्लेश-कलश में गिर कर पीड़ा की ध्वनि करता है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
बहुत ही बढ़िया है नमन शुभप्रभात
ReplyDeleteआपके लेखन की सकारात्मकता और आशावादिता का मैं क़ायल हूँ
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