वक़्त-बे-वक़्त
मेरी आतंरिक आवश्यकताएँ
करने लगती है
सुरसा से प्रतिस्पर्धा.....
चतुर-बहवे की चतुराई को भी
सूक्ष्मता से शिकस्त देते हुए...
सोने की लंका की क्या बिसात
आकाश-महल बनाने की
जिद लिए हुए ...............
देखते-ही-देखते
मेरी महत्वाकांक्षा
पिरामिड का शक्ल
लेने लगती हैं............
आधार इतना बड़ा कि
उसकी संतति भी
रह सके सदियों तक........
लेकिन ऊपरी छोर
इतना नुकीला कि
वो भी टिक न पाए ............
और मैं स्फिंक्स बन
करती रहती हूँ रखवाली
कहीं मेरे ममी पर ही
ये खड़ी न हो जाए.
चतुर-बहवे ---हनुमान
अमृता जी,
ReplyDeleteसुन्दर लगी पोस्ट......महत्वकांक्षा पिरामिड की शक्ल लेने लगती है........बहुत सुन्दर बिम्ब दिया है आपने......पर मैं इस शब्द का अर्थ नहीं समझ पाया जी.....
स्फिंक्स - ?????????
सार्थक और भावप्रवण रचना।
ReplyDelete'और मैं स्फिंक्स बन
ReplyDeleteकरती रहती हूँ रखवाली
कहीं मेरे ममी पर ही
ये कड़ी न हो जाये .'
भावपूर्ण सार्थक चित्रण
amrita ji aapne bahut badhiyaa likha hai
ReplyDeleteबहुत सारे बिंबों के द्वारा अंतर्मन की गहराई को शब्द देती भावपूर्ण कविता के लिये बधाई !
ReplyDeletekhubsurat bimb...........sfinks...:)
ReplyDeleteजो बिम्ब आपने कविता में गढ़ा है ...वो तो ठीक है लेकिन अर्थ स्पष्टता का अभाव लगता है ...खैर व्यक्ति की जिजीविषा और इच्छाओं को अभिव्यक्ति मिली है ...आपका शुक्रिया
ReplyDeleteलेकिन उपरी छोड़ की जगह "छोर" उचित रहेगा
बहुत सुंदर सार्थक रचना -
ReplyDeleteबधाई
very nice Amrita ji, You can view my latest blog post at http://utkarsh-meyar.blogspot.com/
ReplyDeletethik kah sakta hu. lekin jyada kuch samajh me nahi aaya.
ReplyDeleteपहले तो मुझे स्फिंक्स का मतलब समझना पड़ा था :P
ReplyDeleteबहुत बहुत अच्छी लगी ये कविता :)
जो लोग स्फिंक्स का मतलब नहीं समझ पाए, उनके लिए उपयोगी होगा - http://en.wikipedia.org/wiki/Sphinx :)
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुन्दर बिम्ब तराशें हैं आपने.
शुभ कामनाएं.
अनूठे बिम्बों का प्रयोग। कविता के मंतव्य तक उतरने के लिये जेहन के कस-बल कुछ ढीले करने पड़े। उम्दा अभिव्यक्ति।
ReplyDeletesuesa aur hanuman ko kendra me rakhkar achchhaa likha...
ReplyDeleteपिरामिड का आकर..... बेमिसाल बिम्ब लिया है....खूबसूरत है यह अंतर्मन का द्वन्द .....
ReplyDeleteसही कहा आंतरिक आवश्यकताएं ही महत्वकांक्षा को जन्म देती है ..जिसको पूरा करते-करते आदमी स्फिंक्स बन जाता है....सार्थक रचना ..आभार
ReplyDeleteभावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबिम्ब और प्रतीकों का उत्तम प्रयोग। ऐसी रचनाएं कम ही मिलती हैं। बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग। सारी रचनाएं समय से पढूंगा।
ReplyDeleteकविता का बिम्ब विधान अनूठा है।
ReplyDeleteइस श्रेष्ठ रचना के लिए बधाई।
manviya antardwandh kee bhavpurn prastuti...
ReplyDeletesaarthak prastuti ke liye haardik shubhkamnayen!
kalpana ki sundar abhivyakti
ReplyDeleteGreat poem. deep emotions.
ReplyDeleteअपने इस कविता में प्रतीक और बिम्बों का बड़ी खूबसूरती से इस्तेमाल किया है.बहुत अच्छी है कविता वाक़ई
ReplyDeleteमहत्वाकांक्षा को स्फिंक्स के बिंब के साथ खूबसूरती से चित्रित किया गया है. सुंदर रचना और बिंब विधान.
ReplyDeleteअमृता जी, बहुत सुंदर हैं आपके विचार। बधाई।
ReplyDelete---------
शिकार: कहानी और संभावनाएं।
ज्योतिर्विज्ञान: दिल बहलाने का विज्ञान।
bhavpurn abhivykti samajhne men men kuchh samay laga achhi rachna , badhai
ReplyDeleteufffff....kya soch hai aapki amrita ji....behad khoobsurat.....amazing ! sphinx....!!! what were u thinking ;)
ReplyDeletebohot bohot hi acchi nazm :)
रचना में लाज़वाब विम्ब उकेरे हैं..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..
ReplyDeleteइस रचना में नये बिम्वों का प्रयोग आपने बहुत सुन्दरता से किया है!
ReplyDeleteअच्छी कल्पना शक्ति पायी है आपने ! सफल रहेंगी ! हार्दिक शुभकामनायें आपको !
ReplyDelete...ambition should be limited...very good...
ReplyDeleteक्षमा कीजियेगा आपके ब्लॉग पर पहुँचने में देर हुई...बहुत जबरदस्त रचना है आपकी...आपकी लेखन क्षमता विलक्षण है...
ReplyDeleteनीरज
अद्भुत कल्नाशक्ति व बिंब के नवप्रयोग के साथ शानदार अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना ..गज़ब की कल्पना ..
ReplyDeleteमाया, महा ठगिनी ...
ReplyDeleteमहत्वाकांक्षा के पिरामिड हर घर में मिलते हैं । बहुत प्रभावशाली लेखन !शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteAntarik aawashyaktaon ka sursa roopi astitwa hi hamein kayi shaklon mein khud ko pratirupit karne ko vivash karta hai....jo iss par kaboo paa leta hai wo jee jata hai manav roop mein..
ReplyDeleteAapke vicharon i paripakwata mujhe mazboor kar rahi ki main aapki saari rachnaon ko padhun...karya kshetra ki masroofiat aur likhne/chitrit karne ka shauk samay abhav ka bara karan ban jaata hai...par padhunga zaroor aur apne vicharon se awagat bhi karaunga..
Aapko shatsah dhanyavaad meri rachnadharmita ko sarahne ke liye...
बिलकुल ऐसा ही होता है ... वक़्त बेवक्त ..
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