निजता के आधार पर
निहायत गुप्त बातों में
बेईमानी का दिखना
प्रायः नगण्य होता है .......
पर मैं तो देखती रहती हूँ
स्वहित के मामले में
वह कैसे फन उठाती है
और मैं कितनी चालाकी से
उसकी फुफकार को
हुकुम मानते हुए उसे
दूध-लावा चढ़ाती हूँ ...........
भले ही आंतरिक रूप से कायर
पर बाह्यरूप से मैं ठहरी
अहिंसा की पुजारी
फन कुचलने से बेहतर
यही है कि उसकी
सारी सुख-सुविधा का
भरपूर ख्याल रखते हुए
अपना जंगल-राज दे दूँ ....
ताकि वह सार्वजानिक रूप से
विद्रोह न कर दे........
जिसको दबाने में कहीं
मेरी ईमानदारी की
कलई न खुल जाए .
निहायत गुप्त बातों में
बेईमानी का दिखना
प्रायः नगण्य होता है .......
पर मैं तो देखती रहती हूँ
स्वहित के मामले में
वह कैसे फन उठाती है
और मैं कितनी चालाकी से
उसकी फुफकार को
हुकुम मानते हुए उसे
दूध-लावा चढ़ाती हूँ ...........
भले ही आंतरिक रूप से कायर
पर बाह्यरूप से मैं ठहरी
अहिंसा की पुजारी
फन कुचलने से बेहतर
यही है कि उसकी
सारी सुख-सुविधा का
भरपूर ख्याल रखते हुए
अपना जंगल-राज दे दूँ ....
ताकि वह सार्वजानिक रूप से
विद्रोह न कर दे........
जिसको दबाने में कहीं
मेरी ईमानदारी की
कलई न खुल जाए .
किसी की कमज़ोरी को अपना बना कर दूसरे को कुछ समझा देना बहुत मानवीय तरीका है. अच्छी शैली में अच्छी रचना.
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता.
ReplyDeleteसादर
Sundar satik rachna......manviye kamjorion ko mahini se ubhara hai....
ReplyDeletevery nice
ReplyDeletefrom
TANURAJ
एक समस्या का नया हल और अपनी सोंच के सार्बजनिक होने का डर अच्छे विषय को उकेरा है आपने, बधाई
ReplyDeleteबहुत सटीक प्रस्तुति...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआंतरिक रूप से कायर बाह्य रूप से अहिंसा के पुजारी...!
ReplyDelete..खूब कलई खोली है आपने।
बहुत ख़ूबसूरती से कलई खोली है आपने अंतर मन की.
ReplyDeleteअंतर द्वंदों से हर कवि हृदय जूझता है.
आपकी खूबसूरत कृति को सलाम.
बढ़िया सोच वाली बहुत बढ़िया रचना.
ReplyDelete"कलई" ने अच्छी कलई खोल दी है.
ReplyDeleteसुन्दर लिखा है.
मन के द्वंद्वों को प्रकट करती एक मनोवैज्ञानिक कविता !
ReplyDeleteसार्थक और अर्थपूर्ण भाव....सच की बानगी कविता
ReplyDeleteहम सभी एक दूसरे से अपनी मन की बाते छिपाते हैं , दोनों पक्ष ही अगर ईमानदार न हों तब क्या शिकायत , कहीं तो ईमानदारी होनी चाहिए ! इस रचना में अभिव्यक्ति स्पष्ट है मगर मगर नफ़रत पूरे स्वरुप में झलकती है :-(
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !!
शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteवाह.....काफी गहरा मनोविज्ञान दिखा इस पोस्ट में......सच है ......बहुत ही अजीबोगरीब होता है ये सच ...........प्रशंसनीय |
आपकी रचनाओं में विषय और शिल्प का नयापन ही आपकी अभिव्यक्ति को हर बार विशिष्ट बनाता है। बहुत तीखा व्यंग दोहरे मापदंड और दोहरी मानसिकता पर…।
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना।
व्यक्ति के भीतर का द्वंद्व और उसकी कलई खुलने का डर भी एक द्वंद्व है ..बहुत बेहतरीन ढंग से उकेरा है भावों को
ReplyDeleteये तो बहुतों की बात है :(
ReplyDeleteएकदम सही बात!
ReplyDeleteohhh....itni hindi...! zara dheere dheere padhni padegi...:)
ReplyDeletepar kya khoob baat kahi hai....true!
aapkiye rachna mujhe bahut pasand aayi hai ...antarman aur baahyaman ke vishay par aapne bahut acchi rachna likhi hai ..
ReplyDeletebadhayi ..
aappki imaandaari ki kali nahi khulegi....
ReplyDeleteachhi rachna.........
manovaigyanik rachna .... bahut hi prashansniye
ReplyDeleteआपकी शैली विचार और प्रस्तुतीकरण अद्भुत है...लेखन की परिपक्वता ने मन मोह लिया...बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteनीरज
very nice amrita ji.thoughtful and progressive reply for the sake of self defense mechanism. great.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना ... आपमें बहुत प्रतिभा है ... निश्चय ही आप एक दिन बहुत नाम करेगी ...
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ उच्च स्तर की होती हैं ... पढकर अच्छा लगता है ...
बिम्बों का अद्भुत प्रयोग। रचना और आपकी सोच ने मन मोह लिया।
ReplyDeleteAmrita, bahut bari baat bare hi aasaan dhang se kah di aapne...Apni nijta ke vyamoh mein sawrth ka sarp jab fufkarta hai to vyakti apne ko achetan awastha me jan boojh kar le jata hai taki uska utara hua kenchul bhi dawa ka kaam kar de jarrorat parne par.
ReplyDeleteAapke paripakwa lekhan aur shabdon ke chitran se main prabhavit hun...Ummeed hai hamein aisi shashakt rachnayen padhne ka mauka milta rahega..Meri sarahna kar aapne barappan ka prichay diya.Main to bas yun hi likhta hun...taki khud ko zinda rakh sakun.,Ummed hai sambhashan jari rahega.
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत करते सुखद अनुभूति हो रही है। कुछ कवयित्रियां अपने दुख से तमाम ब्लॉगरों का मूड ऑफ कर रही हैं। आपसे सम्यकता की उम्मीद है।
ReplyDeleteअमृता जी आपकी कविताएं लाजवाब हैं बधाई और शुभकामनाएं |हमेशा इसी तरह सुंदर लिखते रहिये |
ReplyDeleteबहुत उम्दा सोच एवं रचना.
ReplyDeleteदिन मैं सूरज गायब हो सकता है
ReplyDeleteरोशनी नही
दिल टू सटकता है
दोस्ती नही
आप टिप्पणी करना भूल सकते हो
हम नही
हम से टॉस कोई भी जीत सकता है
पर मैच नही
चक दे इंडिया हम ही जीत गए
भारत के विश्व चैम्पियन बनने पर आप सबको ढेरों बधाइयाँ और आपको एवं आपके परिवार को हिंदी नया साल(नवसंवत्सर२०६८ )की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!
आपका स्वागत है
"गौ ह्त्या के चंद कारण और हमारे जीवन में भूमिका!"
और
121 करोड़ हिंदुस्तानियों का सपना पूरा हो गया
संदेश जरुर दे!
कविताएं लाजवाब हैं|
ReplyDeleteनवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ|
man ka vishleshan karti kavita
ReplyDeletekavita-kaarn
बहुत अच्छी रचना ..अच्छा विश्लेषण किया है
ReplyDeleteYun hi aapke blog par roz aane ki aadat hoti ja rahi....kabhi kuch likhta hun aur kabhi gadhta bhi hun...iss gadhe ungadhe rango ki aur shabdon ki daur bhaag mein aapka lekhan tora sukoon deta hai...
ReplyDeletebolti tasveerein meri ungliyon ki bhasha hain....jo maun ho mukhar uthti hain...samay ho to us par bhi apne mantavya jarur den taki hamara krititwa thora anoop ho jaaye.
जंगल राज देने से ही कलई ..जरुर खुलती है ! राम राज्य देना उचित होगा ! जैसे की स्वर्ण दुसरे धातुओ से मिलता है !
ReplyDeleteआत्मचिंतन को मजबूर करती है आपकी रचना .....
ReplyDeleteआज का सत्य ... कड़ुवा सच ...
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteकविता ने मन पर गहरा प्रभाव अंकित किया है।
बहुत सुन्दर कविता...खूबसूरत भाव...बधाई.
ReplyDelete____________________
'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
फन कुचलने से बेहतर है कि
ReplyDeleteउसकी सारी सुविधा का ख्याल रखते हुए अपना जंगलराज उसे देदूं..
ले मर!!
वेरी गुड बहुत अच्छे।।
सारी सुख-सुविधा का
ReplyDeleteभरपूर ख्याल रखते हुए
अपना जंगल-राज दे दूँ ....
ताकि वह सार्वजानिक रूप से
विद्रोह न कर दे........
अमृता आपका लेखन प्रभाशाली है। आपसा दोस्त जरूरी है इस सफर में --
भ्रष्टाचार के बारे में इतनी खूबसूरत कविता पढ़ कर बहुत अच्छा लगा | अपनी गलतियों को छुपाने के लिए हम क्या नहीं करते हैं | आप ने बहुत अच्छा लिखा है |
ReplyDeleteऔर मई कितनी चालाकी से उसकी फुफकार को फेन को दूध और लावा चढ़ती आप ने गजब की कलाई खोली अमृता जी सुन्दर रचनाएँ सुन्दर ब्लॉग हमें भी आप का समर्थन और सुझाव की उम्मीद रहेगी
ReplyDeleteसुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
सार्थक विश्लेषण !
ReplyDeleteशायद हम सबको ये करना चाहिए...
इंसान के मन में सब तरह की भावनाएं उठती हैं..
किस भावना को कितना महत्त्व देना है, यह हमारे ऊपर निर्भर करता है..और हम खुद का जितना अच्छा विश्लेषण कर सकते हैं,उतना दूसरे नहीं !
ये अलग बात है कि हम करते नहीं हैं.......!!
बहुत-बहुत धन्यवाद !!
शायद यह अंतर्द्वन्द की अंतर्कथा है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
आदरणीया अमृता तन्मय जी
ReplyDeleteसस्नेहाभिवादन !
अच्छी रचना है …
जीवन में हम सबको कितने समझौते करने पड़ते हैं …
अंतर्द्वंद्व की सुंदर शिष्ट अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद !
~*~आपके ब्लॉग का एक वर्ष पूर्ण होने पर बधाई !~*~
नवरात्रि की शुभकामनाएं !
साथ ही…
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ati sundar...!!
ReplyDeleteगीता में कृष्ण भी एक जगहं यही कहते हैं -अपनी आत्मा को क्लेश में डालने जैसा कुछ मत करो-इस लिहाज से तो यह अभिव्यक्ति बिल्कुल दुरुस्त है :)
ReplyDeleteनिजता के आधार पर
ReplyDeleteनिहायत गुप्त बातों में
बेईमानी का दिखना
प्रायः नगण्य होता है .......
पर मैं तो देखती रहती हूँ
स्वहित के मामले में
वह कैसे फन उठाती है
और मैं कितनी चालाकी से
उसकी फुफकार को
हुकुम मानते हुए उसे
दूध-लावा चढ़ाती हूँ ...........
बहुत सुंदर कविता अमृता जी बधाई |
व्यक्ति अंतर्विरोधों के साथ ही वह जीता है. कलई खुलना महत्वपूर्ण नहीं है. महत्वपूर्ण है कि क्या हम अपने अंतर्विरोधों से संतुष्ट हैं?
ReplyDeleteये भी बेहतरीन!
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