पंचजन्य तो
फूँक दिया है मैंने
हुँकार अभी बाकी है....
मंजिल तो
दिख ही रही है
पहुँचना अभी बाकी है ...
दूरी तो
तय कर ली है हमने
हाथ का फासला बाकी है ...
रास्ते तो
फूलों से भरे है
कांटा चुनना अभी बाकी है ...
कदम तो
डगमगा रहे हैं पर
उन्हें घसीटना बाकी है ....
यह तो
प्रमाणित सत्य है
पर निर्विवाद होना बाकी है ..
हाँ!
हस्ताक्षर तो
कर दिये है मैंने और
मुहर लगनी अभी बाकी है....
बड़ी बड़ी बातें आसान हैं प्रायः छोटी -छोटी बातों को समझाना ही मुश्किल का काम है ...!!
ReplyDeleteसुंदर कविता.
bahut khoob Amrita..Panchjanya ka udghosh kuch farak to laayega hi...aur agar hastakshar kar hi diya gaya to for muhar lagana mushkil nahi...
ReplyDeletevicharotejjak kavya rachna ke liye samarpit aapko badhayee.han kuch chitra,kuch kavya aur ek article likh chhora hai...aap ko samay mile to mantavya dijiyega...mujhe accha lagega...
अमृता जी आप बहुत सुंदर लिखती हैं आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |मोब० 09415898913
ReplyDeleteबहुत गहन सोच..बहुत समसामयिक और सार्थक रचना..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति लिए.....एक प्रासंगिक रचना .....बहुत सुंदर
ReplyDeletekafi gahri abhivyakti
ReplyDeleteबहुत गहन बात ...सुन्दर रचना
ReplyDeleteयकीनन हस्ताक्षर जब है तो मुहर भी लगेगी ही.
ReplyDeletemanjil to dikh hi rahi hai,pahuchna abhi baaki hai... bhut khubsurat pabktiya hai dil ko chu lene vali...
ReplyDeleteबहुत ही गहन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसंघर्ष तो है पर
उम्मीद अभी बाकी है,
हस्ताक्षर तो कर दिए हैं,
मुहर अभी बाकी है.
बहुत सुन्दर रचना ! ये फासले भी जल्दी तय हो जायें और हस्ताक्षर के ऊपर मोहर लगाने की प्रक्रिया भी जल्दी ही समाप्त हो जाये यही कामना करती हूँ ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeletebahut khoob..sarthak chintan aur sarthak srijan ke liye abhivadan sweekar karen..
ReplyDeleteअमृता जी पटना से मेरा काफी लगाव रहा है | आपकी लेखनी काबिलेतारीफ है |
ReplyDeleteबहुत खूब संभव हो तो मेरा फलोवर अवश्य बने | धन्यवाद |
www.akashsingh307.blogspot.com
अमृता जी आप बहुत सुंदर लिखती हैं आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteकुछ न कुछ शेष रह जाता है हर बार तभी तो हम लौटते हैं...पूरा करने की आस हमें पुनः खींच लाती है...
ReplyDelete...सुन्दर रचना
ReplyDeletebahut sunrata se aapne jo is rachna ko parstut kia hai kabile tarif hai...abhi muhar lagna baki hai bahut sundar lain...badhai...
ReplyDeleteसामयिक रचना!
ReplyDeleteरास्ते तो फूलों से भरे हैं -पर काँटा चुनना अभी बाकि है सुन्दर सार्थक रचना -बधाई हो -अमृता तन्मय जी हार्दिक स्वागत है आप का हमारे ब्लॉग पर -प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद- हम आप के सुझाव व् समर्थन की भी आस लगाये हैं
ReplyDeleteसुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
वाह :) सच!! :)
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteरचना ने हर कदम को प्रसंगों से जोड़ा है........
हस्ताक्षर और मुहर के अंतर के भी स्पष्ट किया है वैसे आजकल हम लोग तो "सिस्टम जनरेटेड डॉक्यूमेन्ट डॅजंट रिक्वायर सिग्नेचर" के आदी हो चुके हैं। निन्यानवे और सौ फीसदी के अंतर को समझाते हुए कुछ भूली-बिसरी यादों को बुहारती हुई कविता......
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
..बहुत खूब।
ReplyDeleteअन्ना जी के संदर्भ में यह कविता सटीक है।
ReplyDeleteमानसून सेशन में बिल पेश हो जायेगा और मुहर भी लग जायेगी.अब देखना है की उसके बाद क्या होता है.
ReplyDeleteहस्ताक्षर हो गया तो मुहर भी लग जाएगा।अन्ना जी के बारे में कविता रोचक लगी।धन्यवाद।
ReplyDeletesamsamayik rachna sundar abhivyakti badhai
ReplyDeleteबहुत अच्छी और प्रासंगिक कविता ! आपकी कविता भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध, रविवार को अन्ना हजारे जी के आमरण अनशन की समाप्ति और उनके वक्तव्य पर सटीक बैठती है | सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteशानदार....खुबसूरत....खुद पर यकीन और हौसला हो तो जो बाकी है वो भी बहुत जल्द पूरा हो जायेगा .......प्रशंसनीय पोस्ट |
क़दम तो डगमगा रहे हैं
ReplyDeleteपर
उन्हें घसीटना अभी बाक़ी है ...
काव्य ,
फिर भी प्रभावित करता है
अभिवादन .
सुंदर भावों से भरी रचना.
ReplyDeletekhub sundar aur logically fit
ReplyDeleteयही तो विडम्बना है कि आज का सत्य विवादों में घेरे में आ जाता है और मुल्ज़िम बरी हो जाता है :( सुंदर कविता॥
ReplyDeleteशुभकामनायें !
ReplyDeleteअमृता जी… !
ReplyDeleteशुरुआत से जुड़ी अपेक्षाओं और अंत तक पहुँचने के यथार्थ के बीच के अन्तर को बताती बहुत उम्दा रचना। बधाई।
हाँ पर दो-एक जगह शब्द चयन बेह्तर करने की गुँजाईश दिखती है और कुछ वर्तनी-दोष जैसे 'हस्ताक्षर कर "दी" है मैने… मुहर "लगना" बाकी है'…"दी" की जगह "दिये हैं" और "लगना" की जगह "लगनी" होना बेह्तर होता … शेष तो आप स्वयँ समर्थ हैं।
नमन
नए शिल्प और बोध की अनुपम रचना -शुभस्य शीघ्रम! जब मंजिल इतना करीब हो तब इतना विचार मंथन क्यों ? निर्विवाद तो पुरुषोत्तम राम और मां सीता भी नहीं रह पायीं! पांचजन्य कर लीजिये !
ReplyDeleteअमृता तन्मय जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
रास्ते तो
फूलों से भरे हैं
कांटा चुनना अभी बाकी है …
अच्छा है , इसके बाद जो कुछ मिलेगा निराशा नहीं होगी …
वैचारिक बिखराव सिमट जाए बस ………
* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut sunder rachna .........
ReplyDeleteएक सहज और शिल्प में अद्भुत कथ्य को पेश करती यह रचना दिल और दिमाग दोनों को सकुन देती है।
ReplyDeleteati sundar, jaki rahi bhawna jaisi,prabhu murat dekhi tin taisi. . bdhai ...tannuraj
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.आपकी सुन्दर प्रस्तुति पढकर मन अनुभूत हो गया.सत्यम शिवम सुन्दरम.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका स्वागत है.
अमृता जी समय मिले तो मेरे दूसरे ब्लॉग छान्दसिक अनुगायन को भी पढ़ें उस पर मेरी रचनाएँ नवगीत और गज़ल पर साक्षात्कर और भी बहुत कुछ है |www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com
ReplyDeletethoda aur sankalp aur intejar . yeh sansar kalpbriksha hai. jo kuchha bhi jo bhi chaha hai. mila hi hai.bus chahat honi chahie.
ReplyDeleteअन्ना जी के बारे में कविता रोचक लगी । धन्यवाद।
ReplyDeleteतुम अकेले नहीं पड़ोगे
ReplyDeleteजब तुम बजाओगे अद्वितीय शंख
तब मैं भी उठा लूँगा वह पांचजन्य
तारीफ करने की जरूरत नहीं समझता क्योंकि बाकि ४४ लोगों ने यही किया है शुभकामनाएँ
Bahut khoob ... bas yahi faansla kabhi kabhi jeevan bhar ka faansla rah jaata hai .... ise paar karna hi hoga ... lajawaab abhivyakti hai ...
ReplyDeletesatya wachan amrita ...
ReplyDeleteaaj ki samajik aur raajnaitik stithi par sateek hai .
हाँ हस्ताक्षर तो कर दिए हैं मैं ने मुहर लगना अभी बाकी है .सुन्दर सकारात्मक आश्वश्त करती सी रचना .
ReplyDelete