Social:

Friday, April 8, 2011

मुहर

पंचजन्य तो
फूँक दिया है मैंने 
हुँकार अभी बाकी है....
मंजिल तो 
दिख ही रही है 
पहुँचना अभी बाकी है ...
दूरी तो
तय कर ली है हमने
हाथ का फासला बाकी है ...
रास्ते तो
फूलों से भरे है
कांटा चुनना अभी बाकी है ...
कदम तो
डगमगा रहे हैं पर
उन्हें घसीटना बाकी है ....
यह तो
प्रमाणित सत्य है
पर निर्विवाद होना बाकी है ..
हाँ!
हस्ताक्षर तो
कर दिये है मैंने और 
मुहर लगनी अभी बाकी है....  

47 comments:

  1. बड़ी बड़ी बातें आसान हैं प्रायः छोटी -छोटी बातों को समझाना ही मुश्किल का काम है ...!!
    सुंदर कविता.

    ReplyDelete
  2. bahut khoob Amrita..Panchjanya ka udghosh kuch farak to laayega hi...aur agar hastakshar kar hi diya gaya to for muhar lagana mushkil nahi...
    vicharotejjak kavya rachna ke liye samarpit aapko badhayee.han kuch chitra,kuch kavya aur ek article likh chhora hai...aap ko samay mile to mantavya dijiyega...mujhe accha lagega...

    ReplyDelete
  3. अमृता जी आप बहुत सुंदर लिखती हैं आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं |मोब० 09415898913

    ReplyDelete
  4. बहुत गहन सोच..बहुत समसामयिक और सार्थक रचना..बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  5. गहन अभिव्यक्ति लिए.....एक प्रासंगिक रचना .....बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  6. बहुत गहन बात ...सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  7. यकीनन हस्ताक्षर जब है तो मुहर भी लगेगी ही.

    ReplyDelete
  8. manjil to dikh hi rahi hai,pahuchna abhi baaki hai... bhut khubsurat pabktiya hai dil ko chu lene vali...

    ReplyDelete
  9. बहुत ही गहन अभिव्यक्ति.
    संघर्ष तो है पर
    उम्मीद अभी बाकी है,
    हस्ताक्षर तो कर दिए हैं,
    मुहर अभी बाकी है.

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर रचना ! ये फासले भी जल्दी तय हो जायें और हस्ताक्षर के ऊपर मोहर लगाने की प्रक्रिया भी जल्दी ही समाप्त हो जाये यही कामना करती हूँ ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  11. bahut khoob..sarthak chintan aur sarthak srijan ke liye abhivadan sweekar karen..

    ReplyDelete
  12. अमृता जी पटना से मेरा काफी लगाव रहा है | आपकी लेखनी काबिलेतारीफ है |
    बहुत खूब संभव हो तो मेरा फलोवर अवश्य बने | धन्यवाद |
    www.akashsingh307.blogspot.com

    ReplyDelete
  13. अमृता जी आप बहुत सुंदर लिखती हैं आपको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  14. कुछ न कुछ शेष रह जाता है हर बार तभी तो हम लौटते हैं...पूरा करने की आस हमें पुनः खींच लाती है...

    ReplyDelete
  15. bahut sunrata se aapne jo is rachna ko parstut kia hai kabile tarif hai...abhi muhar lagna baki hai bahut sundar lain...badhai...

    ReplyDelete
  16. रास्ते तो फूलों से भरे हैं -पर काँटा चुनना अभी बाकि है सुन्दर सार्थक रचना -बधाई हो -अमृता तन्मय जी हार्दिक स्वागत है आप का हमारे ब्लॉग पर -प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद- हम आप के सुझाव व् समर्थन की भी आस लगाये हैं
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५

    ReplyDelete
  17. अमृता जी,

    रचना ने हर कदम को प्रसंगों से जोड़ा है........

    हस्ताक्षर और मुहर के अंतर के भी स्पष्ट किया है वैसे आजकल हम लोग तो "सिस्टम जनरेटेड डॉक्यूमेन्ट डॅजंट रिक्वायर सिग्नेचर" के आदी हो चुके हैं। निन्यानवे और सौ फीसदी के अंतर को समझाते हुए कुछ भूली-बिसरी यादों को बुहारती हुई कविता......

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    ReplyDelete
  18. अन्ना जी के संदर्भ में यह कविता सटीक है।

    ReplyDelete
  19. मानसून सेशन में बिल पेश हो जायेगा और मुहर भी लग जायेगी.अब देखना है की उसके बाद क्या होता है.

    ReplyDelete
  20. हस्ताक्षर हो गया तो मुहर भी लग जाएगा।अन्ना जी के बारे में कविता रोचक लगी।धन्यवाद।

    ReplyDelete
  21. samsamayik rachna sundar abhivyakti badhai

    ReplyDelete
  22. बहुत अच्छी और प्रासंगिक कविता ! आपकी कविता भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध, रविवार को अन्ना हजारे जी के आमरण अनशन की समाप्ति और उनके वक्तव्य पर सटीक बैठती है | सुन्दर प्रस्तुति |

    ReplyDelete
  23. अमृता जी,

    शानदार....खुबसूरत....खुद पर यकीन और हौसला हो तो जो बाकी है वो भी बहुत जल्द पूरा हो जायेगा .......प्रशंसनीय पोस्ट |

    ReplyDelete
  24. क़दम तो डगमगा रहे हैं
    पर
    उन्हें घसीटना अभी बाक़ी है ...

    काव्य ,
    फिर भी प्रभावित करता है
    अभिवादन .

    ReplyDelete
  25. सुंदर भावों से भरी रचना.

    ReplyDelete
  26. यही तो विडम्बना है कि आज का सत्य विवादों में घेरे में आ जाता है और मुल्ज़िम बरी हो जाता है :( सुंदर कविता॥

    ReplyDelete
  27. अमृता जी… !

    शुरुआत से जुड़ी अपेक्षाओं और अंत तक पहुँचने के यथार्थ के बीच के अन्तर को बताती बहुत उम्दा रचना। बधाई।

    हाँ पर दो-एक जगह शब्द चयन बेह्तर करने की गुँजाईश दिखती है और कुछ वर्तनी-दोष जैसे 'हस्ताक्षर कर "दी" है मैने… मुहर "लगना" बाकी है'…"दी" की जगह "दिये हैं" और "लगना" की जगह "लगनी" होना बेह्तर होता … शेष तो आप स्वयँ समर्थ हैं।

    नमन

    ReplyDelete
  28. नए शिल्प और बोध की अनुपम रचना -शुभस्य शीघ्रम! जब मंजिल इतना करीब हो तब इतना विचार मंथन क्यों ? निर्विवाद तो पुरुषोत्तम राम और मां सीता भी नहीं रह पायीं! पांचजन्य कर लीजिये !

    ReplyDelete
  29. अमृता तन्मय जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    रास्ते तो
    फूलों से भरे हैं
    कांटा चुनना अभी बाकी है …


    अच्छा है , इसके बाद जो कुछ मिलेगा निराशा नहीं होगी …
    वैचारिक बिखराव सिमट जाए बस ………

    * श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    ReplyDelete
  30. bahut sunder rachna .........

    ReplyDelete
  31. एक सहज और शिल्प में अद्भुत कथ्य को पेश करती यह रचना दिल और दिमाग दोनों को सकुन देती है।

    ReplyDelete
  32. ati sundar, jaki rahi bhawna jaisi,prabhu murat dekhi tin taisi. . bdhai ...tannuraj

    ReplyDelete
  33. पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.आपकी सुन्दर प्रस्तुति पढकर मन अनुभूत हो गया.सत्यम शिवम सुन्दरम.
    मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका स्वागत है.

    ReplyDelete
  34. अमृता जी समय मिले तो मेरे दूसरे ब्लॉग छान्दसिक अनुगायन को भी पढ़ें उस पर मेरी रचनाएँ नवगीत और गज़ल पर साक्षात्कर और भी बहुत कुछ है |www.jaikrishnaraitushar.blogspot.com

    ReplyDelete
  35. thoda aur sankalp aur intejar . yeh sansar kalpbriksha hai. jo kuchha bhi jo bhi chaha hai. mila hi hai.bus chahat honi chahie.

    ReplyDelete
  36. अन्ना जी के बारे में कविता रोचक लगी । धन्यवाद।

    ReplyDelete
  37. तुम अकेले नहीं पड़ोगे
    जब तुम बजाओगे अद्वितीय शंख
    तब मैं भी उठा लूँगा वह पांचजन्य
    तारीफ करने की जरूरत नहीं समझता क्योंकि बाकि ४४ लोगों ने यही किया है शुभकामनाएँ

    ReplyDelete
  38. Bahut khoob ... bas yahi faansla kabhi kabhi jeevan bhar ka faansla rah jaata hai .... ise paar karna hi hoga ... lajawaab abhivyakti hai ...

    ReplyDelete
  39. satya wachan amrita ...
    aaj ki samajik aur raajnaitik stithi par sateek hai .

    ReplyDelete
  40. हाँ हस्ताक्षर तो कर दिए हैं मैं ने मुहर लगना अभी बाकी है .सुन्दर सकारात्मक आश्वश्त करती सी रचना .

    ReplyDelete