होरा हूँ मैं होरा हूँ
हर क्षण बजती होरा हूँ
मधुर स्वर से अंतर्मन में
ब्रह्मनाद सा हर एक कण में
हर क्षण बजती होरा हूँ
होरा हूँ मैं होरा हूँ.
कोरा हूँ मैं कोरा हूँ
हर क्षण बनती कोरा हूँ
हर प्रसून के प्रस्फुटन में
सृजन के हर एक स्पंदन में
हर क्षण बनती कोरा हूँ
कोरा हूँ मैं कोरा हूँ.
डोरा हूँ मैं डोरा हूँ
हर क्षण बँधती डोरा हूँ
धरा-गगन के आकर्षण में
चराचर के हर एक विचलन में
हर क्षण बँधती डोरा हूँ
डोरा हूँ मैं डोरा हूँ
हर क्षण बँधती डोरा हूँ.
होरा----घंटा
कोरा----नया
डोरा----प्रेम का बंधन
बहुत खूब!
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत खूब
ब्रह्मा नाद सी बजती घंटी ....
ReplyDeleteहोरा हूँ मैं होरा हूँ
कोरी सी आभा छिटकाती ...
कोरा हूँ मैं कोरा हूँ ...
बंधी हस्त शुभ सुंदर मौली ....
डोरा हूँ मैं डोरा हूँ ...
बहुत ही सुंदर सृजन .....!!
अद्भुत रचना .
शब्द सामर्थ्य, भाव-सम्प्रेषण, संगीतात्मकता, लयात्मकता की दृष्टि से कविता अत्युत्तम है।
ReplyDeleteसुंदर कविता ...देशज शब्दों को लेकर। बधाई अमृता जी :)
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
adbhut hriday geet, jo hriday tak pahuchti hai... tannuraj
ReplyDeleteHmmmm thank you for tellin da meaning of the words otherwise i cud nt understamnd this lovely poem.. really beautiful..keep writing :)
ReplyDeleteह्रदय तंत्री को झंकृत करती रचना -एक चेतना जो सर्वव्याप्त होने की अनुभूति से आप्लावित और आह्लादित है !
ReplyDeleteहोरा ,कोरा और डोरा ने तो मस्त कर दिया अमृताजी.
ReplyDeleteक्या खूबसूरती से आपने कविता रच डाली कि पता ही नहीं चला
कि मन कहाँ खो गया. बहुत बहुत शुक्रिया आपका.
मेरे ब्लॉग पर आयें,रामजन्म पर नई पोस्ट जारी कर दी है.
होरा ..कोरा ..और डोरा के माध्यम से आपने बहुत सशक्त अर्थ संप्रेषित किये हैं ....आपका आभार
ReplyDeleteनूतन प्रेममय संगीत से गूंजती आपकी कविता संभवतः अंतर की उस गहराई से आयी है जहाँ मौन का साम्राज्य है! है न ?
ReplyDeleteनायब..
ReplyDeleteवैसे एक शब्द का अर्थ पूछना था -प्रस्फुटन?
ReplyDeleteहर प्रसून के प्रस्फुटन में
ReplyDeleteसृजन के हर एक स्पंदन में
हर क्षण बनती कोरा हूँ
कोरा हूँ मैं कोरा हूँ.
बहुत सुंदर .....कितनी भाव पूर्ण रचना रची है आपने ....
बहुत खूब, बेहतरीन शब्द संचय ...शुभकामनायें !
ReplyDeleteअनूठे शब्द और उतने की अनूठे भाव...वाह...प्रशंशा के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास...कमाल की रचना...बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteनीरज
धरा-गगन के आकर्षण में
ReplyDeleteचराचर के हर एक विचलन में
हर छन बंधती डोरा हूँ..
खूबसूरत ...
बहुत खूबसूरत...!!
aaveg ka mukhar vachan srijan se jharta hua ,satat gatiman laga . aabhar ji .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.भाव पूर्ण हृदय गीत.
ReplyDeleteकविता के नए आयाम.
बहुत आभार
हृदय के स्पंदन को शब्दों मे खूबसूरती के साथ ढाल कर गीत के रूप में प्रस्तुत किया गया है...यह गीत मुझे यह आभास देता है की आप ईश्वर के ज्यादा करीब हैं...होरा ...कोरा और डोरा को समझना शायद मुश्किल है एक बार के पठन से...मेरा ज्ञान अभी थोड़ा है ...
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण और खूबसूरत...
बहुत सुन्दर दार्शनिक रचना...
ReplyDeleteएक बिल्कुल नये अन्दाज़ मे गहन प्रस्तुति भाव विभोर कर गयी।
ReplyDeleteहोरा, कोरा, डोरा पर सटीक और सारगर्भित क्षणिकाएं.
ReplyDeleteयह बिलकुल एक बेहतरीन अध्यात्मिक कविता हो गयी है इसे ही कहते हैं कलम का कमल बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeletebhut khubsurat...
ReplyDeleteडोरा के सौंदर्य प्रेमी मन को मानव स्वभाव की सहजता व प्रकृति की सुंदरता ही अपने आकर्षण में बांध सकती है। सृजन के हर पल में कोरेपन का एहसास ही हमारी रचनाओं में नवीनता का पुट लेकर पुर्नजीवित होता रहता है। ऐसे हृदय गीत का हार्दिक अभिनंदन है।
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteहीरा हैं आप हीरा हैं
ब्लॉगजगत की खदान का
सबसे नायब हीरा हैं
हीरा हैं आप हीरा हैं
gahan anubhutiyon se bharee khoobsurat rachna
ReplyDeletenaye anuthe andaz me sunder prastuti.
ReplyDeleteAmrita Ji,
ReplyDeleteNeeraj Sahab ke blog par aapke commnets padhe,
aaj pahli baar aapke geet bhi..bahut achchha
laga..badhaee.
Zindagee yaa Jaan kya hai? isee udhed bun men
ek matla hua tha pesh hai...
जिस्मे खाक़ी में क्या बला है वो
है कोई चीज़ या हवा है वो
maqta bhi gaur farma len..
बेवफ़ा कह दिया 'रक़ीब' जिसे
जान लें आप बावफ़ा है वो
Satish Shukla 'Raqeeb'
Juhu, Mumbai-49
कविता की भावभूमि बिल्कुल नवीन है।
ReplyDeleteकोरा, होरा और डोरा के माध्यम से जीवन दर्शन की अद्भुत अभिव्यक्ति।
बहुत गहन चिंतन...शब्दों और भावों का अद्भुत सामंजस्य..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeletebahut sunder prastuti...
ReplyDeleteशानदार रचना... सुन्दर शब्द संयोजन..आभार..
ReplyDeleteबहुत गहन चिंतन| बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी।
ReplyDeleteBahut khoob ... naye bhaavon ka sanyojan kar ke rachi lajawaab kavita hai ...Hora, Kora aur Dora ... sundar shabdon ka sundar prayog ...
ReplyDeleteamrita ..
ReplyDeletemuch na kah paane ki stithi me hoon. shabd me praan aa gaye hai aur wo jivant hokar ek nayi abhivyakti aur ahsaas ko janm de rahe hai ..
aapki lekhni ko salaam ..!!
vijay
वाह ऐसी सुन्दर रचना के साथ-साथ कुछ नए शब्दों का भी ज्ञान हुआ!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ... ये केवल यूँ ही नहीं ... दिल से कह रहा हूँ ... कई ब्लोग्स पर कई लोग बकवास रचनाएँ छापते रहते हैं ... लिखना नहीं आता है फिर भी लिखते रहते हैं ... पर आपकी इस रचना से साफ़ है कि आप बहुत सुन्दर लिखती हैं ...
ReplyDeleteशब्दों को जोड़ तोड़ वाकई बेमिशाल है। ये ह्रदय गीत ह्रदय को छूने वाला है।
ReplyDeleteसाहित्य और सभ्यता से जुड़े भाव
ReplyDeleteऔर नायाब शब्दावली ..
बहुत सुन्दर कृति !!
अमृता जी ,
ReplyDeleteबहुत ही अनूठे अंदाज़ की सुन्दर रचना ...
शब्द चयन .....
भाव सम्प्रेषण ........
लय बद्धता.........
गत्यात्मकता ...................सब कुछ से परिपूर्ण है
सहज मिठास ...
अमृता,दुबारा आपके साइट पे आया॥ हृदयगीत अत्यंत प्रभावी है और बिंबों का प्रयोग पूर्णतया दार्शनिक,जो आपके हृदय के भावों को परिलक्षित करता है॥बहुत ही अच्छा लगा पुनः पढ़कर।
ReplyDeleteशायद अपनी व्यस्तताओं की वजह से आप मेरे ब्लॉग sites पे नहीं आ रही इधर।समय मिले तो जरूर आईएगा ।
अर्थपरक खूबसूरत भावाभिव्यक्ति,
ReplyDeleteआभार
मन को झंकृत करने में समर्थ रचना।
ReplyDelete---------
देखिए ब्लॉग समीक्षा की बारहवीं कड़ी।
अंधविश्वासी आज भी रत्नों की अंगूठी पहनते हैं।
अरे बापरे एते अच्छे गीत लिखती हैं...... और अभी तक आपके ब्लॉग पर हम आये ही नहीं...
ReplyDeleteसुंदर.
कोरा होरा के साथ डोरा में बांध दिया आपने।
ReplyDelete..यह कविता पहले भी पढ़ी थी, कमेंट भी किया था, किन्हीं कारणों से कमेंट प्रकाशित नहीं हुआ होगा!
यह मेरे द्वारा पढ़ी गयी इस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कविता है ,तन्मय से सिर्फ एक गुजारिश -आपकी अपनी भाषा शैली है जो कविता को सबकी कविता बनाये रखने का काम बेहद खूबसूरती से कर रही है ,हम एक पाठक के तौर पर अधिकारपूर्वक कहना चाहेंगे हम "खाई " में नहीं उतरना चाहते
ReplyDeleteकाव्य का प्रवाह देखते ही बनता है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteनए शब्द प्रयोगों से वाकिफ होने का प्रबल आकर्षण बारहा आपके ब्लॉग की तरफ खींच रहा है वैसे ही जैसे गुरुत्व गुरुतर पैमाने पर अखिल सृष्टि को नचाता है .होरा हूँ भई,होराहूँ ...
ReplyDeletebehtareen prastuti.aap ke blog par ye meri pasandida rachna hai .
ReplyDeleteबहुत प्रभावपूर्ण है आपकी रचना.
ReplyDeleteसादर