आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (16.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/ चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
tapti dharti ke bheetar se hi navankur padap nayi urza ke sath janm lete hain...aur saare jhanjhawaaton ko sahte huye wahi navankur vatvriksha me tabdeel ho jaate.
अमृता,मुझे भी अच्छा लगता है आपके ब्लॉग पे आना और आपकी कविताओं की पढ़ना। अक्सर ऐसा होता है की पढ़ी हुयी कविताओं का पुनर्पठन करता हूँ और नए ही आनंद का अनुभव करता हूँ...क्यूंकी हर बार पढ़ने के बाद कुछ नए अर्थ समझ में आते...गहन अर्थों वाली आपकी कविता मुझे बेहद पसंद आ रही... हाँ, एक और बात...साफ़गोई से कहूँ तो यही की आपका मन्तव्य भी मुझे बेहद अच्छा लगता है और उनकी भी प्रतीक्षा रहती है...सराहना के लिए आभारी हूँ।
ऐसी सुंदर कविताओं का वटवृक्ष खडा कीजिए :)
ReplyDeleteदेखना है
ReplyDeleteलगती है आग
निर्जन में
या
बनता है
कोई वटवृक्ष
निर्जन में आग नहीं लग सकती ..वहां तो आप वटवृक्ष ही खड़ा कीजये ....गहरे अहसासों से परिपूर्ण रचना ....आपका आभार
her aag ek bijaropan karti hai... banta hai vatvriksh
ReplyDeleteवटवृक्ष के लिए शुभकामनायें ...वटवृक्ष ही देखना चाहते हैं ......!!
ReplyDeleteआशा ढूँढती हुई सुंदर रचना .......!!
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (16.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
कम शब्दों में उत्कृष्ट कविता /रचना कौशल का कमल /बधाई अमृता जी
ReplyDeleteएक झोंका हवा का ऐसा बहायें
ReplyDeleteसभी कुंठाओं में आग लगा जाएँ
एक झोंका हवा का फिर ऐसा बहायें
प्यार और विश्वास का वट वृक्ष जमा जाएँ.
आपकी बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत शुक्रिया.
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteवटब्रक्ष खड़ा करना ही पड़ेगा
ReplyDeleteसुन्दर रचना, शुभकामनायें ....
tapti dharti ke bheetar se hi navankur padap nayi urza ke sath janm lete hain...aur saare jhanjhawaaton ko sahte huye wahi navankur vatvriksha me tabdeel ho jaate.
ReplyDeleteNayi chetna ko namaskar.
गागर में सागर. बहुत उम्दा.
ReplyDeleteचंद पंक्तियों द्वारा आपने भी किया है जो आपने कविता में लिखा है....हवा दे गयीं आप भी .....नमस्कार...
ReplyDeleteजब सोच सकारात्मक हो तो वटवृक्ष ही बनेंगे।
ReplyDeletebhut hi sunder rachna... ehsaaso se bhari...
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteउम्मीदों की अभिव्यक्ति.
बहुत सुन्दर शब्द रचना.
अमृता जी ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा पेशकश....ऊर्जा का प्रयोग ..सकारत्मक या नकारत्मक ..अलग अलग असर अलग अलग परिणाम ... बधाई इस सार्थक रचना के लिए
अमृता जी ...
ReplyDelete... बधाई इस सार्थक रचना के लिए
बेहद सुन्दर रचना.........
ReplyDeleteशुभकामनाओं सहित....
बधाई.....
हाँ, उसी बीज में वट वृक्ष होने की संभावना होती है जो निर्जन में आग लगा सकता है। शेष तो हैं ही कुचले जाने के लिए।
ReplyDelete...बहुत सुंदर।
जीवन के रहस्य को बयां करती एक शानदार अभिव्यक्ति।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए!
क्या सचिन को भारत रत्न मिलना चाहिए?
मुझे आपकी हर कविता को समझने के लिए उसे दुबारा पढ़ना पड़ता है..
ReplyDelete:)
यहाँ दोनों के लिये पर्याप्त संभावनाएँ हैं, अस्तित्त्व अति विशाल है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteसही लिखा है आपने... भविष्य पर सबकी नज़रें टिकी रहती हैं क्योंकि आज जो किया है उसका फल कल ही मिलेगा..
ReplyDeleteसुन्दर रचना..
तीन साल ब्लॉगिंग के पर आपके विचार का इंतज़ार है..
आभार
बहुत खूब ...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteदेखना है
ReplyDeleteलगती है आग
निर्जन में
या
बनता है
कोई वटवृक्ष
बहुत सुंदर .....
अमृता,मुझे भी अच्छा लगता है आपके ब्लॉग पे आना और आपकी कविताओं की पढ़ना। अक्सर ऐसा होता है की पढ़ी हुयी कविताओं का पुनर्पठन करता हूँ और नए ही आनंद का अनुभव करता हूँ...क्यूंकी हर बार पढ़ने के बाद कुछ नए अर्थ समझ में आते...गहन अर्थों वाली आपकी कविता मुझे बेहद पसंद आ रही...
ReplyDeleteहाँ, एक और बात...साफ़गोई से कहूँ तो यही की आपका मन्तव्य भी मुझे बेहद अच्छा लगता है और उनकी भी प्रतीक्षा रहती है...सराहना के लिए आभारी हूँ।
गागर में सागर.
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....बिलकुल आग लगेगी....तभी तो सोना ताप कर कुंदन बनेगा......शानदार |
Loved ur blog... evry post is better den da other... da depth of dis poem makes it more beautiful keep writing :)
ReplyDeletejust wait and see,what it brings to you. brief in words but broad in meaning. thanks.
ReplyDeleteसोच सकारात्मक है तो निश्चित रूप से वटवृक्ष ही बनेगा |
ReplyDelete"देखना है
ReplyDeleteलगती है आग
निर्जन में..
या
बनता है
कोई वटवृक्ष ?"
जीवन में दोनों का ही इंतज़ार करना चाहिए..
आग का भी और पुन: हरियाली का भी...
सुन्दर भावोक्ति....
बहुत प्यारे भाव कम शब्दों में ...शुभकामनायें !
ReplyDeleteबनेगा बटवृक्ष कोई - निर्जन में कोई आग नहीं लगेगी अमृता जी बहुत सुदर तन्मयता से लिखा आप ने ,आइये अपना सुझाव व् समर्थन हमें भी दें
ReplyDeleteशुक्ल्भ्रमर 5
रचना अच्छी है। बधाई।
ReplyDeleteआज दुबारा आपकी रचना पढी और बिना कमेंट किये जाना अच्छा नहीं लगा। सचमुच आप बहुत शानदार लिखती हैं।
ReplyDelete---------
भगवान के अवतारों से बचिए...
जीवन के निचोड़ से बनते हैं फ़लसफे़।
kam shabd gahre bhav
ReplyDeletesahityasurbhi.blogspot.com
सुन्दर कविता..
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाएं आपको !!
पढ़कर सोचने पर विवश हुई . अच्छा लिखती है
ReplyDeleteअच्छी लगी .
बस उसी बटवृक्ष के छाँव की प्रत्याशा है,आशा है :)
ReplyDeleteBahut hi prabhaavi ... kuch hi panktiyon mein door ki baat kah di hai ....
ReplyDeleteamrita ,
ReplyDeletekavita me ek spandan chupa hua hai , jo prem aur jeevan ke prati ek naye utsaah ko janmta hai ..
badhayi ..
vijay.
जीवन की पल-पल परिवर्तनशीलता में संभावनाओं का संसार. सकारात्मक.
ReplyDeleteसवाल पूछती सी रागात्मक कृति .
ReplyDeleteसोच में डूबी नई पुरानी हलचल से यहाँ आये तो
ReplyDeleteसोच में फिर 'तन्मय' हो गए अमृता जी.
वाह! क्या कमाल है.
"देखना है
ReplyDeleteलगती है आग
निर्जन में..
या
बनता है
कोई वटवृक्ष ?"
वाह ...बहुत खूब ।
अद्भुत अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर...
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteसादर शुभकानाएँ