हे जगद्धात्री !
न धुन है न रस है
न संगीत है न ही सुवास है
न कोई विधि-विधान है
न कोई अभ्यास है
अकारण ही तेरा अनुग्रह हो
बस यही एक आस है
हे वाक् अधिष्ठात्री !
न कोई वक्तृत्व-शैली है
न कोई वाक-विन्यास है
न ही कोई कृति-कौशल है
यदि तू देती रहे सद्बुद्धि तो
बस यही एक बल है
हे विश्व धात्री !
जब बोलने को कुछ हो
तो ही मुझे बोलना आये
अन्यथा मेरा चुप होना ही
बस सार्थक हो जाये
हे दीप्ति धारित्री !
मेरी अनुभव सम्पदा
सौभाग्य का साधन बने
और मुझसे निकली वाणी
बस तेरा वाहन बने
हे दिव निर्मात्री !
मेरे गीतों से
सबके ह्रदय का प्रसाद बढे
जो गहन से गहन होकर
और-और पगे
हे विद्या विधात्री,
तेरा वरद्हस्त हो तो
शब्दों के काव्य भी
हो जाते हैं इतने रस सने
और जो तू वृहद्वर दे तो
मेरा सम्पूर्ण जीवन ही
शाश्वत काव्य बने .
हे अमृत दात्री!
न धुन है न रस है
न संगीत है न ही सुवास है
न कोई विधि-विधान है
न कोई अभ्यास है
अकारण ही तेरा अनुग्रह हो
बस यही एक आस है
हे वाक् अधिष्ठात्री !
न कोई वक्तृत्व-शैली है
न कोई वाक-विन्यास है
न ही कोई कृति-कौशल है
यदि तू देती रहे सद्बुद्धि तो
बस यही एक बल है
हे विश्व धात्री !
जब बोलने को कुछ हो
तो ही मुझे बोलना आये
अन्यथा मेरा चुप होना ही
बस सार्थक हो जाये
हे दीप्ति धारित्री !
मेरी अनुभव सम्पदा
सौभाग्य का साधन बने
और मुझसे निकली वाणी
बस तेरा वाहन बने
हे दिव निर्मात्री !
मेरे गीतों से
सबके ह्रदय का प्रसाद बढे
जो गहन से गहन होकर
और-और पगे
हे विद्या विधात्री,
तेरा वरद्हस्त हो तो
शब्दों के काव्य भी
हो जाते हैं इतने रस सने
और जो तू वृहद्वर दे तो
मेरा सम्पूर्ण जीवन ही
शाश्वत काव्य बने .
हे अमृत दात्री!
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअमृत दात्री का अमृता को मिला वृहदत्तर वरदान। अाश्चर्य उत्पन्न करनेवाला आहवान करती पंक्तियां। सुन्दर सुवासित उद्बोधन।
ReplyDeleteकुछ ऐसी ही प्रार्थना इधर भी >> http://zindagikenasheme.blogspot.in/2015/01/vaasanti.html
ReplyDeleteहाँ सिर्फ सद्बुद्धि और सत्मार्ग पर चलने की रौशनी मिल जाए तो जीवन धन्य हो जाए. देवी से बस इतनी की ही याचना तो रहती है.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
ReplyDeleteसावित्री और सरस्वती की वंदना एक साथ. बहुत खूबसूरत. रचना गदगद करती है.
ReplyDeleteमाँ के चरणों में विनम्र वंदन के शब्द और स्वर सीधे अंतस तक जाते हैं ... भावपूर्ण रचना सम्पूर्ण है ... गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ...
ReplyDeleteअकारण ही तेरा अनुग्रह हो
ReplyDeleteबस यही एक आस है...... sabki aas kuchh aisi hi ha, bahut sundar rachna .......
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर...गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
ReplyDeleteपुकार में इतना समर्पण व निश्छलता हो तो जीवन शाश्वत काव्य कैसे न बने। अकारण ही आपसे आस प्रबल हो जाती है। सन्मार्ग पर चलने का आशीष तो हमें आपसे चाहिए.
ReplyDeleteहे विद्या विधात्री,
ReplyDeleteतेरा वरद्हस्त हो तो
शब्दों के काव्य भी
हो जाते हैं इतने रस सने
और जो तू वृहद्वर दे तो
मेरा सम्पूर्ण जीवन ही
शाश्वत काव्य बने .
कितनी सुंदर प्रार्थना...देवी का वरद हस्त तो सदा आपके ऊपर है...
हे वाक् अधिष्ठात्री !
ReplyDeleteन कोई वक्तृत्व-शैली है
न कोई वाक-विन्यास है
न ही कोई कृति-कौशल है
यदि तू देती रहे सद्बुद्धि तो
बस यही एक बल है
यह अर्चना सभी करें, सभी फलें ।
भावमय सृजन के लिए बधाई ।
हे विश्व धात्री !
ReplyDeleteजब बोलने को कुछ हो
तो ही मुझे बोलना आये
अन्यथा मेरा चुप होना ही
बस सार्थक हो जाये
....ह्रदय से निकली एक भावपूर्ण वंदना...
बहुत सुन्दर प्रार्थना
ReplyDeleteअनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
आप पर जगद्धात्री का वरद हस्त पहले से ही है अमृता जी , फिर भी उनसे यही प्रार्थना है आपकी हर मनोकामना पूर्ण हो .... हर बार की तरह लाज़वाब
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