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Sunday, January 25, 2015

हे जगद्धात्री !

हे  जगद्धात्री !
न धुन है न रस है
न संगीत है न ही सुवास है
न कोई विधि-विधान है
न कोई अभ्यास है
अकारण ही तेरा अनुग्रह हो
बस यही एक आस है

हे वाक् अधिष्ठात्री !
न कोई वक्तृत्व-शैली है
न कोई वाक-विन्यास है
न ही कोई कृति-कौशल है
यदि तू देती रहे सद्बुद्धि तो
बस यही एक बल है

हे विश्व धात्री  !
जब बोलने को कुछ हो
तो ही मुझे बोलना आये
अन्यथा मेरा चुप होना ही
बस सार्थक हो जाये

हे दीप्ति धारित्री  !
मेरी अनुभव सम्पदा
सौभाग्य का साधन बने
और मुझसे निकली वाणी
बस तेरा वाहन बने

हे दिव निर्मात्री !
मेरे गीतों से
सबके ह्रदय का प्रसाद बढे
जो गहन से गहन होकर
और-और पगे

हे विद्या विधात्री,
तेरा वरद्हस्त हो तो
शब्दों के काव्य भी
हो जाते हैं इतने रस सने
और जो तू वृहद्वर दे तो
मेरा सम्पूर्ण जीवन ही
शाश्वत काव्य बने .

हे अमृत दात्री!    

17 comments:

  1. अमृत दात्री का अमृता को मिला वृहदत्‍तर वरदान। अाश्‍चर्य उत्‍पन्‍न करनेवाला आहवान करती पंक्तियां। सुन्‍दर सुवासित उद्बोधन।

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  2. कुछ ऐसी ही प्रार्थना इधर भी >> http://zindagikenasheme.blogspot.in/2015/01/vaasanti.html

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  3. हाँ सिर्फ सद्बुद्धि और सत्मार्ग पर चलने की रौशनी मिल जाए तो जीवन धन्य हो जाए. देवी से बस इतनी की ही याचना तो रहती है.

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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।

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  5. सावित्री और सरस्वती की वंदना एक साथ. बहुत खूबसूरत. रचना गदगद करती है.

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  6. माँ के चरणों में विनम्र वंदन के शब्द और स्वर सीधे अंतस तक जाते हैं ... भावपूर्ण रचना सम्पूर्ण है ... गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें ...

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  7. अकारण ही तेरा अनुग्रह हो
    बस यही एक आस है...... sabki aas kuchh aisi hi ha, bahut sundar rachna .......

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. बहुत ही सुन्दर...गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें

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  10. पुकार में इतना समर्पण व निश्छलता हो तो जीवन शाश्वत काव्य कैसे न बने। अकारण ही आपसे आस प्रबल हो जाती है। सन्मार्ग पर चलने का आशीष तो हमें आपसे चाहिए.

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  11. हे विद्या विधात्री,
    तेरा वरद्हस्त हो तो
    शब्दों के काव्य भी
    हो जाते हैं इतने रस सने
    और जो तू वृहद्वर दे तो
    मेरा सम्पूर्ण जीवन ही
    शाश्वत काव्य बने .

    कितनी सुंदर प्रार्थना...देवी का वरद हस्त तो सदा आपके ऊपर है...

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  12. हे वाक् अधिष्ठात्री !
    न कोई वक्तृत्व-शैली है
    न कोई वाक-विन्यास है
    न ही कोई कृति-कौशल है
    यदि तू देती रहे सद्बुद्धि तो
    बस यही एक बल है

    यह अर्चना सभी करें, सभी फलें ।
    भावमय सृजन के लिए बधाई ।

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  13. हे विश्व धात्री !
    जब बोलने को कुछ हो
    तो ही मुझे बोलना आये
    अन्यथा मेरा चुप होना ही
    बस सार्थक हो जाये
    ....ह्रदय से निकली एक भावपूर्ण वंदना...

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  14. बहुत सुन्दर प्रार्थना

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  15. अनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
    मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन

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  16. आप पर जगद्धात्री का वरद हस्त पहले से ही है अमृता जी , फिर भी उनसे यही प्रार्थना है आपकी हर मनोकामना पूर्ण हो .... हर बार की तरह लाज़वाब

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