जो थोड़ा- सा
संसार का एक छोटा- सा कोना
मैंने घेर रखा है
वहाँ मेरे बीजों से
नित नये सपने प्रसूत होते हैं
मेरी कलियों में
नव साहस अंकुरित होता है
तब तो मेरा फूल
पल प्रति पल खिलता रहता है .......
जो थोड़ी- सी
मेरी सुगंध है , वो उड़ती रहती है
जो थोड़ा- सा
मेरा रंग है , वो बिखरता रहता है
जो थोड़ा- सा
मेरा रूप है , वो निखरता रहता है
तो और बीजों को भी
थोड़ी- सी स्मृति आती है
और उनकी कलियाँ
उत्सुक हो साहस जुटाती हैं
और फूल भी पंखुड़ियों को
थोड़ा और , थोड़ा और फैलाते हैं
जो थोड़ा- सा
मेरा संसार है , उसमें
कितने ही फूल खिल जाते हैं .......
बाँध हृदय का तोड़ कर
बह चलती है एक प्रेमधारा
और जल भरे सब मेघ काले
मुझ पर झुक- झुक कर
पाते हैं सहर्ष सहारा
थोड़े चाँद- तारे भी
खिल- खिल जाते हैं
थोड़ा धरा- अंबर भी
भींग- भींग जाते हैं
जो थोड़ा- सा
मेरा संसार है , उसमें
सुख की वर्षा होती है .......
जो थोड़ा- सा
संसार का एक छोटा- सा कोना
मैंने घेर रखा है
वहाँ मैं ही अंतः रस हूँ
और मैं ही हूँ अंतः सलिला
मैं जो स्वयं को सुख से मिली
तो सब सुख सध कर स्वयं ही मिला
तब तो
मेरे फूल के संक्रमण से
और फूल भी
स्वतः सहज ही है खिला .
संसार का एक छोटा- सा कोना
मैंने घेर रखा है
वहाँ मेरे बीजों से
नित नये सपने प्रसूत होते हैं
मेरी कलियों में
नव साहस अंकुरित होता है
तब तो मेरा फूल
पल प्रति पल खिलता रहता है .......
जो थोड़ी- सी
मेरी सुगंध है , वो उड़ती रहती है
जो थोड़ा- सा
मेरा रंग है , वो बिखरता रहता है
जो थोड़ा- सा
मेरा रूप है , वो निखरता रहता है
तो और बीजों को भी
थोड़ी- सी स्मृति आती है
और उनकी कलियाँ
उत्सुक हो साहस जुटाती हैं
और फूल भी पंखुड़ियों को
थोड़ा और , थोड़ा और फैलाते हैं
जो थोड़ा- सा
मेरा संसार है , उसमें
कितने ही फूल खिल जाते हैं .......
बाँध हृदय का तोड़ कर
बह चलती है एक प्रेमधारा
और जल भरे सब मेघ काले
मुझ पर झुक- झुक कर
पाते हैं सहर्ष सहारा
थोड़े चाँद- तारे भी
खिल- खिल जाते हैं
थोड़ा धरा- अंबर भी
भींग- भींग जाते हैं
जो थोड़ा- सा
मेरा संसार है , उसमें
सुख की वर्षा होती है .......
जो थोड़ा- सा
संसार का एक छोटा- सा कोना
मैंने घेर रखा है
वहाँ मैं ही अंतः रस हूँ
और मैं ही हूँ अंतः सलिला
मैं जो स्वयं को सुख से मिली
तो सब सुख सध कर स्वयं ही मिला
तब तो
मेरे फूल के संक्रमण से
और फूल भी
स्वतः सहज ही है खिला .
बहुत सुंदर भावयुक्त कोमल रचना...वाह्ह👌👌
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 5 अप्रैल 2018 को प्रकाशनार्थ 993 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteअति सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन ....लाजवाब...
ReplyDeleteवाह!!!
यह जो थोड़ा सा संसार का कोना अगर kshijit तक घेर ले तो कैसी सुरभी होगी।
ReplyDeleteBehad sundar.....Kahne ko thora sa..Magar sab kuch bhra pura....
ReplyDeleteबहुत कोमल भावों वाली कविता जिसमें एकाकी भाव अंतःनिस्सृत है. आप अपने ब्लॉग पर बहुत देर के बाद लौटी हैं इसकी शिकायत तो रहेगी. :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteइस थोड़ा-सा में कितनी प्रेमिल, रंगीन और अनंत जीवन संभावनाएं हैं, इसकी कल्पना असंभव है!! सीधे हृदय में उतर रहा यह थोड़ा-सा सांसारिक कोना और उसका जीव-जीवन।
Deleteवाह ! आपकी कविता पढ़कर उपनिषदों की स्मृति हो आयी है, जैसे कोई ऋषिकन्या ध्यान से अभी-अभी उठी हो और अपना अनुभव साझा कर रही हो ..
ReplyDeleteनिमंत्रण
ReplyDeleteविशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बेहतरीन ....लाजवाब..
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