यूँ ही कुछ भी छेड़िए मत
नहीं तो मैं भी यूँ ही
दुहराते-तिहराते हुए
दो-चार-दस
कविता गढ़ डालूंगी
और अपने तहखाने में
तहियाये खटास/भड़ास को भी
आपके ही सिर मढ़ डालूंगी ...
लबड़ धोंधों के लेन-देन में
ऐसा ही कुछ तो होता है
सलज्ज साहित्यिकता
अपना ही सिर पकड़ रोता है ...
न!न!ऐसे सिर झटकने से
अब काम न चलेगा
आपकी ठंडी आंच में ही सही
ये गला दाल और भी गलेगा ...
कहिये तो इसमें
जोरदार तड़का लगा देती हूँ
व टमाटर-धनिया से
और भी सजा देती हूँ
अदि आप चाहे तो इसमें
मेवा-केसर भी मिला सकते हैं
अपने बिलोये मक्खन के सहारे
गले के नीचे भी पहुंचा सकते हैं ...
ये भी जानती हूँ कि
फ़ाइव स्टार वाली कविता ही
अब आपको ज्यादा लुभाती है
पर ये खटास/भड़ास भी तो
कुछ जुदा स्वाद ही लाती है ...
ऐसे मुंह मोड़ने से
अब काम न चलेगा
कविता के मना करने पर भी
ये स्वाद तो घुलता रहेगा ...
ओहो! क्या हुआ ?
जो मैं सीधी-सी बात
आपसे यूँ ही कह दे रही हूँ
और कविता के बहाने
आपके भी तहियाये भड़ास को
जो सव्यंग सह दे रही हूँ ...
आप भी जानते हैं कि
केवल मिठास कितना घातक है
और हर जगह पेप्सी-कोला को
गट-गट गटकता हुआ चातक है ...
चाटुपटु तो हमेशा से ही
कविता की बिंदी के समान है
आइये! मिल कर हम कहें -
सांगोपांग सौन्दर्य से सज्जित
हिंदी ही हमारा अभिमान है .
चाटुपटु तो हमेशा से ही
ReplyDeleteकविता की बिंदी के समान है
आइये! मिल कर हम कहें -
सांगोपांग सौन्दर्य से सज्जित
हिंदी ही हमारा अभिमान है,,,,,,,हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति,,,
RECENT POST बदनसीबी,
ओहो! क्या हुआ ?
ReplyDeleteजो मैं सीधी-सी बात
आपसे यूँ ही कह दे रही हूँ
और कविता के बहाने
आपके भी तहियाये भड़ास को
जो सव्यंग सह दे रही हूँ ...
----------------------------------
काफी तीखा तड़का लगाया है आपने भड़ास में
आपने दिए खोल साहित्यिक-सम्मेलनों के सच
ReplyDeleteकोई भी इनसे पटका खाने में नहीं सकता बच
क्या आपका कोई कविता-संग्रह प्रकाशित हुआ है? यदि हां तो मुझे प्रकाशक का पता देने, और यदि नहीं तो शीघ्र प्रकाशित करवाने का कष्ट करें।
Deleteआपकी बातों से पूर्ण रूप से सहमत हूँ.शायद किसी प्रकाशक की नजर में आ जाये तो दिल की यह अभिलाषा भी पूरी हो जाए तथा हिंदी काब्य को एक अनुपम रचना पाठकों तक पहुँच सके.
Deleteअमृता जी अपनी मेल आईडी vikesh34@gmail.com पर भेज दें।
Deleteआज तो बोलती बंद कर दी आपने...
ReplyDeleteअदि आप चाहे तो इसमें
मेवा-केसर भी मिला सकते हैं
अपने बिलोये मक्खन के सहारे
गले के नीचे भी पहुंचा सकते हैं ...
अति उत्तम...
अनु
ReplyDeleteकलम जाग गई तो सुलाना मुमकिन नहीं होगा ... कलम हर ज़ुबान में बोलेगी
ओहो! क्या हुआ ?
जो मैं सीधी-सी बात
आपसे यूँ ही कह दे रही हूँ
और कविता के बहाने
आपके भी तहियाये भड़ास को
जो सव्यंग सह दे रही हूँ ...
आप भी जानते हैं कि
केवल मिठास कितना घातक है
और हर जगह पेप्सी-कोला को
गट-गट गटकता हुआ चातक है ...
चाटुपटु तो हमेशा से ही
कविता की बिंदी के समान है
आइये! मिल कर हम कहें -
सांगोपांग सौन्दर्य से सज्जित
हिंदी ही हमारा अभिमान है .
ReplyDeleteबढ़िया तरीके से संपन्न हुई है तल्खियों से शुरू हुई रचना .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
.ओहो! क्या हुआ ?जो मैं सीधी-सी बात
आपसे यूँ ही कह दे रही हूँ
और कविता के बहाने
आपके भी तहियाये भड़ास को
जो सव्यंग सह दे रही हूँ ...
(सव्यंग्य शै /शह ?)
वाह अमृता जी फाइव स्टार वाली से भी जायकेदार बनी है आज की कविता... बहुत बढ़िया...
ReplyDeleteबहुत गहरा धोया है, अन्दर तक..
ReplyDeleteये भी जानती हूँ कि
ReplyDeleteफ़ाइव स्टार वाली कविता ही
अब आपको ज्यादा लुभाती है
पर ये खटास/भड़ास भी तो
कुछ जुदा स्वाद ही लाती है ...
बहुत खूब
कविता में तो स्वाद आना ही है :)
सादर !
बहुत बढ़िया.
ReplyDeleteआपकी कविता का अंदाज हमेशा ही निराला होता है.
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (06-02-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
ati utaam....sidha tir nishane pae..wah
ReplyDelete@ ये भी जानती हूँ कि
ReplyDeleteफ़ाइव स्टार वाली कविता ही
अब आपको ज्यादा लुभाती है
पर ये खटास/भड़ास भी तो
कुछ जुदा स्वाद ही लाती है ...
ये भड़ास ही काम आएगी !
शुभकामनायें !
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteकभी कभी ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं..
अच्छी जोर-आजमाइश है-
ReplyDeleteसादर-
आइये! मिल कर हम कहें -
ReplyDeleteसांगोपांग सौन्दर्य से सज्जित
हिंदी ही हमारा अभिमान है .
असंख्य प्रतिशतता के साथ सहमत हूँ.
आपके लिखे का अंदाज़ बहुत ही उम्दा और अलग है.. !
ReplyDeleteकाफी तड़कदार है :-)
ReplyDeleteनिराली कविता ....निराला स्वाद ...
ReplyDeleteवाह अमृता जी, आपने कैसे कैसे नायाब हीरे छुपा कर रखे हैं..बधाई !
ReplyDeleteवाह बहुत ही बढिया
ReplyDeletejaykedar rachna bahut hi pasand aayi
ReplyDeleteचलो, बोला तोह सही,.... आ . अमृता जी ,
ReplyDeleteविन्यासित परम्परा के ढकोसले को कोसते समय
साहित्यिक अभिरुचियों को दर्शाने वाले अभिजात्यों,
से छीनकर हिन्दी की सेवा का भाव समग्र दृष्टिगोचर,
होता हैं परन्तु ड़र रहा हूँ , कहीं आपका प्रशंसक बन
गया तो ...समझो गया काम से मेरे मिलने वाले मुझे
पागल समझने लगेंगे, हिन्दी पढने वाले कितने हैं ?
छूपकर पढ़ने में हिन्दी के रसों अलंकारों भावों सानी
नहीं पर क्या करूं शब्दशिल्प परिकल्पना की लत
जो लगा ली हैं अब छापो ना छ्पो ...लिखते रहिये।।
हाँ वर्तनी की अशुद्धि के लिए माफ़ी नहीं मांग सकता,
कमस्कम कोई सुधारने का प्रयास करने के चक्क्कर
में ही सही हिंदी का पुजारी तो होता है बस मिलकर
अच्छा महसूस कर लेता हूँ ।
अरे मारा गया, आप सभी हिन्दी ब्लॉग लेखक मुझे
माफ़ कीजिए, आज के लिए बहुत ज्यादा हो गया ना ...
फिर मिलेंगे क्या .... ?
बहुत धोया फिर भी लगता है कुछ कसर बाकी है
ReplyDeleteये खटास / भड़ास ही तो कविता में स्वाद लाती है ....
बढ़िया व्यंग्य ।
आप भी जानते हैं कि
ReplyDeleteकेवल मिठास कितना घातक है
और हर जगह पेप्सी-कोला को
गट-गट गटकता हुआ चातक है ...
वाह भई अच्छा व्यंग्य मारा है
बहुत बढ़िया ! यह कविता तो फाइव स्टार वाली कविता से भी अधिक जायकेदार और चटपटी है ! बहुत खूब अमृता जी ! आनंद आ गया !
ReplyDeleteवाह ... लाजवाब अंदाज़ की रचना है ...
ReplyDeleteमज़ा आया ...
wahh...kya andaaz hai ...bahut khhob..
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
बहुत उम्दा है जी यह कविता |मन की पूरी भडांस निकाल डी
ReplyDeleteअदभुत--बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
काले नमक के साथ खट्टी इमली का स्वाद जैसी कविता :)
ReplyDeletekya bat hai..
ReplyDeleteआपकी कविताओं में जीवन की सघनता सतत आकर्षित करती है। जीवन के विरोधाभाषों को चित्रित करने और उसकी विचित्रतता का उपहास भी सहज ही आपकी कविताओं में स्थान पाता है। किसी रचनाकार की विविधतता से उसके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों में विकसित होने और परिपक्व होने की झलक मिलती है। कविता गढ़ने के ऊपर लिखी कविता पढ़ना काफी अच्छा लगा।
ReplyDeleteआप भी जानते हैं कि
ReplyDeleteकेवल मिठास कितना घातक है
और हर जगह पेप्सी-कोला को
गट-गट गटकता हुआ चातक है ...
चाटुपटु तो हमेशा से ही
कविता की बिंदी के समान है
आइये! मिल कर हम कहें -
सांगोपांग सौन्दर्य से सज्जित
हिंदी ही हमारा अभिमान है .
अमृता तन्मय जी बहुत ही सुन्दर अपनी भाषा और अभिव्यक्ति के प्रति प्रेम
बिल्कुल ही अलग अंदाज में सटीक बात कही गई..
ReplyDeleteसच में मजा आया.
ReplyDeleteaapki lekhan shaili kamaal ki hai :)
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द प्रवाह !
ReplyDeleteजहाँ अपनापन और अपनत्व है वही श्रेयस्कर है
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete