धर्मिष्ठा ने
धरा पर धर दिया
योगस्थ यश को
धरा के समान ही
सागर सुखाती हुई
बनी रही धरोहर
***
धर्षिता ने
धूल को रोक लिया
अपने यश के घेरे में
धरा सींचती रही
एक यश-वट
सिद्ध होते अर्थों से
***
धरनी ने
ग्रह-गोचर चलने दिया
योगात्मक गति में
अपनी ग्रह-यात्रा को
स्थिर कर , करती रही
उसके लिए ग्रह-यज्ञ
***
धर्माभिमानिनी ने
अर्थ अपना सिद्ध किया
राहु-स्पर्श से
सिद्धांतहीन यश
ग्रहण मुक्त होकर
धरा पर बिखरा है
***
धन्या ने
धन गंवाया , धन्य किया
सिद्ध अर्थ के यश को
इसीलिए तो धरा पर
यशोधरा धरती है देह
अपने बुद्ध के लिए .
धर्मिष्ठा - धर्म पर स्थित रहने वाली
योगस्थ - योग में स्थित
धर्षिता - पराजित स्त्री
धरनी - हठी , जिद्दी
ग्रह-यज्ञ - ग्रहों को शांत करने के लिए किया जाने वाला यज्ञ
धर्माभिमानिनी - अपने धर्म पर अभिमान करने वाली
राहु-स्पर्श - कोई भी ग्रहण
धन्या - श्रेष्ठ कर्म करने वाली
इसीलिए तो धरा पर
ReplyDeleteयशोधरा धरती है देह
अपने बुद्ध के लिए .
.......................................
अगर ईमानदारी से कहूं तो मात्र दस फीसदी ही समझ पाया...
राहुलजी , आपकी कोमेंट देख कर मुझे लगा की आप तो कम सेकम १० % भी समझे मै तो लगातार समझने की ही कोशिशों में लगा हूँ.ऐसा लगता है की यशोधरा एक प्रतीक है उस आधी आबादी की जिसके पास एक गहरी कशिश है सिद्धार्थ के उत्तराधिकार राहुल के सींचते रहने का.एक ऐसी कीमत जो स्वयम को मिटा कर बुधात्त्वा को पनपा देती है.
Deleteजी बीर साहब ..यकीनन आपने रास्ता दिखाया ..
Deleteकीमत यक़ीनन न समझ आने से बढ़ी हैं,किन्तु एबस्ट्रेक्ट आर्ट सा यह कवित्त "क्षणिका" की श्रेणि का ना होकर छद्म रहस्यवाद से प्रेरित अवश्य हैं, ... और इस प्रयास को सराहा जा सकता हैं पर लोकप्रियता की दृष्टि से शंकित होना स्वाभाविक हैं । ... आ.बीर जी एवं श्रद्धेय राहुल जी आपकी साहित्य सेवा भावना को नमन ... एक शुभेच्छु
Deleteकविता में समाये प्राण को बीर जी ने सबके सामने ला खड़ा किया है ... बहुत आभार ...
Deleteअप्रतिम . अशेष शुभकामनाएं ..
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteयहां जो कमेंट आएं है, मुझे एक संदर्भ याद आ रहा है। बात पुरानी है, राजस्थान में एक कवि सम्मेलन में स्व. महादेवी वर्मा जी मौजूद थीं। मुख्य अतिथि उस समय मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ पहाडिया थे। महादेवी ने काव्यपाठ किया, उसके कुछ देर बाद मुख्यमंत्री को वापस जाना था, तो वो मंच पर आए और कहाकि महादेवी जी जब में पढ़ता था तब भी आपकी कविता मेरी समझ में नहीं आती थी, आज मैं मुख्यमंत्री हूं तब भी आपकी कविता समझ में नहीं आई। महादेवी जी को बहुत दुख हुआ और उनके आंसू निकल गए। बहरहाल उसके बाद एक कवि ने एक रचना पढ़ी थी....
ReplyDeleteइस देश में ऐसी रचनाएं क्यों लिखी जाती है,
जो राजस्थान के मुख्यमंत्री की समझ में नहीं आती हैं।
खैर ! अच्छी रचना है अमृता जी।
शुभकामनाएं
गहरी..
ReplyDeleteउत्कृष्ट ...दो बार पढ़ा समझने के लिए :)
ReplyDeleteमैं तो इतनी अच्छी हिंदी देख कर अमृता जी को धन्यवाद देती हूँ .........बहुत ही गहरी रचना है
ReplyDeleteकविता पढ़ते हुए मुझे लगा कि आज मुझे झिझकते हुए कहना होगा कि बहुत क्लिष्ट हिंदी है...समझने के लिए कुछ मदद करें...
ReplyDeleteमगर यहाँ तो सभी हमारी तरह सोच रखते हैं (आशीष जी को छोड़ कर )
:-)
जितनी समझी उतनी बहुत सुन्दर...
अनु
वाह!
ReplyDeleteआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 25-02-2013 को चर्चामंच-1166 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
.
ReplyDeleteअमृता जी ,
ReplyDeleteहम कम पढ़े कहाँ जाएँ भाई ??
इस ध में बड़ी धनक है !!
ReplyDeleteअमूर्त से भाव -गलत अर्थ समझने से बेहतर है समझने का हठात प्रयास न किये जायं -नहीं तो कभी कभी लोग वह अर्थ लगा लेते हैं जिसे रचनाकार ने स्वप्न में भी नहीं सोचा होता :-)
ReplyDeletedarshnik abhivykati ki amurtata ko jivnt kari prastuti,behatareen
ReplyDeleteअमृताजी, हिंदी काब्य के प्रेमिओं की जो नयी जमात है उसे हलकी सी मिटटी में मूंगफली फोड़ फोड़ कर timepas वाली मानसिकता है.आप जैसी गहरी भावानुभूति युक्त काब्य धारा का प्रवाह अच्छा तो लगता है पर थोडा सन्दर्भ की और इशारा बोधगम्य हो जाता .हिंदी के स्वर्णिम युग के कविओं जैसे निराला ,महादेवी, जैसे लोगों के बाद पहली बार लग रहा है की हिंदी काब्य को आप जैसे कवियत्री की सेवा मिली है और रहस्य प्रेम ,समर्पण की नयी धरा भी .सदा इसी भांति लिखते रहीए.
ReplyDeleteआभार आदरेया -
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ||
अच्छी प्रस्तुति !!
ReplyDeleteक्या बात है ... सबको नि:शब्द कर दिया आपने
ReplyDeleteबहुत खूब
अमृता जी आपकी कविता आज अद्भुत जीवन दर्शन से भरी है .....बड़ी ही गर्व की अनुभूति हो रही है ........आपकी हिन्दी सेवा को,आपकी भावनाओं को ,आपके प्रयासों को नमन ....!!
ReplyDeleteआज बहुत देर लगी आपकी कविता पूरी समझने में....अगर आप कठिन शब्दों के अर्थ दे दें तो संभवतः आसानी से आपका काव्य समझ मे आ जाएगा ...
पुनः क्षमा प्रार्थी हूँ . मुझे शब्दार्थ देना चाहिए था, अनुपमा जी ...भविष्य में ऐसी भूल नहीं होगी.
Deleteसुन्दर आनुप्रासिक अभिव्यक्ति गूढार्थ लिए .बूझ रहें हैं हम भी वागीश जी के सौजन्य से दोबारा आते हैं टिपियाने पहले बूझ लें .डॉ अरविन्द से सहमत .
ReplyDeleteजिन्हें समझ आया हो वह औरों को भी समझा दें .समझाने वालों से मैं बाद में संपर्क करूंगा .अभी अपने वागीश मेहता जी धूप सेंक रहे हैं उत्तर भारत की ठंड में हम तो यहाँ मुंबई में पंखा चलाये बैठे हैं .
ReplyDeleteबहर-सूरत जिसने धर्म को धारण किया हो वह धर्मिष्ठा ,जिसका भाग्य धन्य हो गया हो वह धन्या ,धरनी कहते हैं पृथ्वी को .
जैसे रूप गर्विता होती है ,मानिनी राधा है वैसे ही धर्माभिमानिनी होती है धर्म पे अभिमान करने वाली धर्मवती .शब्दार्थ तो यह हैं मुश्किल शब्दों के अर्थों के साथ लौटता हूँ .धैर्य रखें थोड़ा सा .कवियित्री के साथ पूर्ण न्याय किया जाएगा .यह हमारा वायदा है ...
अमृताजी ..हर बार की तरह कई बार पढ़ने पर समझ पाई...पर जब समझ आई ...तो बहुत पसंद आयी.....हर क्षणिका ....साभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
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ReplyDeleteधर्मिष्ठा ( धर्म+निष्ठा= धर्म के प्रति आदर का भाव )
धर्माभिमानिनी ( धर्म+अभिमानी = धार्मिक संकारों पर गर्वित होने वाली संन्नारी )
ने धार्य ( धारणेय या धारण कर ) कर धर्षिता( क्षरण, रज संरक्षित करने वाली) को धरनी( भूमि, धरा, पृथ्वी) धरोहर धान्या ( बीज-कोष, अन्नपूर्णा )में धारण किया ...| साधू .......
अमृता जी, उपर की टिप्पणियां पढ़ी, कविता समझना वाकई मुश्किल है, बात सिर्फ क्लिष्ट शब्दों की नहीं है, बात भावों के सम्प्रेषण की भी है, अगर आप कविता का सन्दर्भ, या इसके पीछे के अपने भाव लिख देती तो बेहतर होता. आप भाग्यशाली हैं कि इसके बाबजूद आपको इतने सारे कमेंट्स मिले, वरना आज किसको समय है, अधिकांश लोग तो कविता को देख कर ही आगे बढ़ जाते हैं.
ReplyDeleteaapko padhna shayad khud ke liye behtar hai...
ReplyDeleteshayad is tarah meri hindi me kuchh behtaree ki gunjaish bane...:)
gajab ka likhti hain aap... shubhkamnayen..:)
हिंदी पढ़ने वाले अलग अलग वर्गों की और से ये ही कहूँगी कि कविता में कुछ सरलता बनी रहनी चाहिए ...ताकि पढ़ने वाले आसानी से समझ सके ....आज कल इतनी गूढ़ हिंदी बिना अर्थ के किसी को समझ नहीं आती ...जब सरस जी जैसो को पढ़ने में मुश्किल हुई तो बाकि की तो बात ही छोड़ देनी चहिए ....सादर
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ReplyDeleteये पाँचों बिम्ब धर्मी क्षणिकाएं अंत :संगती में बंधी हैं .ये अंत :संगती है संस्कृति और विकृति की .वस्तुत :संस्कृति और विकृति का द्वंद्व सनातन भाव से व्यक्ति चित्त पर घटित होता रहता है
.मनुष्य ,व्यक्ति सत्ता से मुक्त होते ही , समष्टि हो जाता है और समष्टि भाव से विरत होते ही वह व्यष्टि में सीमित हो जाता है .इस प्रकार पाँचों क्षणिकाएं प्रतीक अर्थ को व्यक्त करती हैं .यह
प्रतीकत्व वाच्यार्थ में नहीं ,लक्षण अर्थ में निहित है .धर्मिष्ठा ,धरनी और धन्या त्याग ,उपकार और परमार्थ की वाचक हैं .जबकि धर्षिता और धर्माभिमानिनी एक ही सिक्के के दो पहलु हैं .
एक के व्यक्तित्व को परवशता ने गढ़ा है तो दूसरे का व्यक्तित्व ही
एहम और महत्त्व कांक्षा ओं के हाथों गढ़ा गया है .
लक्षनीय बात यह है ,पाँचों क्षणिकाओं में धरनी तत्व है .यह धरनी
तत्व ही सृष्टि को धारण करता है .पर व्यक्ति का स्वार्थ और एहंकार
धरनी की इस धार्यता को कलुषित करता आया है .कवियित्री का मन
धरती की धार्यता के प्रतीकत्व में चिंतनशील है .विकृति पक्ष को
दिखाकर भी
वह संस्कृति के वरण पक्ष में है ,संस्कृति के वरण का आवाहन करती
है
.वस्तुत :प्रतीक अर्थों से ही कवियित्री की मन:चेतना को समझा और
पढ़ा
जा सकता है .शब्दार्थ को अग्रसारित कर रचना के अर्थ को
समझनाकवियित्री की रचना धर्मिता के साथ न्याय न होगा .
-डॉ वागीश मेहता
प्रस्तुति :वीरू भाई (वीरेंद्र शर्मा )
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
प्रस्तुति
Saadho , Dr. Mehta ....
Deleteधन्या ने
ReplyDeleteधन गंवाया , धन्य किया
सिद्ध अर्थ के यश को
इसीलिए तो धरा पर
यशोधरा धरती है देह
अपने बुद्ध के लिए .
सभी क्षणिकाएँ सुंदर और गूढ़ भाव संजोये सार्थक सन्देश देती हैं.
BlogVarta.com पहला हिंदी ब्लोग्गेर्स का मंच है जो ब्लॉग एग्रेगेटर के साथ साथ हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट भी है! आज ही सदस्य बनें और अपना ब्लॉग जोड़ें!
ReplyDeleteधन्यवाद
www.blogvarta.com
धन्या ने
ReplyDeleteधन गंवाया , धन्य किया
सिद्ध अर्थ के यश को
इसीलिए तो धरा पर
यशोधरा धरती है देह
अपने बुद्ध के लिए .
नयापन लिए हुए .....अच्छी लगीं सभी क्षणिकाएं
where is my comment?
ReplyDeleteवैदिकता तथा आधुनिकता का युद्ध। वैदिकता के लिए इच्छित, आधुनिकता से ग्रसित।
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाएं. जब से वापस हिंदी से वापस जुड़ा हूँ, इससे बेहतर काव्य , भाषा और निहित भावनाएं नहीं पढ़ी है. ये उत्कृष्ट नमूना है.
ReplyDeleteहजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने लिखा है- वे बड़भागी होते हैं जो कवि की भावदशा के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं।
ReplyDeleteकवि की भावदशा से तादात्म्य स्थापित करना एक कठिन कार्य है, तदापि, पाठक अपनी भावदशा के अनुसार काव्यार्थ का संसार सृजित कर ही लेता है।
सम्प्रेषण की क्लिष्टता के बावजूद काव्यरस का आनंद तो मिला ही !
क्लिष्ट परन्तु उत्कृष्ट ।
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