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Saturday, February 9, 2013

कोई खोपड़ा-फिरा खोट है ...


               मनुष्यता में ही मनचला-सा
                कोई खोपड़ा-फिरा खोट है
                या सभी खोपड़ियाँ पर ही
                एक-सी लगी कोई चोट है

                सारे के सारे स्मृति के तंतु
                जो ऐसे अस्त-व्यस्त से हैं
                मानो बेहोशी- कोमा में ही
               जैसे कि सब सन्यस्त से हैं

                या कोई स्मृति-चोर कहीं
                सबों को ऐसे ही लूट गया
               कि होश से ही सारा संबंध
               लगता तो है कि टूट गया
             
                होश की सच्ची कहानियां
               अब बेहोशी ही लिख रही है
               तब तो मलकाए मीडिया में
               एक हलचल-सी दिख रही है

               चारों तरफ हैं वेंटिलेटर लगे
              पर सांस भी लेना मुहाल हुआ
              मिनरल-वाटर अभियान देख
               होश का भी है अब होश उड़ा

              खोई विस्मृति गली-कूचों से
              अपना नाम-पता पूछ रही है
              तल्खी से हर खुदे तख्ते को
              दादा-परदादा का बूझ रही है

               होश को भी हाइजैक करते
               स्मृति के इतने हैं तंग तंतु
              क्लोरोफार्म के विज्ञापन में
              ज्यों जौंकते से हैं जीव-जंतु

               सब तो एक- दूसरे को ही
              कैसे बेहोश-सा बता रहे हैं
             हाय! अब कौन यह कहे कि
           बताकर ही कितना सता रहे हैं .


28 comments:

  1. होश को भी हाइजैक करते,स्मृति के इतने हैं तंग तंतु ...वाह , साधू आ. अमृता जी इस कविता ने हाइकू के नए आयाम ढूंढ निकाले ...

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  2. होश को भी हाइजैक करते
    स्मृति के इतने हैं तंग तंतु
    क्लोरोफार्म के विज्ञापन में
    ज्यों जौंकते से हैं जीव-जंतु,,,,

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,,

    RECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...

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  3. सब तो एक- दूसरे को ही
    कैसे बेहोश-सा बता रहे हैं
    हाय! अब कौन यह कहे कि
    बताकर ही कितना सता रहे हैं .
    ................
    ....................
    सुन्दर.....

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  4. होश की सच्ची कहानियां
    अब बेहोशी ही लिख रही है
    तब तो मलकाए मीडिया में
    एक हलचल-सी दिख रही है


    Bahut Badhiya....

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  5. होश की सच्ची कहानियां अब बेहोशी ही लिख रही है... वर्ना जो हो रहा है वो ना होता... सच्ची बात कह दी आपने

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  6. सब खोपड़ी.........के स्‍थान "सभी खोपड़ियां" करने का कष्‍ट करें। भाव-धरातल पर आत्‍मा तक को झकझोर देनेवाली आपकी कविताओं में ऐसी गलतियां अखरती हैं।

    होश को भी हाइजैक करते
    स्मृति के इतने हैं तंग तंतु
    क्लोरोफार्म के विज्ञापन में
    ज्यों जौंकते से हैं जीव-जंतु .......बहुत गम्‍भीर।

    व्‍यवस्‍था की कटुता पर प्रभावकारी पंक्तियां........... चारों तरफ हैं वेंटिलेटर लगे
    पर सांस भी लेना मुहाल हुआ
    मिनरल-वाटर अभियान देख
    होश का भी है अब होश उड़ा

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  7. सच को टटोलती रचना
    बधाई

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  8. खोई विस्मृति गली-कूचों से
    अपना नाम-पता पूछ रही है
    तल्खी से हर खुदे तख्ते को
    दादा-परदादा का बूझ रही है

    बहुत प्रभावशाली रचना...तीखा कटाक्ष...

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  9. सब शब्द जबरदस्त .. खोपड़ा शोर करता है .....

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  10. निःशब्द करती विचारणीय रचना जहाँ विचारों का अवगुंठन स्पष्ट दिखलाई देता है ...

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  11. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल रविवार 10-फरवरी-13 को चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है.

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  12. ज़बरदस्त चोट है ... वाकयी खोपड़ियों में खोट है ।

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  13. होश की सच्ची कहानियां
    अब बेहोशी ही लिख रही है

    होश में सच हलक से बहार आ कहाँ पाता है. सुन्दर लिखा है.

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  14. कविता को कवयित्री के भावभूमि पर समझने की कोशिश कर रहा हूं। फिलहाल ... इतना ही कहूंगा कि इस कविता में वैश्वीकरण, उपभोक्तावाद और बाज़ारवाद की सूक्ष्म जांच-पड़ताल और इसकी भयावह प्रवृत्तियों की पहचान की गई है। जीवन के हर क्षेत्र में बाज़ार ने सबसे शक्तिशाली हैसियत हासिल कर ली है। वह समाज की दिशा तय कर रहा है। व्यक्ति असहाय और ठगा महसूस कर रहा है।

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  15. Sarthak rachna....aaj ki mansikta par teekha kintu soch ar kiya Gaya kataksh......

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  16. प्रभावी रचना

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  17. बहुत ऊंचे पाए की परिवेश प्रधान रचना लिखी है आपने .सारी व्यवस्थाएं कृत्रिम सांस ,हार्ट लंग मशीन पर हैं ,पंगु हैं ,उलटी गिनती शुरू हो चुकी है इनकी .


    शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .हमारी महत्वपूर्ण धरोहर बन जातीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .उत्प्रेरक का काम करतीं हैं आपकी टिप्पणियाँ .नव सृजन की आंच बनतीं हैं .

    होश के लम्हे नशे की कैफियत समझे गए हैं ,

    फ़िक्र के पंछी ज़मीं के मातहत समझे गए हैं .

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  18. वाह ..वाह ...बहुत खूबसूरत ख्याल ...सुन्दर शब्द संयोजन।

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  19. सारे के सारे स्मृति के तंतु
    जो ऐसे अस्त-व्यस्त से हैं
    मानो बेहोशी- कोमा में ही
    जैसे कि सब सन्यस्त से हैं

    बहुत सुन्दर ।

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  20. होश को भी हाइजैक करते
    स्मृति के इतने हैं तंग तंतु
    क्लोरोफार्म के विज्ञापन में
    ज्यों जौंकते से हैं जीव-जंतु ..

    रचना का हर छंद अलग अंदाज़ का है ... बहुत ही लाजवाब ...

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  21. चारों तरफ हाहाकार .....
    लाजवाब अभिव्यक्ति ....

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  22. `हालात ऐसे ही हैं और इसी में रहना भी है!

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  23. ईश्वर
    दार्शनिकों आध्यात्मिक लोगों के लिए
    ईश्वर को खोजने की कोशिशों के पहले
    कुछ चीजें जान लेना
    सपने, विचार, यादें, भाव और कुछ शारीरिक हलचलें ।

    इन शब्दों पर विचार करें
    मगज, चैंथी, छोटा दिमाग, सिर का पिछला हिस्सा
    सिर में एक कम्प्यूटर चिप, कम्प्यूटर,
    सुपर कम्प्यूटर, सूचना प्राैद्योगिकी ।

    कुछ आपके आसपास की चीजें,
    आपके विचार, अन्य लोगों के आपके बारे में विचार,
    आपकी याददाश्त, कुछ और बातें,
    इतनी चीजों को समझ लो ।

    समझ मंे आने पर
    इन बातों को तब तक सार्वजनिक न करना
    जब तक तनिक सा भी संशय हों,

    ये जो आपने जाना
    यह तो सिर्फ विज्ञाना है
    वह भी मनुष्यों का ।

    वे मनुष्य जो स्वयं सर्वज्ञाताा नहीं हैं,
    कुछ क्षेत्रों का उनको भी ज्ञाना नहीं है,
    उन लोगों और कम्प्यूटर को ईश्वर न कहना ।

    अब आप तैयार हैं ईश्वर को जानने के लिए,
    प्रकृति के रास्ते से तलाश शुरू कर सकते हैं,
    और....ढूढ़े......ढूढते रहे,
    वो भी आपको ढ़ूढ़े ऐसी आशा करता हॅंू

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  24. सुन्दर रचना

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