अज्ञात किसी क्षण सहसा
क्यों बेचैन हो उठता है मन
और अचानक कहीं गहरे में
उभरकर बिखरने लगती है
संवेदनाएं बेतरतीब.....
मैं उन्हें समेटना चाहती हूँ
तुम्हारे आशा के अनुरूप
अभिव्यक्ति देना चाहती हूँ
उन अव्यक्त विचारों को
जो अभिशप्त है मौन के लिए
और नियति बन जाती है जिनकी
वेदना-कुछ अजीब........
मैं उन्हें सहेज लेना चाहती हूँ
आत्मस्वरूप अहसास के
गहरे अनुभूतियों से
परन्तु अभिव्यक्ति कैसे दूँ?
जब मुझमें मैं ही न रही
क्योंकि आज जो सोचती हूँ
वो चिंतन तुम्हारे हैं
लिखती हूँ तो
शब्द भी तुम्हारे हैं
जीना चाहती हूँ तो
जीवन की शक्ति भी
या यूँ कह लो कि
सम्पूर्ण जीवन में
समा गए हो तुम
प्रेरणा बन कर .
सम्पूर्ण जीवन में
ReplyDeleteसमा गए हो तुम
प्रेरणा बन कर
-सुन्दर |
जब सब कुछ उसका हो जाता है वहाँ मै नही रहता…………बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteपरंतु अभिव्यक्ति कैसे दूं, जब मुझमें मै नहीं।
ReplyDeleteवाह.. क्या कहने है। हर बार की तरह एक बार फिर बेहतरीन रचना।
ईश्वर से कामना है ..ये मौन भी आपका मुखरित हो उठे ..और फिर बहता रहे झर-झर रचनाओं का या झरना ...अनवरत ...!!
ReplyDeleteमनोद्गारों सहज अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteधन्य हुआ पढ़कर ||
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ||
बहुत खूबसूरती से लिखे एहसास ... मैं ...तुम बनने के बाद अलग कहाँ रहता है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संयोजन मनोभावों का
ReplyDeleteमेरा भी मानना है...प्रेम ताकत बने...कमजोरी नहीं...और प्रेरणा बन जाये...तो बात बन जाए...
ReplyDeletebehtreen shabdo ka chayan... sunder abhivakti...
ReplyDeleteसच में प्रेम के भाव प्रेरित करें तो जीवन को नयी दिशा मिल जाती है.....
ReplyDeleteअमृता, प्रेरणा ही जीवन को शक्ति देती है...मौन तब अभिशप्त होता जब उसे स्वर नहीं मिलता...मुखरित मौन तो प्रेरणादायी चिंतन की प्रखर वाणी है...आपकी शब्दों पे पकड़ जबर्दस्त है और कथ्य पर भी...बहुत ही उम्दा रचना है...जिस तरह से आप अपनी सोच को एक आयाम देती हैं,उससे स्वतः ही एक निर्झरा कविता की फूट पड़ती है, जिसमे भींग के मन प्राण सुवासित हो जाता ....बहुत बढ़िया...मुझे तो लगता है की आप से प्रेरणा लेनी चाहिए एक सशक्त विचारों की वेगवती धार को दिशा किस तरह से दी जाये...अभिभूत हूँ...
ReplyDelete"मैं" की अभिव्यक्ति स्वयं को भी नहीं जीत पाती.
ReplyDeleteऔर "तू" की अभिव्यक्ति खुदा को भी जीत लेती है.
उसको लिखने दीजिये ,निमित भव.
एक और अनमोल रचना के लिए बधाई.
मन की अभिव्यक्ति सुंदर तरीक़े से व्यक्त हुई है।
ReplyDeleteजो प्रेरक है वह मार्ग प्रदान करेगा ही
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
मै और तुम से निकल कर हम बन जाए . सुगंध और सुमन की तरह एक हो जाने पर प्रेरणा "हम" बन जाती है .
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteएक बार फिर 'तन्मय' कर दिया आपने.
किसी से इर्ष्या करने को मन सहसा हो आया
ReplyDeleteहै कौन वह देव- सदृश जो प्रेरणा बन कर आया
जब उसके हाथों की कठपुतली बन ही गया कोई तो यह भी क्यों कहे कि क्या करे, जो वह कराए हो जाने दे न कराए तो कोई बात नहीं... सुंदर रचना !
ReplyDeleteमुझे लगता है कि कुछ भी इस कविता के लिये लिखना , इस कविता के भाव के साथ खिलवाड़ करना होंगा . मैं सुबह से इसे कई बार पढ़ चूका हूँ. प्रेम के जिस अन्तरंग भाव और उन भावो की अनुभूतियो को जिस तरह से सुन्दर शब्दों से सजाया है , वो सिर्फ आप ही कर सकती हो ..
ReplyDeleteआभार
विजय
maun bhaw se samajhnewali rachna
ReplyDeleteजवाजे इश्क की कतरन को लेके अब भी बैठा हूँ
ReplyDeleteये कैसी हर्फे ग़ुरबत है मैं तेरा नाम लिखता हूँ
भावुकतापूर्ण प्रेरणा कभी लाभदायक हो भी सकती है. हमेशा नहीं.
ReplyDeleteसुंदर सृजन.
सुन्दर मनो भाव से लिखी सुन्दर रचना...
ReplyDeletewaah ....
ReplyDeleteजो कुछ तुमने कराया कर गया........बहुत खूब.......सुन्दर अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteतेरी ही बात से बनती है बात मेरी....बहुत खूब .....सुभानाल्लाह|
ReplyDeleteprerana ki shakti....bahut sunder bhav hai...
ReplyDeleteमन के भावों को संकलित कर दिया है बहुत खूबसूरती से.
ReplyDeleteसुंदर सृजन. सुंदर प्रस्तुति.
Prerana agar prem ho to janm sarthak ho jata hai.bahut achchhi lagi .aabhar
ReplyDeleterachanaa ne man moh liya . kabeer ne kahaa thaa sambhawtah ,
ReplyDelete"jab main tha tab hari naheen ,
ab hari hai main naahin ;
prem galee ati saankaree
tamen do na samaahin ."
bahut gaharee abhivyakti hai aapkee . badhaayiaan!
गहरे भावों वाली सुंदर कविता।
ReplyDeleteप्रेम की अविरल धार में बहती रचना ... अति सुन्दर ...
ReplyDeleteBAHUT ACCHA
ReplyDeleteअसीम शक्ति से एकाकार हुई रचना ...
ReplyDeleteमौन को मुखर करती अभिव्यक्ति ...
समर्पण । मै मै न रही
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति............
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण
Amrita,
ReplyDeleteKISI KO HRIDEY KI GAHRAI SE AUR BHAWNA SE BHARPOOR DHANYAWAD KAHNE KI BAHUT ACHHI KAVITA.
Take care
परन्तु अभिव्यक्ति कैसे कह दूं ,
ReplyDeleteजब मुझमें मैं नहीं ।
राधा भाव की कविता ।
एक बार राधा ने कृष्ण से पूछा -कृष्णा तुम प्रेम तो मुझसे करते हो और ब्याह किया रुकमनी से,दूसरी से किया -दी अदर वोमेन -कृष्ण ने कहा राधा तुम्हारे -मेरे बीच ये दूसरा कौन है ?कहाँ है ?
किसी प्रेरणा के बिना जीवन नीरस हो जाये!
ReplyDeleteज़बरदस्त अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteexcellent and motivating..
ReplyDeleteamrita ji
ReplyDeletebahut bahut hi gahan bhav parilakxhit hote hain aapki is rachna me .
jab( main aur tum)dono ek ho gaye to ekakar ho gaye fir main ka astitv alag nahi ho pata.
bahut hi behtreen abhivykti ke liye----
hardik badhai
poonam
सूक्ष्म एवं गहन भावों की चित्ताकर्षक प्रस्तुति ............सुन्दर रचना
ReplyDeletebahut sunder likha hai aapne..
ReplyDeletebahu hi acha likha hai apne......jai hind jai bharat
ReplyDeleteumda , sunder sabdi se sajaya hai apne apni soch ko ......sunder rachna ke liye hardik badhai
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