अभिसंयोग के
उन अभिभूत क्षणों में
उन....उन..... क्षणों में
अभिज्ञात होता है मुझे
अतिशय अलौकिक स्पर्श
मानो मुझमें ही कोई
या.....या......या ....वही
आकार लेता है
वह अद्भुत,मृदु छवि
वह..... मनोहर काया
प्रेम करता है.... मुझे...
...प्रेम.....प्रेम.....प्रेम....
...हाँ.....वही... दिव्य प्रेम.
...बरसती रहती है...
....बूंदे......बूंदे.......बूंदे....
..बूंदे.....आनंद की बूंदे..
..भींगता रहता है..
...तन...........मन....
..और.......और......
........और.............
मैं.........रहती हूँ
..उन्ही क्षणों में...
............हर क्षण .
.......वह क्षण है........
हर क्षण......हर क्षण....
....उस क्षण पर.....
हो गया है...मेरा....मेरा....
..ये.............. जीवन
....समस्त .......जीवन
.................अर्पण .
उन अभिभूत क्षणों में
उन....उन..... क्षणों में
अभिज्ञात होता है मुझे
अतिशय अलौकिक स्पर्श
मानो मुझमें ही कोई
या.....या......या ....वही
आकार लेता है
वह अद्भुत,मृदु छवि
वह..... मनोहर काया
प्रेम करता है.... मुझे...
...प्रेम.....प्रेम.....प्रेम....
...हाँ.....वही... दिव्य प्रेम.
...बरसती रहती है...
....बूंदे......बूंदे.......बूंदे....
..बूंदे.....आनंद की बूंदे..
..भींगता रहता है..
...तन...........मन....
..और.......और......
........और.............
मैं.........रहती हूँ
..उन्ही क्षणों में...
............हर क्षण .
.......वह क्षण है........
हर क्षण......हर क्षण....
....उस क्षण पर.....
हो गया है...मेरा....मेरा....
..ये.............. जीवन
....समस्त .......जीवन
.................अर्पण .
ma !
ReplyDeleteऔर वो क्षण ही सबकुछ होता है , और इस अद्बुत क्षण में घटित होता है सिर्फ प्रेम ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता जी
भावविभोर कर देने वाली कविता है.
ReplyDeleteसादर
मधुर काव्य अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteक्या बात है, अद् भुत
ReplyDeleteआपको बधाई
क्यों न हो ...दिव्य प्रेम पर जीवन अर्पण ...है मन आपका दर्पण ...
ReplyDeleteमन उल्लासित कर रही है आपकी कृति....
बधाई ..एवं शुभकामनायें ...!!
प्रेम की दिव्य ज्योति से आलोकित है संसार , बस देखने की दृष्टि और महसूस करने के लिए ह्रदय होना चहिये .. तेरा तुझको अर्पण .सुँदर भावप्रवण रचना .
ReplyDeletebahut hi badhiyaa ...
ReplyDeleteयह तो बस वही ..चरम आनंद की अनुभूति है -अध्यात्मी इसे ही सत चित आनंद कहते नहीं अघाते ...
ReplyDeleteतनिक अभिसंयोग और अभिज्ञात में से अभि हटाकर तो देखें!
वाह! क्या सुन्दर अर्पण है, अमृता जी.
ReplyDeleteआनंद ही आनंद है बस.
अदभुत 'तन्मयता' का अनुभव हो रहा है.
बहुत बहुत आभार.
कविता का फ़ॉर्मेट ऐसा है जो काव्य के भावभूमि के अनुरूप है और रचयिता के भाव को अभिव्यक्त कर रहा है। शब्द शिल्प और भाव एक दिव्य ज्योति का प्रदर्शन कर रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना।
ऐसे क्षण आपके जीवन में बार-बार आयें...जीवन बहुत बड़ा है...और हर क्षण का अपना महत्व...दुःख के भी और सुख के भी...
ReplyDeletePrem kuchh is tarah hi abhibhoot kar deta...ki swa twa me vileen hokar swatwa ho jata...ya fir tatva sa udbhasit...
ReplyDeleteBehad darshnik aur prem ras se pagi kavita...prem ko anubhooti ko tanmayata se likha hai tumne Amrita...Badhayee.
Prem ka adbhut arpan...kamal
ReplyDelete.हर क्षण .
ReplyDelete.......वह क्षण है........
हर क्षण......हर क्षण....
....उस क्षण पर.....
हो गया है...मेरा....मेरा....
..ये.............. जीवन
....समस्त .......जीवन
.................अर्पण .
बहुत सुन्दर ...
गहन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeletemarmik abhivakti....
ReplyDeleteएक नए अंदाज में प्रस्तुत किया भाव ...क्या अर्पण है ..बस समर्पण ही समर्पण है ...आनंद है ..!
ReplyDeleteअद्भुत रचना है आपकी,
ReplyDeleteबधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सोचती....और.....सोचती सोच जहाँ पहुँची वहीं तो पहुँचना था. बहुत अच्छी कविता.
ReplyDeleteप्रेम होता ही ऐसा है जिसमें न चाह कर भी अपना सब कुछ अर्पित हो जाता है. बहुत सुन्दर अनुभव बधाइयाँ
ReplyDeleteउस ऐसे क्षण में जब बूँद अमृत बन जाती है ... जीवन प्रेम अमर हो जाता है ..
ReplyDeleteबहुत गहन अनुभूति को शब्दों में बांधने का सामर्थ्य दिखाया है आपने......पर कुछ भाव शब्दों से परे ही जिए जाते है.........ये तीन...तीन बार का प्रयोग हिमेश रेशमिया की याद दिला गया :-)
ReplyDeletebahut sundar samarpan bhav se bhari kavita amrita ji aabhar.
ReplyDeleteAmar prem ki amar katha. behtareen!
ReplyDeleteसुन्दर काव्यात्मक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteA poem with sublime feelings!
ReplyDeleteसुन्दर रचना....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अमृता जी - कमाल का भाव प्रेषण - शुभकामनाएं.
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
पूर्णानंद ,पूर्ण -समर्पण ,दिव्यअनुभूति की कविता .इन ही क्षणों में दिनकर ने कहा होगा -सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता कुसुम या कामिनी हो .
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअंतर्मन से उपजी सम्वेदन शीलरचना.
ReplyDeleteरिक्त स्थान में भी गहन अर्थ छिपा है
ReplyDeleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार ( 09-07-11 )को नयी-पुरानी हलचल पर होगी |कृपया आयें और अपने बहुमूल्य सुझावों से ,विचारों से हमें अवगत कराएँ ...!!
ReplyDeletebahut hi gahan abhiwykti...........jai hind jai bharat
ReplyDeleteAmritajee, mata aur putra , pati ewam patnee , mitra aur mitra tathaa bhakta aur ishwar ke beech prem hee to pradhaan tatwa hai . apanee rachanaa premanjali se :
ReplyDeleteyahee prem sachchidaanand hai ,
yahee prem amrit hai ;
jismen milataa naheen
manuj wah jeewit hokar mrit hai.
aur Kabeer ne to prem ko hee panditya kee kasautee banaa diyaa .