नियत ताप पर
उबलते विचार
भाप बन उड़ जाते
या जल जाते तो
मर जाता मन
नौ रसों के साथ..
और छूट जाता
बेकार सा करते रहना
निरर्थक जतन...
जीवन सरल हो जाता
झोपड़ी महल हो जाता.
शून्य भी दिखता
कुछ भरा-भरा
सांय-सांय करती
हवाएं भी
एक छोर से दूसरे छोर तक
करती रहती अठखेलियाँ
जिसके संग
मन भी हवा बन जाता
और रह जाता
अपने बालपन में ही.
सच! सबकुछ
कितना सरल हो जाता.
पर
नियत ताप पर भी
उबलते विचार
उफन-उफन कर
लगते हैं गिरने
बूंदों में ही सही
और हर बूंद
बराबर हो जाता है
एक-एक
परमाणु बम के.....
अपने अन्दर दबाये हुए
उस विध्वंसात्मक
विपुल ऊर्जा को..
जो परिवर्तन के लिए
हर हाल में तत्पर है
अपने नियमानुसार...
उसी नियत ताप पर
उसे बदलना भी होगा
सृजनात्मकता में...
ताकि
नियत ताप पर भी
जनमती रहे
कालजयी-कृतियाँ.
निश्चय ही ऐसा ही हो ...तथास्तु !
ReplyDeleteबेहतरीन.
ReplyDeleteआपकी हर कविता में कोई न कोई तथ्य छिपा होता है इससे कविता की सार्थकता भी बढती है.
सादर
behad khub!..... niyat taap par... shabd to naya arth deti hui si rachna... ubalte khayal bahut pasand aaye....
ReplyDeleteबदलाव जरुरी है ........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.ये जिजीविषा बनी रहे.
ReplyDeleteतापमान नियत होना चाहिए :):) अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletebehtareen rachna...
ReplyDeleteबधाई |
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट ||
सरल जीवन और झोपड़ी में महल..
ReplyDeleteआत्मिक सुख का अनुभव होने के बाद ही ऐसी अभिव्यक्ति संभव है..
बधाइयाँ
अमृता जी क्या कहूँ जवाब नहीं आपकी रचना का. शुभकामनाएँ
ReplyDeleteNiyat taap par....achchha likha hai aabharNiyat taap par....achchha likha hai aabhar
ReplyDeleteबहुत सुंदर,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिनव बिम्ब लिए रचना ,(कृपया "छोड़ छोड़ "को छोर -छोर और ऊर्जा करलें शुद्ध रूप में ."उर्जा " को .
ReplyDeleteनए क्षितिज तोड़तीं रहतीं हैं आपकी रचनाएं .विध्वंश को सृजन में बदलने का आवाहन करती सीं.
कहानी अनुभव के ताप में क्रमशः तपती हुई ज़िंदगी के रूप में बदलती ओर विकसित होती हुई प्रतीत होती है।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति !... बधाई |
ReplyDeleteनियत ताप की नियंत्रित स्थिति बड़ी कठिनाई से मिलती है. सृजनात्मकता के लिए बनाना भी पड़त है. निरंतरता और समयानुशासन इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभाता है.
ReplyDeleteकाश यह सब संभव हो पाता ....बदलाव जरुरी है और यह तो निहायत ही .....आपका आभार
ReplyDeleteवाह जी, बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत सार्थक रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
अमृता फिर एक बार तृषित मन की प्यास बुझाई शब्दों की अमराई ने...मन के ताप को बर्फ कर दिया आपकी अद्भुत लिखाई ने....हम सब के भीतर एक विध्वंसात्मक ऊर्जा अनिर्बाध बहती रहती है....हम पर निर्भर करता की हम उससे कालजयी कृतियों का निर्माण करें या उसके लावा को बहिष्कृत कर अपने दावानल से प्रकृति की विनाशलीला देखें .....हमारी सृजनात्मकता हमारे कर्म और सोच का समन्वय है...एक दोहा बचपन से सुनते आया हूँ...
ReplyDelete“बुरे लागत सीख के बचन ,हिये बिचारे आप।
कड़वी भेसज बिन पिये, मिटे न हिय को ताप॥
यही जिंदगी है...
अद्भुत और दार्शनिक...शब्दों और बिंबों की पकड़ जबर्दस्त है आपको...बहुत कुछ सीख रहा हूँ आपसे...पर संवाद सीमित हैं तो मन मसोस कर रह जाता...हर शुक्रवार और शनिवार का इंतज़ार रहता है...कुछ अच्छा पढ़ने को मिलता है...
बेहतरीन...बहुत सारगर्भित रचना
ReplyDeleteबहुत प्रभावशाली रचना !
ReplyDeleteखूबसूरत रचना दोस्त |
ReplyDeletesunder bhav..........
ReplyDeleteसार्थक सोच और निर्माणात्मक कल्पना को बहुत सुन्दर शब्द दिया है आपने...
ReplyDeleteभावों की गहराई .......क्या कहना !
Impressive!
ReplyDeleteIshwar ne aapko adbhut kalpanaaur bimbit karne ki shakti bhi dee hai.Mai to bus abhibhut ho jata hoon.Meri najar to bus aanewale wale kalha per hai jab kaljayee bhawnaon ke sagar se jude kritian prawhatit ho tatha janmanas ko jeene ka naya aayam mile, isi aashae me.......
ReplyDeleteविज्ञान की शब्दावली -नियत ताप- का प्रयोग करने से कविता की संप्रेषणीयता में वृद्धि हुई है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
सुन्दर रचना के लिए बधाइयाँ..
ReplyDeleteसुव्यवस्था सूत्रधार मंच-सामाजिक धार्मिक एवं भारतीयता के विचारों का साझा मंच..
नई और सार्थक सोच को शब्दों में अच्छा पिरोया है आपने.
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteDO KAVITAIN PARHI. MERE PAAS SHABD HI NAHIN KI MAIN KUCHH KAH SAKUN. JO JO SAB NE KAHAA HAI, MAIN SAHMAT HOON.
Take care
यक़ीनन ...और यह सशक्त सोच बनी रहे..... बहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteसही कहा है आपने अवस्था परिवर्तन के दौरान ताप नियत ही रहता है लेकिन तरल से ठोस और तरल से वाष्प बन उड़ जाता है पदार्थ एक और अवस्था में .व्यवस्थित या अव्यवस्थित होने को सर्जन से ध्वंश या ध्वंश से सृजन की और .खूबसूरत अंदाज़ आपकी रचना के
ReplyDeleteएक सधी हुई एवं सार्थक विचारों से परिपूर्ण रचना।
ReplyDeleteबधाई।
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बहुत उम्दा,अमृता जी ! very intelligent poetry as ever !
ReplyDeleteनियत ताप पर . सामान्य दबाव में संलयन से उत्सर्जित उर्जा कालजयी रचना ही होगी . आभार .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteअमृता जी.........आज बहुत दिनों बाद आपके पुराने ढंग में कुछ पढने को मिला ......दिल खुश हो गया .......बहुत खूबसूरत|
ReplyDeleteनये शब्द व उपमानों का प्रयोग अच्छा लगा,
ReplyDeleteआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अमृता जी आशा के मुताबिक फिर वही काव्य सुन्दरता मिली. मैं सदैव आपका ब्लॉग यही सोच कर खोलता हूँ कि आज नया विचार मिलेगा और कभी निराश नहीं होता. शुभकामनाएँ
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता बधाई अमृता जी |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और लाजवाब रचना ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
bahut dino baad aya hun,exam ke karan busy tha,.......... bahut achi rachna likhi hai apne....
ReplyDeletejai hind jai bharat
sunder bhav ki prastuti
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ....
ReplyDeleteअनुपम भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteनियत ताप पर ही सर्वकालिक सृजन संभव है.अतिसुन्दर.
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