प्रायश:
मेरे पूर्णविराम का
परकाया गमन
प्रायोगिक नहीं
प्रायोजित होता है
कभी अल्पविराम में
कभी योजक चिह्न में
कभी प्रश्नवाचक चिह्न में
कभी विस्मयाधिबोधक चिह्न में
तो कभी किसी उद्धरण चिह्न में..
कभी तो नियमों के पार जाकर
अपने स्थान पर
क्रमागत बिन्दुओं को
इसतरह सजा देता है कि
उसे भरने में
मैं शून्य हुए जाती हूँ
और न जाने
कहाँ से आ जाता है
उस शून्य के भी आगे
अनंत का चिह्न......
ये कौन सी पहेली है
ये कैसा खेल है
कोई भूलभुलैया भी होता तो
पता होता कि इसी में
खोया है कहीं पूर्णविराम
या मेरा परकाया गमन
अनंत में हो जाता तो
मिल जाता पूर्णविराम.......
इस नयी-नयी काया में
आत्मा के साथ यात्रा का
हो जाता सुखद अवसान
दम साध , दम भर
कर लेती मैं आराम
पर न जाने क्यूँ
सारे चिह्न
प्रायोजित होकर
बारम्बार मेरी काया में ही
प्रवेश कर जाते हैं
मैं सोचती रह जाती हूँ कि
क्यों मेरा गमन
फिर किसी
पर काया में हो जाता है
और हर बार की तरह
एक बार फिर
मेरा पूर्णविराम
मुझसे ही
कहीं खो जाता है.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत गहन भावों को अपने मे समेटे है यह कविता।
ReplyDeleteबेहतरीन।
सादर
Ukt rachna mein aapki bhashayi gyan ki gahanata aur bhavanatmak parakashta spasht dikhlayi padti hai... Bahut Acchhi Rachna
ReplyDeleteमनोवैज्ञानिक भावों की अनुपम प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपकी किसी रचना की हलचल है ,शनिवार (२३-०७-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ...!!कृपया आयें और अपने सुझावों से हमें अनुग्रहित करें ...!!
ReplyDeleteitne gahan gahre shabdon ka chayan... per spasht suruchipurn
ReplyDeleteमेरा पूर्णविराम
ReplyDeleteमुझसे ही
कहीं खो जाता है ..।
बहुत ही अच्छी रचना ...बधाई ।
Anant bhawon ko apne andar smete huye hai apki ye rachna...
ReplyDeleteJai hind jai bharat:)Anant bhawon ko apne andar smete huye hai apki ye rachna...
Jai hind jai bharat:)
Ukt prastuti mein aapki bhashayi gyan ki gahanta aur bhawanatmak parakashtha ki spast jhalak dikhlayi padti hai.. Badhai..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति
शुभकामनाएं
the best
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति ||
ReplyDeleteबधाई ||
आज 22- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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एक बार नहीं दो तीन बार पढ़ना पड़ता है आपकी गहन कविताओं को, अच्छी लगती हैं, परकाया प्रवेश जैसे गम्भीर विषय को आप आसानी से कविता में ले आती हैं...
ReplyDeleteऔर देखों न आज आपने फिर रचन तो लिख डाली पर फिर से खो दिया पूर्णविराम :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचन दोस्त बहुत गहरे भावों को दर्शाती खूबसूरत रचना |
baut umda, bahot personal par bebak.bahot badhia
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteगहनतम अभिव्यक्ति।
ReplyDelete..बहुत बधाई।
बहुत ही खूबसूरती से भावो क वयक्त किया आपने..
ReplyDeleteबहुत गहन चिंतन और उसकी इतनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति..नमन है आपकी लेखनी को. बधाई
ReplyDeleteबहुत ही परिपक्व और मझी हुई रचना। बधाई।
ReplyDeleteविराम से आगे बढ़ता सिलसिला.
ReplyDeleteमेरा गमन फिर किसी पर काया में हो जाता है
ReplyDelete....मेरा पूर्ण विराम मुझ से ही कहीं खो जाता है...
बहुत ही रचनात्मक और सुंदर पंक्तियाँ.
गूढ़ अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteकविता भाव, शिल्प और गठन की दृष्टि से उत्तम कोटि की है।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से लिखा है जीवन दर्शन ..
ReplyDeleteगहनतम भावों की सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपका 'तन्मय स्वरुप' दिलकश है.
परकाया प्रवेश को फिर फिर सोचना पड़ेगा.
भगवद्गीता(अ.१५ श.१०) में भगवान कृष्ण कहते हैं
'उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुज्जानं वा गुणान्वितम
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः'
मेरे ब्लॉग पर आपका आना अच्छा लगता है.
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.
बहुत सुन्दर भावो का समन्वय।
ReplyDeleteअद्भुत कृति . पूर्णविराम कभी ना आये . आभार .
ReplyDeleteअमृता जी अपने पल्ले कुछ नहीं पढ़ा.......परकाया गमन से क्या तात्पर्य है?
ReplyDeleteगहन चिंतन, उम्दा प्रस्तुति| बधाई स्वीकार करें|
ReplyDeleteकविता का भाल जीवन के विभिन्न विंदुओं को परिभाषित करता हुआ प्रतीत होता है।सघन भावों से भरी कविता अच्छी लगी।धन्यवाद।
ReplyDeleteamrita, tum to 'tanmay' ho kar gambheer kavitaye likh rahi ho. kavita parhi, achchha laga.shubhkamanaen...
ReplyDeleteसुन्दर संवेदनशील अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteहर तरह के ग्रामर को तोडती हुई अच्छी रचना.well said..........
ReplyDeletegahan adyayan ko darshati samvedansheel abhivyakti.
ReplyDeleteएक बार फिर
ReplyDeleteमेरा पूर्णविराम
मुझसे ही
कहीं खो जाता है.
संवेदनशील अभिव्यक्ति
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
एक अच्छी कविता का सृजन किया है आपने।
ReplyDeleteअमृताजी जीवन के अंतर द्वंद्व ,मानसिक कुहांसे का नया व्याकरण कोई आपसे बुनना सीखे .बेहतरीन रचना ,अपने से बाहर आने की कश - म -कश .
ReplyDeleteगहन चिंतन से उपजा नवीन सृजन ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब है रचना ...
देखिये उक्ति वैचित्र्य ,दार्शनिकता और निर्वैयक्तिकता का अपना आनंद जरुर है मगर जब बहुत कुछ मांसल ,इन्द्रियगोचर विद्यमान हो तो आखिर कोई इनमें क्यों फंसे -पूरी उम्र बाकी है अभी ... :)
ReplyDeleteये कविता जितनी बार पढता हूं, नई लगती है।
ReplyDeleteसुन्दर और दार्शनिक अंदाज की कविता बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर, सशक्त भाव..!!
ReplyDeleteअत्यन्त गहन, दार्शनिक भाव और विराम चिन्हों का शाब्दिक उच्चकोटि का प्रयोग आपकी कल्पनाशक्ति की अद्भुत क्षमता का परिचायक है...
ReplyDeleteमेरे ब्लाग पर आकर विचार प्रकट कगने के धन्यवाद...
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति ...विचारणीय भाव लिए पंक्तियाँ
ReplyDeleteगहन भावों की लाजवाब प्रस्तुति
ReplyDeleteएक-एक शब्द ....तरासे गए हीरे जैसा
Amrita,
ReplyDeleteTEEN KAVITAYEN PARHI. NIYAT TAAP PAR BATAATI HAI KE HUM THEEK SAMAY PAR KUCHH BHI KAR SAKTE HAIN AGAR HUM CHAHEIN. UDHAM TO AAJ KAL KE ZAMANE KE BAAT HAI KI KAISE LOG APNA LAKSHYA POORA KARNA CHAAHTE HAI BINA KISSI SOCH KE KI THEEK RASTAA THEEK HAI KE NAHEIN. IS KAVITA KA ARATH MERE SE TO HAI KI HUM APNE VICHAAR KO KAYEE DHANGON SE KAH SAKTE HAIN. KAY MERA YEH SOCHNA SAHI HAI?
Take care
hmm bahut hi gahri bhawanaaye samahit hai isme...
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