उगते सूरज को प्रणाम करूँ
जो डूब जाए तो राम-राम करूँ
क्यों किसी का कल्याण करूँ
बस अपना ही उत्थान करूँ
ये सोच सुबह से शाम करूँ
और सोच-सोच बिहान करूँ
बस इतना ही मैं काम करूँ
और तान चदरिया आराम करूँ
कोई टोके तो तुम-ताम करूँ
अपनी ऊँचाई पर बस मान करूँ
उपदेशों का केवल दान करूँ
और अपना ही गुणगान करूँ
काया - कष्टं का बलिदान करूँ
और आत्म रस का पान करूँ
जो माने उसका सम्मान करूँ
न माने तो घमासान करूँ .
यह क्या लिख दिया है 'अमृता'जी आपने?
ReplyDeleteक्या थोथे अंध-विश्वासियों की पोल खोलने का इरादा है आपका?
तो फिर घमासान के लिए तैयार हो जाईये.
हम भी शामिल है आपके साथ.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत सुन्दर अमृता जी हम भी आप ही के जैसे बनना कहते है ,,,,,बहुत सुन्दर लिखती हे आप ,,>>>>>
ReplyDeleteaal ki duniya ka sahi varnan..
ReplyDeletebahut sunder rachna ..
बहुत सुंदर...
ReplyDeleteक्या बात है
ReplyDeleteकोई टोके तो तुम ताम करुं
अपनी ऊंचाई पर बस मान करुं
कामचोरों औ मक्कारों पर सुन्दर व्यंग .
ReplyDeleteपढ़ कर आनंद आगया.
ReplyDeleteक्यों किसी का कल्याण करूं,
ReplyDeleteबस अपना उत्थान करूं..
सुन्दर प्रस्तुति , आभार.
आत्म श्लाघा से परे रहकर ही अहम् ब्रम्हास्मि का रास्ता खोजा जा सकता है .
ReplyDeleteupdeshon ka daan aur apna gungaan... yahi to hota hai
ReplyDeleteऐसे भी लोग होते हैं...आत्म-अनुशंशा में पूर्णतः लिप्त...भगवान भला करे इनका भी...
ReplyDeleteसटीक ...बहुत बढ़िया
ReplyDeleteAapki baagi rachnayein padhkar dil bag-bag ho jata hai aur man baagi.. Swagat..
ReplyDeleteबस अपना ही गुणगान करूँ....वाह वाह सबसे वरिष्ठ ब्लोगेर मैं हूँ :)
ReplyDeleteसही कटाक्ष किया है ..लोंग उपदेश ही दान करते हैं पर खुद के लिए नहीं ..
ReplyDeleteaaj ke jamane me logo ko dekhte huye,,,,,, sahi likha hai apne...
ReplyDeletejai hind jai bharat
सुन्दर सामयिक कविता -बेलौस और खरी खरी -मुझे यह पसंद है!
ReplyDeleteबहुत ही करारा व्यंग्य| ऐसे व्यक्तियों से मुलाक़ात होती ही रहती है| अपुन भी इन को प्रणाम ही करते हैं|
ReplyDeleteजानी पहचानी लगती है
ReplyDeleteअपनी ही कहानी लगती है
समय समय पर इसी तरह कोई चेताने वाला मिलता रहे...आभार!
यह तो बहुत अच्छी बात है :))
ReplyDeleteएक दम खरी खरी बात.वाह.
ReplyDeleteअपने से लगे कविता के शब्द
ReplyDeleteअच्छी रचना..बेहतरीन शब्दों का समावेश .......आभार
खूबसूरत एवं सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
चलो यह भी ठीक. आत्म संतुष्टी भी जरूरी है.
ReplyDeleteha ha ha ha ......
ReplyDelete:)
Kaise main bakhan karun,
ReplyDeletekis tarah tera gungaan karun,
kavita ki har pankti se tapki,
madhu ras ka bas paan karun.
Jee chahta hai tumhari tarah,
main bhi kuch kam mahaan karun,
kavita likhun,kavita peeyun,
kavita me hi main snaan karun.
******************************
Chalo yun karte hain aaj se,
subah shaam teri nasihat ka
bas main nit din dhyaan dharun.
..............................
Bahut achha Amrita...pichli kavita dekh nahi paaya tha...kuch likh bhi nahi paaya...zindgi kabhi patri se utar jaati hai...use wapis laane ki koshish karta hun...
अच्छा है....
ReplyDeleteएकदम साफ़ साफ़ ..
क्या बात है .........इतना तीखा व्यंग्य........लम्बी नुकीली हरी मिर्च की तरह ही तीखा ............शानदार ....लाजवाब.......बेहतरीन|
ReplyDeleteबहुत सटीक।
ReplyDelete---------
कल 03/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Ek behtareen blog par behtareen rachnaayen...
ReplyDeleteFollow kar raha hoon.
हां, कुछ खास प्रजाति के लोग ऐसा ही कर रहे हैं।
ReplyDeleteधारदार रचना !!
एक दम से बे लौस।
ReplyDeleteकोई टोके तो तुम ताम करुं
ReplyDeleteअपनी ऊंचाई पर बस मान करुं
खूब खरी- खरी कही है!वाह!
और सोच -सोच बिहान करू .(बियान का अर्थ कृपया बतलाएं तो और लुत्फ़ आये .).शब्द बाण से तीखें हैं ये बोल सामने वाला आहत हो सकता है .हम सब आत्म -श्लाघा करतें हैं .चिरकुटों को पसंद करतें हैं ,संग रखतें हैं .बेहद सुन्दर रचना .कृपया यहाँ भी पधारें .
ReplyDeletehttp://sb.samwaad.com/
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
अमृता जी
ReplyDeleteक्या बात है !
अलग ही रंग नज़र आ रहा है आपका … बहुत ख़ूब !
दोहरे चरित्र वाले लोगों पर करारा व्यंग्य किया है आपने ।
लेखनी की धार और चमकदार हो … यही शुभकामना है !
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सुन्दर व्यंग ..पढ़ कर अच्छा लगा....
ReplyDeleteवाह जी वाह !!!!मई तो अब इसी फार्मूले पे चलूंगी. बाकि तो सब कर के देख लिया कुछ कम नहीं आया
ReplyDeleteआभार
achha likha hai apne...
ReplyDeletebahut seedha kataksh pahli baar padh rahi hoon aapko.aapke comment ke liye shukriya.aapke blog par aakar achcha laga.
ReplyDeleteसीखना एक भाव है स्वभाव है ,आपने हमारे शब्द कोष में एक शब्द दाखिल किया -बिहान -यानी कल सुबह ,प्रभात ,आइन्दा भी आंचलिक शब्दों के अर्थ दिया करे हिंदी की गरीबी दूर होगी .
ReplyDeleteसीखना एक भाव है स्वभाव है ,आपने हमारे शब्द कोष में एक शब्द दाखिल किया -बिहान -यानी कल सुबह ,प्रभात ,आइन्दा भी आंचलिक शब्दों के अर्थ दिया करे हिंदी की गरीबी दूर होगी .यहाँ भी तो आयें -
ReplyDeletehttp://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, २ अगस्त २०११
यौन शोषण और मानसिक सेहत कल की औरत की ....इसीलिए
Sexual assault, domestic violence can damage long-term mental health
क्यों किसी का कल्याण करूं,
ReplyDeleteबस अपना उत्थान करूं..
.....खूबसूरत एवं सटीक अभिव्यक्ति.
अरे, मुझे एक दो अटल बिहारी जी की कविता याद आ गयी आपकी इस कविता से...:)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना... मेरा तो कहना है की उगते हुए सूरज तो जरुर ही प्रणाम करिए और डूबते तो राम राम भी कहिये...
ReplyDeleteएक बेहतरीन रचना के लिए आपको बधाई हो अमृता जी....
सार्थक साहित्य,आभार।
ReplyDeleteस्वर्णिम विहान हो ,भर दो खलिहान को ,अन्न को उगाते हुए ,
ReplyDeleteसोना बरसाते हुए ,
धानों के खेत में ,गंगा की रेट में मिलके चलो ,मिलके चलो ,मिलके चलो भैया .
बहुत समय पहले यह समूह गान गाया था सागर विश्विद्यालय में अध्ययन के दौरान ,अब समझ आया ,"बिहान ",विहान का ही अपभ्रंश रूप है .आने वाला कल खुशहाल हो आपका भी .शुक्रिया .
nice satire
ReplyDeleteसही कह दिया इस बार आपने तो .. आभार
ReplyDeleteविजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html