मैं बावरी
ढूँढती फिरूँ
मारी - मारी
उस बावरे को
जो न जाने
कहाँ है मगन..
किसकी प्रीत
बनी है बैरन...
हाय ! कैसा
पड़ा है बिघन
जो न लेता
मेरा सुमिरन...
बिछोही बिना
सूना - सूना है
ये चित - वन
बिसाहा बन बेधे
शीतल पवन
बिछुवा लगे
अपनी धड़कन...
मैं बावरी
बौराती फिरूँ
उपवन से मरू वन
विदाही मिले न
करूँ क्या जतन...
बरबस ताकूँ
वितत गगन
टंगा है जिसपर
काला - काला घन
मिलने को आतुर
विकल बसुधा से
अमृत बूँद बन
पर बावरे बिन
कैसे बरसे
मेरा सावन .
बैरन - शत्रु बिघन - बाधा
सुमिरन - याद , ध्यान
बिसाहा - जहरीला
विदाही - जलाने वाला
वितत - फैला हुआ
खुबसूरत रचना...
ReplyDeleteधरती की बेचनी को बस बादल समझता है..........विरह की आग में जलते मन का बहुत ही सुन्दर और मार्मिक वर्णन करती ये पोस्ट बहुत ही सुन्दर है|
ReplyDeleteविरह वेदना का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है।
ReplyDeleteसावन पर मनभावन कविता।
ReplyDeleteSuperb!
ReplyDeleteregards.
सावन और प्रेम कि मिली जुली गाथा ... उस पर विरह का दर्द ..
ReplyDeletebahut hi madhur
ReplyDeleteehsaas hua didi aapki
rachna padkar jaise
sare ras sama gaye hon....
in shabdon main...
shyad aap mere blog par kabhi nahi aaye aayege to khushi hogi ...
bahut sundar amrita ji |
ReplyDeletetanmayta se baanchaa ||
सावन बिरहन ही होती है ! सहेजना और आनंदित होना , इसकी प्रमुख विसेषता है ! बहुत सुन्दर विरह पूर्ण !
ReplyDeleteविरह वेदना को सुन्दरतम शब्द दिये आपने . आभार
ReplyDeleteआपकी कविता पढ़कर किसी का एक शेर याद आ गया.देखिएगा:-
ReplyDeleteऐ अब्र बहार आज ज़रा थम के बरसना.
आ जाये मेरा यार तो फिर जम के बरसना.
bahut sundar shabdon se saji saavan ki kavita.bahut achchi lagi.
ReplyDeleteप्रीत में हुई बाबरी और उस पर बिरह की पीड़ा. सुंदर मनोभाव और उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteवाह,खूबसूरत सावन,आभार.
ReplyDeletekya baat hai...
ReplyDeleteबरबस ताकू
ReplyDeleteवितत गगन
टंगा है जिसपर
काला काला घन
बहुत सुन्दर भाव समेटे हुए रचना
ओह कैसा कैसा हो गया मन -अगर इसे पुरुष की और से जैसे मेरी ओर से रचा कहा मान लें तो ?
ReplyDeleteरचनाएं वही जैसे यह ,श्रेष्ठ होती हैं जो पाठकों को लगे कि अरे जैसे यह तो उसी की बात है -इतनी सुन्दर कविता के लिए साधुवाद !
ye savan tadpata bhee hai.....
ReplyDeleteमन के सुंदर भाव....
ReplyDeleteखूबसूरत रचना ..
ReplyDeleteसुंदर। अच्छी लगी यह रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर...
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
आधुनिक कविताओं में अलंकारों का प्रयोग, भई वाह| दिल खुश कर दित्ता।
ReplyDeleteसुंदर कविता.
ReplyDeleteवाह.. ऐसे ऐसे शब्दों का इस्तेमाल आपने किया है जो आमतौर पर लोगों की जुबान से गायब से हो गए हैं। बहुत अच्छा।
ReplyDeleteमैं बावरी
बोराती फिरूं
क्या कहने
बहुत ही गहन अनुभूति।
ReplyDelete------
कम्प्यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्या है....
बरबस ताकू
ReplyDeleteवितत गगन
टंगा है जिसपर
काला काला घन
वाह.. बहुत सुन्दर !
kitti pyaari hindi....vaah.... lazawaab.....!!
ReplyDeleteमन को भिगो गई यह कविता।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपके पास दोस्तो का ख़ज़ाना है,
पर ये दोस्त आपका पुराना है,
इस दोस्त को भुला ना देना कभी,
क्यू की ये दोस्त आपकी दोस्ती का दीवाना है
⁀‵⁀) ✫ ✫ ✫.
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☻/ღ˚ •。* ˚ ˚✰˚ ˛★* 。 ღ˛° 。* °♥ ˚ • ★ *˚ .ღ 。.................
/▌*˛˚ღ •˚HAPPY FRIENDSHIP DAY MY FRENDS ˚ ✰* ★
/ .. ˚. ★ ˛ ˚ ✰。˚ ˚ღ。* ˛˚ 。✰˚* ˚ ★ღ
!!मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये!!
फ्रेंडशिप डे स्पेशल पोस्ट पर आपका स्वागत है!
मित्रता एक वरदान
शुभकामनायें
कल 08/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
हिंदी भाषा का सतत संवर्धन कर रहीं हैं आप आंचलिक शब्दों इतना आधिकारिक प्रयोग इससे पहले अन्यत्र नहीं देखा आप ब्लॉग जगत के आने वाले कल का आसमान हैं ,कृपया यहाँ भी आहटें सुनाई दें आपकी -
ReplyDeletehttp://veerubhai1947.blogspot.com/
शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
Erectile dysfunction? Try losing weight Health
शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
http://sb.samwaad.com/
आखिर इस दर्द की दवा क्या है?
Posted by veerubhai on Friday, August 5
हिंदी भाषा का सतत संवर्धन कर रहीं हैं आप आंचलिक शब्दों इतना आधिकारिक प्रयोग इससे पहले अन्यत्र नहीं देखा आप ब्लॉग जगत के आने वाले कल का आसमान हैं ,"बिछोई "बिछड़ा हुआ प्रीतम (अगर हमने ठीक समझा है तो ?)..चलिए आज आपको एक शैर सुनातें हैं -"कहाँ से लाये वो, अंदाज़, मुस्कराने के ,वो बदनसीब जिसे लब मिले हंसी न मिली ."कृपया यहाँ भी आहटें सुनाई दें आपकी -
ReplyDeletehttp://veerubhai1947.blogspot.com/
शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
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शुक्रवार, ५ अगस्त २०११
http://sb.samwaad.com/
आखिर इस दर्द की दवा क्या है?
Posted by veerubhai on Friday, August 5
सुन्दर रचना. मित्रता दिवस की शुभकामनाये. .
ReplyDeleteसावन है तो बरसात तो होगी ही...या तो बदरा बरसेंगे...या अँखियाँ...खूबसूरत रचना...
ReplyDeletebilkul gazab ka likha hai aapne....gazab ke shabdo ka chayan...
ReplyDeletehumara bhi hausla badhaaye:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
विरह और कविताओं के गहरे ताल्लुकात हैं...
ReplyDeleteअच्छी लगी यह कृति..
आभार
सुंदर भाव और मनमोहक शब्दों से सजी इस विरह रचना के लिए बधाई... ऐसा विरह नसीब वालों को मिलता है...
ReplyDeleteHaal-e-dil ki dastaan batati ye rachana..bahut sundar..aabhar
ReplyDeleteSabne bahut kuch kah diya hamai. Bas itna hi kahungaa
ReplyDelete...
....
Excelent...congratulations
के उपादान ,हवा पानी बादल तभी अच्छे लगतें हैं जब प्रीतम पास हो वरना पवन भी बैरन ,सावन भी ,मनभावन बादल .विरह भाव का प्रकृति नटी पर आरोपण .सुन्दर प्रस्तुति -मेरे नैना सावन भादों ........ ..कृपया यहाँ भी आयें - http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_09.html
ReplyDeleteTuesday, August 9, 2011
माहवारी से सम्बंधित आम समस्याएं और समाधान ...(.कृपया यहाँ भी पधारें -)
मानसिक कुहांसे को शब्द देती रचना ,इंतज़ार की बे -कली कुछ यूं -प्रतीक्षा में युग बीत गये सन्देश न कोई मिल पाया ,सच बतलाऊ तुम्हें प्राण इस जीने से मरना भाया .अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई . .http://veerubhai1947.blogspot.com/
ReplyDeleteसोमवार, ८ अगस्त २०११
What the Yuck: Can PMS change your boob siz
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ReplyDeleteवाह ....
ReplyDeleteकोमल भाव ...कोमल शब्द
सुन्दर शब्दों की लड़ी .....जैसे सावन की झड़ी
कथ्य की मिठास ...अनबुझी प्यास
अद्भुत प्रवाह ......बढती चाह
छोडो काला घर
ReplyDeleteपकडॊ काला धन
मिट जाएंगे
सारे विघन :)
khoobsurat
ReplyDeleteBahut hi sundar sabdo ka mel....
ReplyDeleteVirah ki vedna, bahut khub....
Jai hind jai bharatBahut hi sundar sabdo ka mel....
Virah ki vedna, bahut khub....
Jai hind jai bharat
कमाल की खूबसूरती है आपकी रचनाओं में ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
bahut sundar
ReplyDeleteअमॄता जी ..लाजवाब रचना ..बधाई..
ReplyDeleteतेरा सावन
ReplyDeleteमेरा सावन
इसका सावन
उसका सावन
सावन वैसा लागे जैसा
उस पल अपना
हो तन मन
सावन बरषे एक रंग में
मन पापी सतरंगी रे....
सावन उसका ही हो जाये
जो मन से अड़बंगी रे...
..सावन में विरहन के दर्द ने ये भाव जगाये।
अच्छी लगी यह कविता।
निर्मम भंवरा कहाँ है मगन ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है ... विरह की वेदना लिए ...
खूबसूरत! नहीं नहीं बहुत खूबसूरत.
ReplyDeleteविरह वेदना की 'तन्मय' प्रस्तुति.
आभार.