ऊँघता चाँद
ऊभ - चुभ तारे
ठिठका सा बादल
ठहरी हवाएँ
सिमटा अँधेरा
सहमी सी दिशाएं
साँस रोके हैं
बेला-चमेली
संग उनके
मौलीश्री भी हो ली..
नदी किनारे
चकवा उदास
अजब सी
अनबुझी प्यास
हीरे सा पल
यूँ ही बीता जाये
राह तक तक
वह रीता जाये.....
कलंक की मारी
चकई बिचारी
दे जी भर भर
रात को गाली...
कोसे कभी
भाग के लिखान को
कभी कोसे
विधना के विधान को..
प्रीत की रीत
यही जब होई
चकवा को
न मिले चकई
तब भी प्रीत
करे क्यूँ कोई ?
मधुकर प्रीत किये पछितानी ....ये रचना क्या है ....कमाल ही है अमृता जी ....मैं कर ही नहीं पा रही हूँ इसकी तारीफ़ ....
ReplyDeleteअद्भुत भाव हैं ....
बधाई और शुभकामनायें .. ऐसा ही अमृत बरसता रहे आपकी कलम से ...!!
Preet ki reet yahi jab hoi
ReplyDeletechakawa ko na mile chakai
tab bhi preet kare kyun koi..
Udwelit karti rachna.. badhai..
आपने इस शैली/छंद में पहले भी कविताएँ लिखी हैं. मैं हैरान हूँ कि यह छंद कौन-सा है. कई पंक्तियाँ अन्य पंक्तियों के बिंबों के साथ कई तरह से जुड़ती जाती हैं.
ReplyDeleteफिलहाल यही कहूँगा कि यह अद्भुत रचना है.
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteतमाम ऐसे शब्दों को जिंदा कर दिया आपने, जो आमतौर पर इस्तेमाल से बाहर हो गए हैं।
बहुत ही सुन्दर विरह की असीम वेदना समेटे ये पोस्ट लाजवाब लगी........
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति के साथ सुन्दर रचना .......
ReplyDeleteसुँदर शब्दों में प्रीत की रीत समझाईस. चकवा चकई तो निमित्त मात्र है . बाकी अनुपमा जी की टिपण्णी से हम भी इत्तेफाक रखते है .
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteअद्भुत संगम है यह बिम्बों एवं भावों का....
ReplyDeleteसादर...
सुन्दर शब्दों का संगम है इस रचना में आभार ।
ReplyDeleteकलंक की मारी
ReplyDeleteचकई बिचारी
दे जी भर भर
रात को गाली...
कोसे कभी
भाग के लिखान को
कभी कोसे
विधना के विधान को..
बहुत खूबसूरत शब्दों में लिखी है प्रीत की रीत
कल हलचल पर आपके पोस्ट की चर्चा है |कृपया अवश्य पधारें.....!!
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
Masha allah kya tarif karen hame to kuch sujhat nahi hai.. Very nice,
ReplyDeletejai hind jai bharat
बेहतरीन अभिवयक्ति....
ReplyDelete@तब भी प्रीत क्यूँ करे कोई.
ReplyDeleteवाह,बढ़िया रचना.
प्रीत के रंग और वेदना लिए बेहतरीन भाव
ReplyDeleteशायद प्रीत की यही रीत है । उत्तम प्रस्तुति...
ReplyDeleteशब्दों और भावों का अद्भुत संयोजन..बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति...
ReplyDeleteहीरे सा पल यूँ ही बीता जाए
ReplyDeleteरह तक तक वह यूँ ही रीता जाये ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
अजब प्रीत की रीत ... बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत खूब....
ReplyDeleteप्यारी कविता।
प्रीत की रीत निराली।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, शानदार और भावपूर्ण रचना! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteशब्द -२ बोलते है
ReplyDeleteप्रीत का मन टटोलते है
हम रंग मोहोब्बत का पन्नो पे छोड़ते है
बस ख़तम करो टिपण्णी कवी भुत बोलते है
......बेहतरीन रचना ,,,,..
विरह की वेदना को व्याख्यायित करती रचना...सुन्दर...!!
ReplyDeleteवाह इस रचना में तो आपने सब कुछ भर दिया रस प्रेम पीढा मन को लुभाती बहुत सुन्दर रचना वाह
ReplyDeleteचकवा ,चकवी...प्रेम के प्रतीक...
ReplyDeleteकविता बहुत अच्छी लगी।
प्रेम की पीड़ा और मिलन की चाह बखूबी दर्शाती सुंदर रचना.
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन की शुभकामनायें.
प्रेम को सभी भावो समेटती रचना....
ReplyDeleteसुंदर मन की सुंदर परिकल्पना ,मार्मिक ,प्रसंग ,उडान सच्चे अर्थों में सकारात्मक सृजन रुचिकर है ,बेहद संवेदनशील प्रसंग को सरलता से प्रस्तुत करने की शैली बहुत पसंद आई ..........शुभकामनाये जी /
ReplyDeleteयही तो प्रीत की रीत है...टोटल सरेंडर...
ReplyDeleteस्वाधीनता दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएं।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति के साथ भावपूर्ण कविता लिखा है आपने! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
Mera saawan ke baad preet ki reet bahut niraali lagi.
ReplyDeleteठहर हवाएँ िसमटा अँधेरा सहमी सी दशाएं साँस रोके ह बेला-चमेली
bahut bahut badhai.
zindgi ka yahi geet hai
ReplyDeletepreet ki yahi reet hai
चकवा चकई में फिर भी प्रेम की शाश्वतता तो है !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता!
यौमे आज़ादी की साल गिरह मुबारक .कलंक की मारी
ReplyDeleteचकई बिचारी
दे जी भर भर
रात को गाली...
कोसे कभी
भाग के लिखान को
कभी कोसे
विधना के विधान को.. ....जो मैं ऐसा जानती प्रीत किये दुःख होय ,नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोय ,"लिखान"शब्द का इतना सुन्दर और महीन प्रयोग क्या कहने हैं अमृता जी के .चकवा -चकवी की मार्फ़त विरह भाव की एक अलग काव्यात्मक प्रस्तुति .
Sunday, August 14, २०११
आज़ादी का गीत ......
उर्दू के मशहूर शायर जोश मलीहाबादी की नज़्म ‘लम्हा-ए-आज़ादी’ का एक बड़ा लोकप्रिय शेर है:
कि आज़ादी का इक लम्हा है बेहतर
ग़ुलामी की हयाते-जाविदाँ से
आइये हम इस आज़ादी को 'जश्ने आज़ादी' बनाएं और इसका लुफ्त उठाएं ......
मनायेंगे ज़मीने -हिंद पर हम ज़श्ने आज़ादी
वतन के इश्क में हम सरों का ताज रखेंगे.
रविवार, १४ अगस्त २०११
संविधान जिन्होनें पढ़ा है .....
Sunday, August 14, 2011
चिट्ठी आई है ! अन्ना जी की PM के नाम !
वाह....बेजोड़ रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
वियोग की विवशता प्रेम के नैरन्तर्य को ख़त्म कर सकती है भला!
ReplyDeleteचकवा चकई का प्रेम,प्रेम के इसी पहलू को इंगित करता है ?
लगता है मुझे अब चकवा चकई के बारे में लिखना पडेगा!
बहुत ही सुन्दर ....बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावमयी रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत भावपूर्ण कविता |
ReplyDeleteबधाई
sundar hradya grahi rachana ,thanks.
ReplyDeleteNice One..Keep writing..
ReplyDeleteनमस्कार....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लेख है आपकी बधाई स्वीकार करें
मैं आपके ब्लाग का फालोवर हूँ क्या आपको नहीं लगता की आपको भी मेरे ब्लाग में आकर अपनी सदस्यता का समावेश करना चाहिए मुझे बहुत प्रसन्नता होगी जब आप मेरे ब्लाग पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँगे तो आपकी आगमन की आशा में पलकें बिछाए........
आपका ब्लागर मित्र
नीलकमल वैष्णव "अनिश"
इस लिंक के द्वारा आप मेरे ब्लाग तक पहुँच सकते हैं धन्यवाद्
1- MITRA-MADHUR: ज्ञान की कुंजी ......
2- BINDAAS_BAATEN: रक्तदान ...... नीलकमल वैष्णव
3- http://neelkamal5545.blogspot.com
बहुत खूब ....सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteप्रीत की तो सीट ही ऐसी है ... मिलन कम जुदाई ज्यादा है ... अनुपम रचना है ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता अमृता जी बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना...
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteTEEN KAVITAIN PARHI. ATAM RAS AAJ KE PRANI KA SUCH BATAATI HAI. MERY SAAWAN AUR PREET KI REET DONO HI PREMIKA KA VIHOH ACHHI TARAH BATAATI HAIN.
Take care
अदभुत भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteविरह के अहसास से दिल को कचोटती.
आभार.
ओह, खूबसूरत!!!
ReplyDeleteउत्तम श्रृंगार की अनुपम व्यंजना ....
ReplyDeleteसाधू ....आदरणीया अमृता जी सराहनीय कवित्त
आप श्रृंगार को, विशेषकर संयोग विधा को मन
के आईने में इस तरह उतारती हैं की शब्द चपलता,
विचारों झंकृत कर देती है ....