कैसे मैं कह दूँ
कि तुम क्या जानो
प्रेम की तीव्रता को
जबकि हर बार
मैंने छुआ है
तुम्हारे प्रबल वेग से
टूटती उसकी सीमाओं को...
कैसे मैं कह दूँ
कि मैं न बोलूं तुमसे
जबकि हर बार
मैंने देखा है
उलाहना के बोल को
मनुहार में बदलते हुए ....
कैसे मैं कह दूँ
कि तुम क्या जानो
ह्रदय में उठती हूक को
जबकि हर बार
मैंने सोखा है
तुम्हारे तुलनात्मक ताप से
कई गुणित प्रवाहित प्रेम को...
कैसे मैं कह दूँ
कि मैं न रूठूँ तुमसे
जबकि हर बार
मैंने चाहा है
मिलन की मधुर घड़ी
कभी न बदले
विदाई की बेला में....
अब कैसे मैं कहूँ
अनगिना अनकहा को
जबकि तुमने जो
धर दिया है
अधर को
........अधर पर .
कोमल से एहसासों से गुंथी अच्छी रचना
ReplyDeletegahan abhivyakti...
ReplyDeletekaise main kah dun
ReplyDeleteki main na ruthoon tumse
jabki...
Bahut hi umda rachna.. Aabhar..
बहुत सुंदर कविता और उसके भाव
ReplyDeleteकैसे मैं कह दूं
कि तुम क्या जानो
ह्दय मे उठती हूक को
.......
....
बहुत सुंदर
प्रेम की तीव्रता को गहराई तक महसूस कराती दिल को छूती हुई कविता...बधाई! जो प्रेम करना जानता है वही दूसरे के प्रेम को समझ सकता है...
ReplyDeletemilan ki madhur ghadi vidai me na badle ......... bahut khub.
ReplyDeletekhabhi- kabhi hamare blog par bhi aaiye .
http://sapne-shashi.blogspot.com
कैसे मैं लिखूं कि
ReplyDeleteकितनी अद्भुत है यह कविता!
जबकि पढ़ते ही निःशब्द हो चुके हैं
भाव
धड़कता है दिल
चलती नहीं उँगलियाँ
लैपटॉप पर।
प्रेम में उलाहनों की सूची कहीं पीछे छूट जाती है. बहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteअद्भुत रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई..
प्रेम की गहराई में उतरती इस पोस्ट के लिए आपको शुभकामनायें.............सुन्दर|
ReplyDeleteप्यार की गहराई बताती रचना....
ReplyDeleteगहन और सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत कोमल एहसास ....... आभार !
ReplyDeleteकैसे मैं कह दूं
ReplyDeleteकि तुम क्या जानो
ह्दय मे उठती हूक को
...
बहुत खूब कहा है ...।
अंतिम लाईनें पूरी कविता को प्रेम का उदात्त संस्कार देते हुए पाठकों में भी सहसा एक प्रेमाग्नि प्रज्वलित कर जा रही हैं ! उफ़!
ReplyDeletetum kya jano... aur main kaise kahun ... bahut hi gahri ...
ReplyDeleteaap apne blog ki rachnayen khol den taki main suvidhanusaar le sakun .... band rakhne se iski suraksha kahan hai, koi dekhker bhi likh sakta hai n
उम्दा रचना,वाह.
ReplyDeleteआदर्श अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteमानवीय भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति. अच्छी लगी यह कविता.
ReplyDeleteलाजवाब रचना ......बहुत खूब
ReplyDeleteतुलनात्मक ताप वाला हिसा काफी प्रभावित करता है
ReplyDeleteप्रीत की रीत में हम लेते रहे हिंडोले , हाँ को ना समझे , ऐसा दिल बोलें.
ReplyDeleteबेहद सुंदर अहसास वाली कविता है..वैसे एक अनुरोध है, कि इस काल्पनिक रोमानी दुनिया से निकलकर वास्तविकता के जगत में प्रवेश करें. मौजूदा हालात और सच्चाइयों के बारे में भी विचार प्रस्तुत करें.
ReplyDelete-महेंद्र यादव
thirdfrontindia.blogspot.com
bahut hi pyaari prem bhari kavita .. badhayi sweekare.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना,खूबसूरत प्रस्तुति .
ReplyDeleteबहुत खूब ... कोमल भावनाओं की लाजवाब प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआप दस्ताने पहन कर छू रहे हैं आग को
ReplyDeleteआप के खून का रंग हो गया है सांवला॥-दुष्यंत
जन लोकपाल के पहले चरण की सफलता पर बधाई.
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशाश्वत भाव की सुकोमल प्रस्तुति।
ReplyDeletepahli baar aayi hoon...bahut accha likhti hain aap...panktiyaan man ko choo gayi..
ReplyDeleteअरि आज तो बधाई गाओ रंग महल में ,अन्ना जी की आरती गाओ रंग महल में ,जन गण मन की आरती गाओ रंग महल में .
ReplyDeleteअरि आज तो बधाई गाओ रंग महल में ,अन्ना जी की आरती गाओ रंग महल में ,जन गण मन की आरती गाओ रंग महल में .
ReplyDeleteअमृता सखी भाव ,शख्य भाव की अप्रतिम रचना ,रूठना ,मनाना ,मन जाना ,मान जाना ,मनुहार करना ,उपालम्भ और आलंबन यही तो प्रेम के रंग हैं जहां "हाँ " और "न "का विलोम अर्थ होता है जैसे इस पद में है -.......मुरली लै लुकाई ,.......दें कहत नत जाई .....बेहतरीन रचना प्रेम की परिणति और नियति दोनों की .
शनिवार, २७ अगस्त २०११
संसद को इस पर भी विचार करना चाहिए . शनिवार, २७ अगस्त २०११
संसद को इस पर भी विचार करना चाहिए . शनिवार, २७ अगस्त २०११
संसद को इस पर भी विचार करना चाहिए . शनिवार, २७ अगस्त २०११
संसद को इस पर भी विचार करना चाहिए . शनिवार, २७ अगस्त २०११
संसद को इस पर भी विचार करना चाहिए . http://veerubhai1947.blogspot.com/शनिवार, २७ अगस्त २०११
संसद को इस पर भी विचार करना चाहिए .
अब कैसे म कहूँ अनिगना अनकहा को जबक तुमने जो धर दया है अधर को ........
ReplyDeleteBas kya kahu shabd phutte hi nahi..
Badhai.
दिल को छू लेने वाली रचना बहुत अच्छी लगी .....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
gahri abhivyakti bahut sundar
ReplyDeleteकोमल अहसासों को बहुत प्रभावी रूप से चित्रित करती बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteमैं समय न मिलने और कुछ व्यक्तिगत कारणों से देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हू.
ReplyDeleteबहुत दिनों के अंतराल के बाद आपको पुनः आज के पोस्ट पर देख कर अच्छा लगा !
" ये इश्क नहीं आसां , बस इतना समझ लीजे ,
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है "
बहुत ही गहरे भावों को समेटे उत्कृष्ट रचना.....लाजवाब..........
jab ehsaas hi bolne lagen,to kuchh kahne ki jarurat hi kya hai....
ReplyDeleteजैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
ReplyDeleteदुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
कैसे मैं कह दूँ
ReplyDeleteकि मैं न रूठूँ तुमसे
जबकि हर बार
मैंने चाहा है
मिलन की मधुर घड़ी
कभी न बदले
विदाई की बेला में....
अदभुत अनुपम अभिव्यक्ति.
कैसे मैं कहूँ कि आपकी इस सुन्दर
अभिव्यक्ति ने मेरा दिल चोरी
कर लिया है.
शानदार प्रस्तुति के लिए आभार.
मिताजी,
ReplyDeleteआपकी कविता मुझे बरबस निमंअन कविता की यद् दिला दी .
विवशता में जिया अपना यह सफ़र,
हर पल किसी एहसास में,
मरुस्थल की मरीचिका की तरह ,
चलते शिथिल होते गात प्राण ,
और कहीं से शरू यह सफ़र,
शुन्य में होंगे विलीन,
फिर भी कैसे कहूं
हो गए तुम मेरे प्राण......
'कैसे मैं कह दूँ'
ReplyDeleteकहने की बात ही कहाँ ! अब तो सिर्फ महसूस ही कर सकते हैं ...
प्रेम में समर्पण की अद्भुत अभिव्यक्ति ..
प्रेमरस में डूबती-उतराती रचना .
अद्भुत रचना.
ReplyDeletebahot khoobsurat. aabhar
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteकहर ढा रही है आज आपकी कवितायेँ...कसम से..
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