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Friday, January 4, 2013

प्यार के साथी ! सच मानो ...


प्यार के साथी ! सच मानो
अपनी चुप-सी पतझड़ को , मैं
बस तुमसे ही गुदगुदाना चाहती हूँ
और इस बासित बगिया में
तेरा ही , बांका बसंत खिलाना चाहती हूँ ...

कहो तो ! हवाओं को सनसनाकर
हर पत्तियों की चुटकियाँ झट से बजा दूँ
अलसाई सी हर कलियों की
आँखों को चूम-चूमकर जगा दूँ ...

यूँ बलखाती डालियों-सी
तुझपर ही , मैं ढुलमुलाना चाहती हूँ
ओ! मेरे सघन तरु , मैं
लता सी ही , तुझसे लिपट जाना चाहती हूँ ...

इस लगन को प्रिय!
बस पागलपन मत कहो तुम
प्रीत पुरातन है मेरा
निरा आकर्षण मत कहो तुम ...

प्यार के साथी ! सच मानो
अपने हर रोदन को
तुमसे अमर गान बनाना चाहती हूँ
और थामकर हाथ तेरे
मुश्किलों को भी आसान बनाना चाहती हूँ ...

कहो तो ! इस उफनते यौवन को
मैं , तुममें अभी ऐसे समा दूँ
कि तुमसे ही उघड़कर
तुम्हे ही मैं , घूँघट भी बना लूँ ...

तेरे लहरों में सिहर कर
अंग-अंग को भिंगाना चाहती हूँ
और तुम्हारे ही सहारे
तुममें ही , डूब जाना चाहती हूँ ...

इस नेह-हिलोर को
बस लड़कपन मत कहो तुम
बड़ी बेबूझ ये चित्त है
रुत का चलन मत कहो तुम ...

प्यार के साथी ! सच मानो
अपनी गहरी प्यास को
तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
और वासनाओं के पार कहीं
निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...

प्यार के साथी ! सच मानो .

31 comments:

  1. स्नेही मनुहार
    मंगलकामनाएं आपको ...

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  2. गुनगुनाता गीत है या तुम्हारा प्रेम !
    बहुत मीठी -प्यारी सी कविता !

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  3. तुमसे ही उघड़कर
    तुम्हे ही मैं , घूँघट भी बना लूँ ...
    :) :) :)

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  4. सच मानो
    ऐसी ही प्रीत
    जन्मों-जन्मों तक
    निभाना चाहती हूँ मैं
    सादगी से भरे सुन्दर स्नेही भाव मन को भा गए... शुभकामनायें

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  5. प्यार प्यार और बेशुमार प्यार.....
    भा गयी आपकी ये रचना <3
    बहुत ही सुन्दर अमृता जी

    अनु

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  6. कहो तो ! हवाओं को सनसनाकर
    हर पत्तियों की चुटकियाँ झट से बजा दूँ
    अलसाई सी हर कलियों की
    आँखों को चूम-चूमकर जगा दूँ ..........कितनी खूबसूरत कोशिश है ......

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  7. नयी उम्मीदों के साथ नववर्ष की शुभकामनाएँ....अमृता जी

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  8. जो भी चाहतें हैं सब इस नए साल में पूरी हो जाएँ :-))

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  9. आफत की शोख़ियां है आपकी निगाह में......

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  10. प्रत्‍येक शब्‍द स्‍नेहरंग रंगा ...

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  11. यह प्यार का साथी इसी दुनिया का बाशिंदा है या...ऐसा प्यार तो बस उसी से हो सकता है..

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  12. बहुत सुन्दर और कोमल भावों से सजी शब्द रचना।

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  13. प्रेम के गहन रस में आप्लावित आपकी एक यादगार उत्कृष्ट रचना! मानो समग्र निसर्ग ही प्रेम पूरित हो गया हो ! मन को गहरे संस्पर्श कर गयी यह कविता !

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  14. बहुत ही कोमल भावो से सजी खुबसूरत रचना....

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  15. यूँ बलखाती डालियों-सी
    तुझपर ही , मैं ढुलमुलाना चाहती हूँ
    ओ! मेरे सघन तरु , मैं
    लता सी ही , तुझसे लिपट जाना चाहती हूँ ...

    प्यार के साथी ! सच मानो
    अपनी गहरी प्यास को
    तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
    और वासनाओं के पार कहीं
    निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...

    प्यार के साथी ! सच मानो .

    परिपूर्ण समर्पण प्रेम का अंतिम सौपान है देह के पार ,समाधिस्थ होना है .उद्दाम वेग प्रेम का अपनी दशा पा गया है इस रचना में कोई ये होता तो वो होता नहीं है इस

    रचना में .पूर्ण अभिव्यक्ति है प्रेम की .

    एक प्रतिक्रया ब्लॉग पोस्ट :

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  16. प्यार के साथी ! सच मानो
    अपनी गहरी प्यास को
    तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
    और वासनाओं के पार कहीं
    निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...
    प्रेम रस में पगी प्यारी सी रचना ..... बेहद सुन्दर!

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  17. Amrita,

    GOORH PREM MEIN DOOBI YUVATI KE BOL BAHUT SAPASHT DHANG SE KAHE.

    Take care

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  18. अपनी गहरी प्यास को
    तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ

    बहुत सुन्दर भाव

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  19. बहुत प्यारी कविता. हर शब्द प्रेम सिक्त है.आखिरी शब्द बहुत सुन्दर भाव समेटे हैं. निर्वासना के धरातल पर ही प्यार की सच्ची अनुभूति है. कुछ दिल पहले मिलते जुलते ख़याल से एक कविता लिखी थी.आपकी नज़र-
    http://kalambinbaat.blogspot.com/2012/12/blog-post_14.html

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  20. प्यार के साथी ! सच मानो
    अपनी गहरी प्यास को
    तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
    और वासनाओं के पार कहीं
    निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...

    प्यार के साथी ! सच मानो .

    गजब की अभिलाषा

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  21. बहुत ही सुन्दर शब्द-अलंकृत रचना!

    "प्यार के साथी ! सच मानो
    अपनी गहरी प्यास को
    तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
    और वासनाओं के पार कहीं
    निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ" ...

    ReplyDelete
  22. अपनी गहरी प्यास को
    तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
    और वासनाओं के पार कहीं
    निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...

    सच्चे प्यार की पहचान भी यही है.

    सुंदर कविता.

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  23. बहुत सुन्दर मनुहार....
    मीठी सी प्यारी सी रचना..
    अति सुन्दर.....
    :-)

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  24. Ab bhi kuchh likhaa ßhesh hai kya' sharîr aur bhawon ke us par milan kî abilasha me ............ûs saagar me ............amûlya. çhîtran..........añmol rachana.

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    Replies
    1. इस अनमोल सी रचना के बारे में लिखने की सिर्फ एक ही आवश्यकता है और वह यह की आप जैसी इतनी भावपूर्ण रचनाओं को लिखती तो हैं पर इतनी गुमनाम सी क्यों.? हिंदी काब्य जगत को आपके अनमोल रचनाओं को अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँच हो , और इस अमूर्त और मूक भावों तक हम ब्लागरों के अतिरिक्त भी हिंदी कब्याप्रेमी जान सके तथा अपनी उद्गार आप तक तथा हम सब लोगों तक मिल सके.इन कब्यों का आलोचना या सम्लोचना हो सके.आप गुमनामी से nikalkar प्रकश में आयें.अगर मेरे सुझाव प्रिये ना लगे तो क्षमा .
      प्यार के साथी ! सच मानो
      अपने हर रोदन को
      तुमसे अमर गान बनाना चाहती हूँ
      और थामकर हाथ तेरे
      मुश्किलों को भी आसान बनाना चाहती हूँ ...

      Delete
  25. प्यार के साथी ! सच मानो
    अपनी गहरी प्यास को
    तुममें ही , तृप्ति बनाना चाहती हूँ
    और वासनाओं के पार कहीं
    निर्वासना का रस भी बहाना चाहती हूँ ...

    ....निस्वार्थ सच्चे प्रेम की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति...

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  26. आपने विचित्रता व्‍याप्‍त कर दी है, मेरी तो सुध-बुद्ध हर दी है।

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  27. तेरे लहरों में सिहर कर
    अंग-अंग को भिंगाना चाहती हूँ
    और तुम्हारे ही सहारे
    तुममें ही , डूब जाना चाहती हूँ ...

    खूबशूरत मनुहार भरी प्रस्तुति,,

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