जब शब्द-भ्रम पुरत:
तिमिर की घनी छाँव बन जाए
धुँधली-धुँधली सी सब ज्योति पड़ जाए
और आँखों में अश्रुघन उमड़ आये
तो प्रच्युत प्रतिनाद को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
शब्द-बोध , शब्द-श्लेष
भेद कर बुद्धि जन्य क्लेश
लख स्निग्ध उर-तल उन्मेष
उस प्रतिध्वनि को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
जब शब्द-व्यूह पुन:
अपने मूल स्रोत में समा जाए
तब जो भी अर्थ शेष रह जाए
वही तुमसे कोई गीत रचा जाए
उस शेषनाद को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
शब्द-शून्य , शब्द-रिक्त
उसी भाव में हो दृढ़ चित्त
थिरकता हुआ ये जीवन-नृत्य
उस धुन को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
जब शब्द-ब्रह्म पुन:-पुन:
उसी राग-रंग के संग गाये
एक मुक्त प्रार्थना नभ छू आये
और वेदना भी गंगा-यमुना बन जाए
उस अविरल धार को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
शब्द-शमित , शब्द-हीन
तुम-तुम-तुम बजे शाश्वत-बीन
क्षण-क्षण हो जिसमें लवलीन
उस हृत्प्रिय क्षण को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना .
Amrita,
ReplyDeleteIS BAAR GOORH HINDI KO SAMJHANE KE LIYE MUJHE TEEN BAAR PARHNAA PARHAA. MAANTAA HOON KI HUM SHABON KE VYOOH MEIN PHANS JAATE HAIN.
Take care
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (16-01-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
कुछ टिप्पणी करते ही नहीं बन रहा - भाव संश्लिष्ट है और शब्द क्लिष्ट !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ढंग से भाव सजाये हैं..
ReplyDeleteसंवेदनात्मक रुप से काफ़ी संश्लिष्ट और गहरी अनुभूति की अभिव्यक्ति है, यह कविता।
ReplyDeleteजब शब्द-ब्रह्म पुन:-पुन:
ReplyDeleteउसी राग-रंग के संग गाये
एक मुक्त प्रार्थना नभ छू आये
और वेदना भी गंगा-यमुना बन जाए
उस अविरल धार को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
....गहन अहसासों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
शब्द-शून्य , शब्द-रिक्त
ReplyDeleteउसी भाव में हो दृढ़ चित्त
थिरकता हुआ ये जीवन-नृत्य
उस धुन को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
बहुत सुंदर रचना
बढिया भाव
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं
शब्द-शून्य , शब्द-रिक्त
ReplyDeleteउसी भाव में हो दृढ़ चित्त
थिरकता हुआ ये जीवन-नृत्य
उस धुन को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
बहुत सुंदर भाव उम्दा पंक्तियाँ ,,
recent post: मातृभूमि,
सुन्दर कविता.
ReplyDeleteमन की सुन्दर अभिलाषाएं। ऐसा ही हो, ये आकांक्षा पूरित हो।
ReplyDeleteसुन्दर, अलंकृत रचना।
सादर
मधुरेश
बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
उसी गीत को तुम गा लेना ....
ReplyDeleteवाह....
अद्भुत भावनाओं को सुगमता से मन के हर स्रोत का उद्गम बना दिया
ReplyDeleteसंस्कार ग्रसित मानव मन अधिक से अधिक स्थूल वस्तुओं के आकर्षण के पार किसी गहरे सुक्क्ष्म भावों की में समाहित होने की अंतर पिपासा के कारन जीवन पर्यन्त खोजता रहता है, किसी सुख को ,और यात्रा चलती रहती है.सार शास्त्र और खोजी महाजन ने उस अन्नंत को को पाया और पंथ बताते चलते चले आये.महाजनों येन गता सा पन्था.आपने इस कविता के माध्यम से उसी सूक्ष्म तम भावों को इंगित कर रही है .जंहा शब्द खो जाते है और एक भाव ही बचता है परम का भाव स्थूल भवों से सूक्ष्म में उस आननद में खो जाना.और होठों पर रह जाये ॐ ॐ ॐ या तुम तुम ,.....अमृता जी प्रेम की जिस सर्वोच अवस्था का आपने चित्रण किया है और इतने सामान्य तरीके से की किसी भी मानव के लिए उस प्रेम की अवस्था को पा लेना सहज हो जाए.मेर समझ से भक्ति की एक नव धारा का या प्रेम के पथ से उस अन्नंत को अनुभूत कर सकने की एक नयी द्वार ही खोल दे रही है.
ReplyDeleteमै अपनी अंजुरी में
ReplyDeleteउठाती हूँ दुख़
और सहेज लेती हूँ
तुम्हारा आकाश ..
उदास कैनवास पर
उत्तप्त लहरें हैं
जब गतियाँ ठहर जाती है
मै अपनी अंजुरी में
फिर उठाती हूँ कुछ शब्द
और सहेज लेती हूँ
तुम्हारा संकल्प ..
विराट मौन में
कितने आसमान हैं
.........................................
शब्द ..शब्द अमृत
शब्द ..शब्द जीवन
वाह !सुंदर पंक्तियाँ .बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशब्द ..शब्द अमृत
शब्द ..शब्द जीवन
बहुत सुन्दर भाव सुन्दर गीत..
ReplyDeleteऐसा लगा जैसे 'प्रसाद' जी कि कोई कविता पढ़ रहा हूँ..........बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteजब शब्द-भ्रम पुरत:
ReplyDeleteतिमिर की घनी छाँव बन जाए
धुँधली-धुँधली सी सब ज्योति पड़ जाए
और आँखों में अश्रुघन उमड़ आये
तो प्रच्युत प्रतिनाद को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
दार्शनिक भाव बोध से सजी एक सुन्दर कविता |
shabdo - bhavnao ka atulniy mishran-***
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुती,आभार।
ReplyDeleteजब शब्द-ब्रह्म पुन:-पुन:
ReplyDeleteउसी राग-रंग के संग गाये
एक मुक्त प्रार्थना नभ छू आये
और वेदना भी गंगा-यमुना बन जाए
उस अविरल धार को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
बहुत ही मधुर, लाजवाब भावपूर्ण रचना ...
आनंद आ गया ...
शब्द-शून्य , शब्द-रिक्त
ReplyDeleteउसी भाव में हो दृढ़ चित्त
थिरकता हुआ ये जीवन-नृत्य
उस धुन को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
अनुपम भाव संयोजन
Ati sundar kriti..badhai...!
ReplyDeleteशब्दों के भ्रम से शब्दहीन होने तक के सफर का स्वागत है। जिसकी मंजिल एक गीत है। जिसे गाने की गुजारिश कविता के मर्म को स्पष्ट करती है। लेकिन सवाल बना रहता है कि क्या शब्द हीनता की अवस्था के बाद शब्दों की मजूरी करने वाला कवि बेरोजगार हो जाएगा।
ReplyDeleteनिशब्द से गुजर कर जो शब्द निकलता है वही वेद बन जाता है..
Deleteजब शब्द-व्यूह पुन:
ReplyDeleteअपने मूल स्रोत में समा जाए
तब जो भी अर्थ शेष रह जाए
वही तुमसे कोई गीत रचा जाए
उस शेषनाद को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
निःशब्द करती रचना जहाँ भावों की गहनता देखते बनती है
शब्द-शून्य , शब्द-रिक्त
ReplyDeleteउसी भाव में हो दृढ़ चित्त
थिरकता हुआ ये जीवन-नृत्य
उस धुन को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
अतुलनीय भाव और अनुपम शब्द चयन..........
जब शब्द-ब्रह्म पुन:-पुन:
ReplyDeleteउसी राग-रंग के संग गाये
एक मुक्त प्रार्थना नभ छू आये
और वेदना भी गंगा-यमुना बन जाए
उस अविरल धार को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
बहुत सुंदर रचना .... हर पंक्ति जैसे मंत्रोचार की जा रही हो
wov excellent poetry..
ReplyDeletegreat comand on language..
फिलहाल तो इस शब्द व्यूह में अटके हैं ...
ReplyDeleteदर्द से या ख़ुशी से जो बोल उपजे , उन्ही को गीत बनाकर गा लेना !
अमृता जी,कुछेक कठिन शब्दों को छोड़कर पूरी कविता निशब्द कर गयी...आभार !
ReplyDeleteजब शब्द-ब्रह्म पुन:-पुन:
ReplyDeleteउसी राग-रंग के संग गाये
एक मुक्त प्रार्थना नभ छू आये
और वेदना भी गंगा-यमुना बन जाए
उस अविरल धार को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
बहुत सुन्दर अद्दभुत शब्दों में भाव संजोये हैं अम्रता जी क्या कहने बधाई आपको इस सुन्दर गीत के लिए
अमृता जी पूरी तन्मयता से पढ़ी कविता..पढ़ी क्या गुनगुता चला गया साथ...बेहतरीन कविता....आप कैसे लिख लेती हैं इतनी सुंदर कविता..शब्द दर शब्द ..मोती की माला सी कविता
ReplyDelete✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
जब शब्द-व्यूह पुन:
अपने मूल स्रोत में समा जाए
तब जो भी अर्थ शेष रह जाए
वही तुमसे कोई गीत रचा जाए
उस शेषनाद को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
जब शब्द-ब्रह्म पुन:-पुन:
उसी राग-रंग के संग गाये
एक मुक्त प्रार्थना नभ छू आये
और वेदना भी गंगा-यमुना बन जाए
उस अविरल धार को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
अत्युत्कृष्ट !
आदरणीया अमृता तन्मय जी
बहुत तन्मय हो कर अमृत -पान किया आपके इस अप्रतिम अद्भुत अलौकिक गीत का ...
अभी एक बार और पढ़ने आऊंगा ...
एक-दो शब्दों के अर्थ अच्छी तरह से समझ कर शेष आनंद लेने के लिए ...
यथा - पुरत: / हृत्प्रिय
:)
नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ ही
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर के लिए !
... और शुभकामनाएं आने वाले सभी उत्सवों-पर्वों के लिए !!
:)
राजेन्द्र स्वर्णकार
✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿
शब्द-शमित , शब्द-हीन
ReplyDeleteतुम-तुम-तुम बजे शाश्वत-बीन
क्षण-क्षण हो जिसमें लवलीन
उस हृत्प्रिय क्षण को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना .
-
कितना दुर्लभ होता है ऐसे क्षण पाना और तन्मय हो कर गाना !
kuke papihaa matibhrm hokar
ReplyDeleteswaati ki boondon ko paakar ....
kuch esaa hi taadaamya sthaapit kar gayi
aapki rachnaa .... mera abhinandan svikaary ho
aa. Amritaa Ji ...
शब्द-शमित , शब्द-हीन
ReplyDeleteतुम-तुम-तुम बजे शाश्वत-बीन
क्षण-क्षण हो जिसमें लवलीन
उस हृत्प्रिय क्षण को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना .
-behad sundar bhav..
bahut hi sundar rachana,
ReplyDeleteजब शब्द-ब्रह्म पुन:-पुन:
ReplyDeleteउसी राग-रंग के संग गाये
एक मुक्त प्रार्थना नभ छू आये
और वेदना भी गंगा-यमुना बन जाए
उस अविरल धार को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना...
बहुत सुंदर रचना ....
हो सके तो इस ब्लॉग पर भी पधारे
पोस्ट
Gift- Every Second of My life.
सुंदर गीत निशब्द कर जाता है. बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeleteवाह...सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteआपको पढना एक अनुभव होता है
ReplyDeleteबच्चन जी की कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी अमृता जी ...
ReplyDeleteमेरे वर्ण-वर्ण विश्रंखल,
चरण-चरण भरमाये,
गूंज-ग़ूजकर मिटने वाले
मैने गीत बनाये,
कूक हो गई हूक गगन की
कोकिल के कंठों पर,
तुम गा दो, मेरा गान अमर हो जाये ।
आप अद्भुत लिखती हैं....और आपकी लेखनी दिन प्रतिदिन निकरती जा रही है....शब्दों का चयन आपकी मनोदशा को चित्रित करता है जो ऊंचे आदर्शों का वितान ओढ़े है....प्रच्युत प्रतिनाद जो पा लेगा...वो संग संग फिर गा लेगा ...
क्या हो कहने को, सिवाय कविता में बहने को
ReplyDeleteशब्द-शमित , शब्द-हीन
ReplyDeleteतुम-तुम-तुम बजे शाश्वत-बीन
क्षण-क्षण हो जिसमें लवलीन
उस हृत्प्रिय क्षण को तुम पा लेना
बस उसी गीत को तुम गा लेना .
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति