मैंने अब धारा की
उस प्रचंडता को पहचान लिया है
व अपने अनुरूप ही
हर ढाल का भी निर्माण किया है...
ये भी माना कि
प्रवाह-शक्ति बड़ी मद से भरी है
पर सामने भी तो
कई भीमकाय बाधाएँ भी खड़ी है...
जहाँ निषेध है
वहाँ उद्रेकता में उछल जाती हूँ
और मूल से ही
हर पाषाण को रेत-रेत कर जाती हूँ...
ऐसे न बहूँ तो
ये जो तृषा है शांत कैसे होगी ?
कुछ कमल व हंसों में
मानसरोवर की गति जैसे होगी...
गर्जन-तर्जन करके
सारी वर्जनाओं को तोड़ देना है
पोखरों में ही सिमटी हुई
अन्य धाराओं को भी जोड़ लेना है...
सच! बहने में ही
हम सबों की अंतिम मुक्ति है
यही नियति है और
यही एक और केवल एक युक्ति है .
सच! बहने में ही
ReplyDeleteहम सबों की अंतिम मुक्ति है
यही नियति है और
यही एक और केवल एक युक्ति है .
बिल्कुल सच कहा आपने इन पंक्तियों में
और मूल से ही
ReplyDeleteहर पाषाण को रेत-रेत कर जाती हूँ...
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कितना अद्भुत ... बता नहीं सकता ...
सार्थक एवं सटीक पंक्तियाँ
ReplyDeletebehtreen aur sarthak....
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट की चर्चा 10-01-2013 के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें और अपने बहुमूल्य विचारों से अवगत करवाएं
सच! बहने में ही
ReplyDeleteहम सबों की अंतिम मुक्ति है
यही नियति है और
यही एक और केवल एक युक्ति है .....और यही आज की ज़रुरत भी है .....
बहुत ही सुन्दर कविता |आभार
ReplyDeleteAmrita,
ReplyDeleteAAGE BARHNAA AUR JO AAS PAAS SAATH HON UNKO BHI SANG LE JAANAA HI SAHI HAI.
Take care
यही नियति है और
ReplyDeleteयही एक और केवल एक युक्ति है,,,,
सटीक सार्थक पंक्तियाँ,,,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
गत्यमान रहना ही ज़िन्दगी है. स्थावर होने से चिर समाधि अच्छी. सुन्दर रचना.
ReplyDeletebahut gambheer rachna ///sarthak//
ReplyDeleteVERY DEEP FEELINGS @@@@@@सच! बहने में ही
ReplyDeleteहम सबों की अंतिम मुक्ति है
यही नियति है और
यही एक और केवल एक युक्ति है .
गर्जन-तर्जन करके
ReplyDeleteसारी वर्जनाओं को तोड़ देना है
वाह !!!!!!!!!!!!
सार्थक रचना...
सार्थक पोस्ट!
ReplyDeleteपोखर में नही सिमटना है...
सब धाराओं को साथ समेटना है...
और बहते जाना है...
~सादर!!!
पोखर में नहीं सिमटना है ....
ReplyDeleteसन्देश प्रभावी है !
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
मुट्ठी बन जाना ही आधार है
ReplyDeleteबेहतरीन .... धारा का प्रवाह भी तेज़ होना चाहिए ...
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 10 -01 -2013 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
सड़कों पर आन्दोलन सही पर देहरी के भीतर भी झांकें.... आज की हलचल में.... संगीता स्वरूप. .
बहना मुक्ति के लिए ... पर दिशा निर्धारित करके ...
ReplyDeleteसफलता मिलती है ...
बहना ही मुक्ति है ……………सु्न्दर संदेश देती रचना
ReplyDeleteअनादी kaal से प्रवाहित यह शाश्वत धारा स्थान काल और पात्र को समाहित किये चला आ रहा है.स्थूल से सुक्ष्म और फिर सुक्ष्म से स्थूल यह ही प्रवाह है.सिर्फ मन से ही बोध होता रहता है की कांहीं कोई अवरोध है या गति शुन्य है पर ऐसा होता ही नहीं .मन की इस अवस्था ka ek satik sa chitran .
ReplyDeleteसचमुच...बहते जाना ही नियति है..सारी बाधाओं को पार करते हुए..प्रेरक पंक्तियाँ...आभार अमृता जी !
ReplyDeleteसशक्त अभिव्यक्ति आधी दुनिया का आवाहन उद्दाम आवेग एक बलवती वेगवती धारा सब कुछ को बहा ले जाने की क्षमता रखता है उससे पहले यहाँ कुछ होना भी नहीं है .
ReplyDeleteहम सबों की अंतिम मुक्ति है
ReplyDeleteयही नियति है और
यही एक और केवल एक युक्ति है .
BAHUT HI BADHIYA....
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteसाधू .... आ.अमृता जी ।
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन सार्थक रचना...
ReplyDeleteबहने में मुक्ति की बात काबिल-ए-गौर है। सुंदर रचना के लिए शुक्रिया।
ReplyDeleteशाश्वत बहना...
ReplyDeleteबहते जाना ही गति है इस जीवन की.....!
सुन्दर....
अति सुन्दर.....
सागर तक गर जाना है,
ReplyDeleteपानी सा बह जाना है।
सच! बहने में ही
ReplyDeleteहम सबों की अंतिम मुक्ति है
यही नियति है और
यही एक और केवल एक युक्ति है .
शाश्वत सत्य........बहुत ही सुन्दर ।
बिलकुल सच!!
ReplyDeleteगर्जन-तर्जन करके
ReplyDeleteसारी वर्जनाओं को तोड़ देना है
पोखरों में ही सिमटी हुई
अन्य धाराओं को भी जोड़ लेना है...
सच! बहने में ही
हम सबों की अंतिम मुक्ति है
यही नियति है और
यही एक और केवल एक युक्ति है .
yahi यही अब भारत की हरेक युवती का संकल्प है .
Baho nadi baho anvarat apratihat aviram.. Jhuke sheesh sagar karata tera abhiram!
ReplyDeleteगर्जन-तर्जन करके
ReplyDeleteसारी वर्जनाओं को तोड़ देना है
पोखरों में ही सिमटी हुई
अन्य धाराओं को भी जोड़ लेना है...
....इसी ज़ज्बे की आज ज़रुरत है..बहुत विचारोत्तेजक सशक्त अभिव्यक्ति...
सच! बहने में ही
ReplyDeleteहम सबों की अंतिम मुक्ति है
गति ही जीवन. रुकने से सदन होती है. सुंदर कविता.
ReplyDeleteलोहड़ी, मकर संक्रांति और माघ बिहू की शुभकामनायें.
बहुत बढि़या..लोहड़ी, मकर संक्रांति की शुभकामनायें...
ReplyDeleteआप से बैठकर कविताओं पर बातें करने का मन है।
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