तुम कहते हो कि
मेरी कविताएंँ
तुम्हारे लिए
प्यार भरा बुलावा है
शब्दों के व्यूह में फँसकर
तुम स्वयं को
पूरी तरह भूल जाते हो
कुछ ऐसा ही
सम्मोहक भुलावा है
मेरे शब्दों से बंध कर
तुम खींचे चले आते हो
और तपती दुपहरिया में
तनिक छाया पाते हो
पर कैसे ले जाएंँगी
तुम्हीं को तुमसे पार
मेरी कविताएंँ
अपरंपार
औपचारिक परिचय भर से ही
शब्द अर्थ नहीं हो जाते
और आरोपित अर्थों से
शब्द अनर्थ होकर
व्यर्थ हो जाते
शब्दों से शब्दों तक
जितनी पहुंँच है तुम्हारी
केवल वहीं तक
तुम पहुंँच पाओगे
शब्दों के खोल से
जो भी अर्थ निकले
अपने अर्थ को ही पाओगे
मेरे शब्दों के सहारे
घड़ी भर के लिए ही सही
तुम अपने ही अर्थ को पाओ तो
कुछ-ना-कुछ
घटते-घटते घट जाएगी
मेरी कविताएँ
तुम्हारी ही प्रतिसंवेदना है
तुम्हारे अर्थों से भी
इस छोर से उस छोर तक
बँटते-बँटते बँट जाएगी .
वाह🌻
ReplyDeleteलाजवाब।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 13 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteहर कोई अपने ही अर्थ लगाता है
ReplyDeleteदूजों के शब्दों के सहारे निज व्यथा ही भुलाता है
साहित्य हो या कला बाँटने से बढ़ती हैं,
पाठक और दर्शक की संवेदनाएं जो आकर उसमें जुड़ती हैं
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteतुम्हारी ही प्रतिसंवेदना है
ReplyDeleteतुम्हारे अर्थों से भी
इस छोर से उस छोर तक
बँटते-बँटते बँट जाएगी .
वाह!!!
लेखक के शब्द पाठक के भाव मिलकर बनती है कविता।
बहुत सुन्दर।
मेरी कविताएँ
ReplyDeleteतुम्हारी ही प्रतिसंवेदना है
तुम्हारे अर्थों से भी
इस छोर से उस छोर तक
बँटते-बँटते बँट जाएगी .,,,,,,,, बहुत सुंदर रचना,।
शब्दाभिव्यक्ति और संप्रेषण का संपूर्ण फलसफा. सुनने वाला उतना ही सुनता है जितना वह सुनना चाहता है. अर्थ निष्कर्ष भी उसके अपने ही होते हैं. कहने वाला उसमें काफी कम रह जाता है यह बात तो सही है, लेकिन रह जाता है यह बड़ी बात है.
ReplyDeleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 16-10-2020) को "न मैं चुप हूँ न गाता हूँ" (चर्चा अंक-3856) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है.
…
"मीना भारद्वाज"
संप्रेषण ग्रहण करने का सबका अपना-अपना स्तर है ,अपनी रुचि और सामर्थ्य के अनुसार .
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,अमृता दी।
ReplyDeleteवाह. बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteऔपचारिक परिचय भर से ही
ReplyDeleteशब्द अर्थ नहीं हो जाते...बहुत सुन्दर!
chor se chor takk ki aprampar kavita aur kavita mein sambandhon ka prakatya
ReplyDeletekshma chahta hun...chor ko chhor padhen
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