जिंदगी के वस्ल वादों में
मेरे इतराते इरादों में
कुछ ऐसी ठनी
कि हर बिगड़ी हुई बात
नाज़ुक सी नाज़ की
बदसूरत बर्बादी बनी
भागते गुबारों ने
आहिस्ते से कहा
जिंदगी को तो
हाथ से छूटना ही है
ख्वाबों का क्या
पूरा होकर भी
टूटना ही है
पर रूठी उम्मीदों को
मनाने का अपना एक
अलग ही मजा है
छठे सातवें फ़रेब में
खुद को खुदाई तक
फिर से फँसाने का
उससे भी ज्यादा मजा है
तब तो मुद्दत पहले
उदास ग़ज़लों को
छूटी हुई राहों में
छोड़ आई हूं
मत्तला और क़ाफ़िया को
प्यार से आज़ाद कर
नज़्म बन पाई हूं
खुद को ही ख़बर लगी कि
अभी भी बहुत कुछ है
मेरे तिलिस्मी ख्यालों में
ऐ जिंदगी !
तुझको ही मैंने
अब भर दिया है
एतबार के टूटे प्यालों में .
वाह 🌻
ReplyDeleteएतबार के टूटे प्यालों में .
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 7 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ऐ जिंदगी !
ReplyDeleteतुझको ही मैंने
अब भर दिया है
एतबार के टूटे प्यालों में .
- बहुत ही सुंदर लिखा है आपने। मन आह्लादित हो चला। अनेकों साधुवाद आदरणीय।
रूठी उम्मीदों को मनाने से लेकर ज़िंदगी को एतबार के टूटे प्यालों में भर लेने तक इरादों के इतराने की बात टीस भी छोड़ जाती है.
ReplyDeleteबेजोड़ शैली है आपकी.
मत्तला और क़ाफ़िया को
ReplyDeleteप्यार से आज़ाद कर
नज़्म बन पाई हूँ
गज़ब -उम्दा भावाभिव्यक्ति
वाह !बेहतरीन 👌👌
ReplyDeleteऐ जिंदगी !
ReplyDeleteतुझको ही मैंने
अब भर दिया है
एतबार के टूटे प्यालों में
वाह!!!
बहुत सुन्दर... लाजवाब सृजन।
बहुत खूब
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
वाह!
ReplyDeleteलाजवाब और बेहतरीन...मंत्रमुग्ध करती अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबंदिशों से आज़ाद हो ग़ज़ल से नज़्म बन जाना भी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीने का सलीका है । गहन भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeletebhasha jo bhi hai par ehsaas gehre hain..khud ko ubarne ke kadi mein dusron ko bhi ubar rahe hain...
ReplyDeleteकिंकर्त्यविमूढ़..
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