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Tuesday, October 6, 2020

छठे सातवें फ़रेब में ......

जिंदगी के वस्ल वादों में 

मेरे इतराते इरादों में

कुछ ऐसी ठनी

कि हर बिगड़ी हुई बात 

नाज़ुक सी नाज़ की 

बदसूरत बर्बादी बनी

भागते गुबारों ने

आहिस्ते से कहा

जिंदगी को तो

हाथ से छूटना ही है

ख्वाबों का क्या

पूरा होकर भी

टूटना ही है

पर रूठी उम्मीदों को

मनाने का अपना एक 

अलग ही मजा है

छठे सातवें फ़रेब में

खुद को खुदाई तक

फिर से फँसाने का

उससे भी ज्यादा मजा है

तब तो मुद्दत पहले

उदास ग़ज़लों को

छूटी हुई राहों में

छोड़ आई हूं

मत्तला और क़ाफ़िया को

प्यार से आज़ाद कर

नज़्म बन पाई हूं 

खुद को ही ख़बर लगी कि

अभी भी बहुत कुछ है

मेरे तिलिस्मी ख्यालों में

ऐ जिंदगी ! 

तुझको ही मैंने

अब भर दिया है

एतबार के टूटे प्यालों में .

16 comments:

  1. एतबार के टूटे प्यालों में .
    लाजवाब

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 7 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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  3. ऐ जिंदगी !
    तुझको ही मैंने
    अब भर दिया है
    एतबार के टूटे प्यालों में .
    - बहुत ही सुंदर लिखा है आपने। मन आह्लादित हो चला। अनेकों साधुवाद आदरणीय।

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  4. रूठी उम्मीदों को मनाने से लेकर ज़िंदगी को एतबार के टूटे प्यालों में भर लेने तक इरादों के इतराने की बात टीस भी छोड़ जाती है.

    बेजोड़ शैली है आपकी.

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  5. मत्तला और क़ाफ़िया को
    प्यार से आज़ाद कर
    नज़्म बन पाई हूँ

    गज़ब -उम्दा भावाभिव्यक्ति

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  6. ऐ जिंदगी !
    तुझको ही मैंने
    अब भर दिया है
    एतबार के टूटे प्यालों में
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर... लाजवाब सृजन।

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  7. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  8. लाजवाब और बेहतरीन...मंत्रमुग्ध करती अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।

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  9. बहुत सुन्दर रचना

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  10. बंदिशों से आज़ाद हो ग़ज़ल से नज़्म बन जाना भी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीने का सलीका है । गहन भावाभिव्यक्ति ।

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  11. bhasha jo bhi hai par ehsaas gehre hain..khud ko ubarne ke kadi mein dusron ko bhi ubar rahe hain...

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  12. किंकर्त्यविमूढ़..

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