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Friday, April 9, 2021

एक चोट की मन:स्थिति में .......

                               चोट लगी है, बहुत गहरी चोट लगी है । चोट किससे लगी है, कितनी लगी है,  कैसे लगी है, क्यों लगी है, कहाँ लगी है जैसे कारण गौण है ।  न तो कोई पीड़ा है न ही कोई छटपटाहट है, बस एक टीस है जो रह-रहकर बताती है कि गहरी चोट लगी है । न कोई बेचैनी है, न ही कोई तड़प और फूलों के छुअन से ही कराह उठने वाला दर्द भी मौन है । शून्यता, रिक्तता, खालीपन पूरे अस्तित्व में पसरा है । सारा क्रियाकलाप अपने लय और गति में हो रहा है पर कुछ है जो रुक गया है । कोई है जिसको कुछ हो गया है और बता नहीं पा रहा है कि उसको क्या हुआ है । 

                                     गहरे में कहीं इतना नीरव सन्नाटा है कि आती-जाती हुई साँसें विराम बिंदु पर टकराते हुए शोर कर रही है । हृदय का अनियंत्रित स्पंदन चौंका रहा है । शिराओं में रक्त-प्रवाह सर्प सदृश है । आँखें देख रही है पर पुतलियां बिंब विहीन हैं । स्पर्श संवेदनशून्य है । गंध अपने ही गुण से विमुख है । कहीं कोई हलचल नहीं है और न ही कोई विचलन है । किसी सजीव वस्तु के परिभाषा के अनुसार शरीर यंत्रवत आवश्यक कार्यों को संपादित कर रहा है । पर तंत्रिकाओं का आपसी संपर्क छिन्न-भिन्न हो गया है जैसे उनमें कभी कोई पहचान ही नहीं हो ।

                               हृदय के बीचों-बीच कहीं परमाणु विखंडन-सा कुछ हुआ है और सबकुछ टूट गया है ।  उस सबकुछ में क्या कुछ था और क्या कुछ टूटा है, कुछ पता नहीं है । बस सुलगता ताप है, दहकती चिंगारियां हैं और भस्मीभूत अवशेष हैं । उसी में कोई नग्न सत्य अपने स्वभाव में प्रकट हो गया है । उस चोट से आँखें खुली तो लगा जैसे लंबे अरसे से गहरी नींद में सोते हुए, मनोनुकूल स्वप्नों का किसी काल्पनिक पटल पर प्रक्षेपण हो रहा हो और उसी को सच माना जा रहा हो । एक ऐसा सच जो शायद कोई भयानक, सम्मोहक भ्रम या कोई भूल-भुलैया जैसा, जिससे निकलने का कोई रास्ता नहीं हो । सोने वाला भी मानो उससे कभी निकलना नहीं चाहता हो । फिर उसी गहरी नींद में अचानक से कोई बहुत जोरों की चोट देकर जगा दिया ।

                                  किंकर्तव्यविमूढ़ वर्तमान, अतीत और भविष्य को साथ लिए स्वयं ही आकस्मिक अवकाश लेकर कहीं चला गया है । इच्छाएं किसी अंधेरी गुफा में जाकर छिप गई हैं । आशाएं भय से कांप रही हैं । पारे-सी लुढकती हुई स्मृतियां किसी भी प्रतिक्रिया से इन्कार कर रही है । सारे भाव अपने वैचारिक लहरों के साथ अपनी ही तलहटी में बैठ गये हैं । जैसे कोई तथाकथित कुबेर अचानक से दिवालिया हो गया है और उसके चेहरे को भी एक झटके में ही मिटा दिया गया हो । कोई है जो तटस्थ और मूकदर्शक है । अनायास आये बवंडर से या तो वह हतप्रभ है या निर्लिप्त है । पर जो हो रहा है उसके अनुसार मन:स्थिति की गतिविधियां इतना तो बता रही है कि गहरी चोट लगी है । 

                                     बार-बार क्यों लग रहा है कि जैसे किसी बड़े-से मेले में कोई बहुत छोटा-सा बच्चा खो गया है । वह अबोध बच्चा ठीक से बोल भी नहीं पा रहा है और अपनों को खोज रहा है । किसी भी अपने के नहीं मिलने पर सबसे इशारों में ही घर पहुंचाने की जिद करते हुए लगातार रोये जा रहा है । कुछ ऐसी ही जिद में कोई है जो अब रो रहा है । शायद उसे भी अपने घर की बहुत याद आ रही है और कोई गोद में उठा कर उसे उसके घर पहुंचा दे । 

                     

24 comments:

  1. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय लेख । बहुत प्रभावशाली गद्य लेखन है आपका ।

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  2. आपके 'अमृत'-चिंतन में तो मैं इतना 'तन्मय' हो गया कि कोई चोट शेष ही न रही!

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  3. मन पर लगा चोट एक शब्द नहीं है न ही सीमित भाव ही है सच कहें तो पढ़कर ऐसा लगा जैसे किसी ने अनायास घाव कुरेद दिया हो आँखें डबडबा गयी।
    बहुत कुछ लिखना चाहती हूँ पर शब्द खो गये हैं।
    हृदयस्पर्शी लेखन प्रिय अमृता जी।
    सादर।

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  4. अंतस्थ की चोट और ये अभिव्यक्ति निशब्द कर गई।
    बहुत अच्छा लिखती हैं।
    बधाई

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  5. प्रिय अमृता जी , बहुत बार पढ़ा और शब्दों में व्याप्त आत्मा की चोट से उतनी ही बार दो चार हुई | सच है हर किसी को लगती है ये चोट और मिलता है अदृश्य घाव | इसका कारण कोई भी होता हो -चाहे किसी के प्रति अत्यधिक आसक्ति या अति अपेक्षा अथवा किसी द्वारा जाने या अंजाने में पहुंचाया गया आघात। पर ये सच भी कड़वा है जहाँ हमारी आसक्ति सबसे ज्यादा होती होती है ये घाव वहीं से मिलता है। इतना भावपूर्ण लिखा आपने, प्रतिक्रिया के लिए शब्द नहीं ढूँढ पाई। आत्मा से लिखा आपने ❤❤🙏🌹🌹

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  6. एक दुःख कितना हृदयविदारक हो सकता है, और कोई क्या जाने। आपके कविमन ने इसे एक अलग ही विस्तार दिया है। कुछ खो सा चुका था मैं और थोडा विह्वल होने को विवश भी।
    आपकी ही चंद पंक्तियाँ ....
    कोई है जो तटस्थ और मूकदर्शक है । अनायास आये बवंडर से या तो वह हतप्रभ है या निर्लिप्त है । पर जो हो रहा है उसके अनुसार मन:स्थिति की गतिविधियां इतना तो बता रही है कि गहरी चोट लगी है ।

    साधुवाद व अनेकों शुभकामनाएँ। ।।।

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  7. आशाएं भय से कांप रही हैं । पारे-सी लुढकती हुई स्मृतियां किसी भी प्रतिक्रिया से इन्कार कर रही है ।

    आपका यह भाव 'शेर' जैसा है....जिसमे कई भाव है...व्याख्या अपनी समझ के अनुसार। पटल "वैश्विक".

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  8. आपका ये आलेख निशब्द कर गया, वैसे कुछ रहा ही नहीं जो इस वेदना कथ्य से छूटा हो और कोई टिप्पणी कार इस पर कोई टिप्पणी दें सके ।
    बस यूँ कहूँगी चोट गहरी ही नहीं बहुत गहरी है जो सागर तल से भावों के मोती निकाल लाई है।
    अनुपम अभिराम, हृदय स्पर्शी।
    साधुवाद ।

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  9. अर्जुन की सी विषाद योग की स्थिति बन रही है, अब कृष्ण ही आकर इससे उबार सकते हैं

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  10. शून्यता, रिक्तता, खालीपन पूरे अस्तित्व में पसरा है । निशब्द करता लेख, बेहद हृदयस्पर्शी।

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  11. खालीपन,सूनापन,क्या बखूबी दर्शाया है आपने अपनी अमृत सी रचना से बधाई हो आपको आदरणीय

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  12. वेदना जब असीम हो तो रिक्तता के साथ व्याकुलता का भाव उपजता है दिलोदिमाग में और समग्र व्यक्तित्व को समेट लेता है अपनी गहराई में। उन भावों को गहन चिंतन के साथ उकेरता लेख । सदैव की तरह बेमिसाल सृजन अमृता जी!

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  13. आपके चिंतनपूर्ण आलेख और उसकी प्रतिक्रियाएं मुझे निःधब्द कर गईं,कभी कभी हम अपने लिए,कभी हम दूसरे के लिए भी व्यथित हो सकते हैं,आपकी सृजन शीलता इतनी उत्कृष्ट है,जिसके आगे नमन करती हूं,सादर शुभकामनाएं ।

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  14. यह चिट्ठा भावाभिव्यक्ति के साथ-साथ एक प्रकार के गूढ़ चिंतन से भी सिंचा है, ऐसा चिंतन जो हृदय को हल्का करे। इसमें यह सच सामने आता है कि हम चोट उसी जगह खाते हैं जो चोट खाने के लिए ही बनी है या फिर हम ने बना ली है। तभी तो वाक्यों से हुई झड़प और शब्दों से हुई हाथापाई ने दार्शनिक संवाद को जन्म दिया है।
    बहुत सुंदर लिखा है आपने।

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  15. चोट की मनः स्थिति को बखूबी लिखा है । चोट के माध्यम से गंभीर चिंतन

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  16. कभी कभी लगता है कि जीवन क्या है और हम क्यों,किस तरह जी रहें है,जब भीतर उठते प्रश्न जोर से प्रहार करते हैं,तो ऐसे ही चोट लगती है.
    मनुष्य की मनःस्थिति और उसके भीतर पनपती
    संवेदनाओं को चोट के माध्यम से बहुत
    प्रभावी और भावनात्मक से उकेरा है आपने
    अद्भुत सृजन
    बधाई

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  18. बहुत ही अच्छी पोस्ट ।गुड़ चिंतन मनन करती पिस्ट।हार्दिक शुभकामनाएं।सादर अभिवादन

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  19. मात्र एक चोट है के गहरा चिंतन ...
    क्या क्या लिखा डाला आपने ... मैं तो अभी तक सुच ही रहा हूँ ... कई बार पढ़ गया ...

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