यह युग
बीत ही जाएगा
और
एक और युग भी आएगा
जो बीत रहा है वह भी
इतिहास बन जाएगा
पर दोनों कल के
पलड़ों के बीच
शीतयुद्ध जैसा फिर से
कुछ ठन जाएगा
और
ऊँघते काल के प्रवाह में
उबाल और उलार को
नापने के लिए
अनगिनत आँख जड़ा
असंख्य चँदोवा
तन कर, तन जाएगा
तब फिर से
सहमतियों की
आँखों की कृपा पर
हर अगले पन्ने की छपाई
निर्भर करेगा
उनका रंगाई-पुताई
बीते हुए सारे
कानाफूसियों का रहना
दूभर करेगा
और फिर सबमें
एक चुपचाप
शब्दयुद्ध ठन जाएगा
भूलाने लायक
बहुत सारी बातें
कहीं हाशिए में
नामोनिशान मिटा कर
दफन कर दिया जाएगा
कुछ बातों को
सौंदर्य प्रसाधनों से
लीपा-पोती करके
और भी आकर्षक
बना दिया जाएगा
फिर से
इस युग के भी बीतने पर
वही गड्ड-मड्ड सा
एक और
इतिहास बन जाएगा
जिसमें ढूंढने पर भी
इस आज की सच्चाई
कभी नहीं मिलेगी .
वाह 👌
ReplyDeleteसच्चाई मिलने के लिये होती ही कहां है? लाजवाब सृजन।
ReplyDeleteगज़ब!
ReplyDeleteइतिहास पर मेरे भी यही विचार है।
बहुत शानदार।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (15-05-2021 ) को 'मंजिल सभी को है चलने से मिलती' (चर्चा अंक-4068) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बेहतर दर्शन पिरोती इस रचना हेतु बधाई। कौन कल को याद रखता है? इतिहास में रुचि रखने वाले भी विरले ही मिलते हैं। वो दीवाने हैं जो कल को पहले रखते हैं। ।।।
ReplyDeleteइस युग के भी बीतने पर
ReplyDeleteवही गड्ड-मड्ड सा
एक और
इतिहास बन जाएगा
जिसमें ढूंढने पर भी
इस आज की सच्चाई
कभी नहीं मिलेगी .
एक दम सटीक....
इतिहास को अपनी सुविधानुसार तोड़-मरोड़ कर पेश करने की प्रथा तो सदा से ही चलती आयी है, सशक्त रचना
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteइस युग के भी बीतने पर
ReplyDeleteवही गड्ड-मड्ड सा
एक और
इतिहास बन जाएगा
जिसमें ढूंढने पर भी
इस आज की सच्चाई
कभी नहीं मिलेगी .
सही कहा आपने, बहुत सुंदर और सटीक अभिव्यक्ति।
जी अमृता जी, यही है इतिहास की हक़ीक़त। अपनी मर्जी से लिखा गया और आने वाली पीढियों को परोसा गया इतिहास कुछ कथित दूरदर्शी लोगों की। देन है जिनके हाथ में डोर थी इतिहास को मनचाही। दिशा में मोड़ लिया। अनगिन लोगों में कोई ना कोई अतीतानुरागी इतिहास को पढ़कर बहुत कुछ जानना चाहता है और लिखे गए इतिहास को ही सच मान लेता है। सार्थक सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई🙏🙏
ReplyDeleteसमय की कड़वी यादों के साथ इतिहास को बदलना ही होगा।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से आपने इतिहास की कड़वी सच्चाई को आईना दिखा दिया,साथ में इतिहास के उन होनहार लेखकों को भी सबक लेना चाहिए,जो भविष्य के इतिहासकार बनेंगे ।सुंदर यथार्थपूर्ण सृजन ।
ReplyDeleteइस युग के भी बीतने पर
ReplyDeleteवही गड्ड-मड्ड सा
एक और
इतिहास बन जाएगा
इतिहास का मर्म परिभाषित करती सशक्त रचना ।
वाह अमृता जी, आपने अमृत सत्य का उद्घाटन कर दिया है अपनी इस कविता में। बधाई और आभार!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteगहरा कटाक्ष ,समय के चलते इतिहास भी बदल जाता है !!
ReplyDeleteइकलौता हासिल वर्तमान है....काल के विस्तृत वितान पर कितनी बातें अंकित हुई और गायब हुई. चंदेल, गुर्जर प्रतिहार।।तुग़लक़। ये बिंदु मात्र है...उनके युग की प्रजा का जीवन गीत...हमें सुनाई नहीं दे सकता।
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इतिहास का यथार्थ सत्य लिखा है ।
ReplyDeleteशेर पे सवार होके आजा शेरावालिये
ReplyDeleteall bhajan
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