साधो, हम कपूर का ढेला !
कोई पक्का तो कोई कच्चा
कोई असली तो कोई गच्चा
कोई बूढ़ा खोल में भी बच्चा
कोई उत्तम तो कोई हेला !
साधो, हम कपूर का ढेला !
इक चिंगारी भर की दूरी पर
बस नाचे अपनी ही धुरी पर
पर सब हठ मनवाए छूरी पर
हर कोई अपने में अलबेला !
साधो, हम कपूर का ढेला !
एक-एक चाल में धुरफंदी
समझौता से गांठें संधी
जुगनू से लेकर चकचौंधी
दिखाए रंग-बिरंगा खेला !
साधो, हम कपूर का ढेला !
अबूझ-सा सब लालबुझ्क्कड़
अपनी गुदड़ी में ही फक्कड़
उड़े ऐसे जैसे हो धूलधक्कड़
सज्जन बनकर भी रहे धुधेला !
साधो, हम कपूर का ढेला !
फटे बांस में दे सुरीला तान
करता रहे बस ताम-झाम
अपने से ही सब अनजान
खुद ही गुरु खुद ही चेला !
साधो, हम कपूर का ढेला !
कोई शुद्ध तो कोई मिलावटी
कोई घुन्ना तो कोई दिखावटी
कोई ठोस में भी घुलावटी
कोई बली तो कोई गहेला !
साधो, हम कपूर का ढेला !
😄😄😄😄😄 आज तो हर इंसान की ही पोल खोल दी । सब खुद को तुर्रमखां समझते । अब तुर्रमखां कौन थे ये तो पता नहीं लेकिन ये कपूर का ढेला की उपमा ज़बरदस्त लगी । जो भी पढ़ेगा उसे कोई एक बात तो मिल ही जाएगी जो उसमें भी होगी । मस्तम-मस्त लिखा है ।
ReplyDeleteभई वाह गज़ब 👌
ReplyDeleteहर बंध लाज़वाब है प्रिय अमृता जी।
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तन के भीतर मन अतरंगी
धुक-धुक धड़कन धुन सारंगी
टप-टप टपके उमर की हांडी
कोई न समझे क्या ये खेला
साधो, हम कपूर का ढेला !
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सस्नेह।
इतनी विविधता को प्रकृति कैसे सम्हाल रही !! अद्भुत भाव !!
ReplyDeleteवाह!! लाजवाब!! अद्भुत सृजन ।
ReplyDeleteअद्भुद
ReplyDeleteवाह ! वाह ! वाह !
ReplyDeleteकबीरजी की उलटबांसियों की तरह गहन गूढ़ रचना
बहुत ख़ूब, कपूर का ढेला खुद मिट कर प्रकाश देता है और ख़ुशबू भी, इतना भी कोई कर सके तो बात बन ही गयी
ReplyDeleteफक से जल बूझता है झट
ReplyDeleteगुण बहुत पर बड़ा झमेला।
साधो हम कपूरी ढेला।
सजा हुआ आडम्बर मेला
साधो हम कपूरी ढेला।
बहुत सुंदर उपमाएं गज़ब लेखन, अमृताजी मन मोह लिया।
अद्भुद भाव समेटे ये कपूर का ढेला ... निःशब्द करती लेखनी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अमृता जी, उपमाओं का अनोखा अन्दाज़, उत्कृष्ट रचना।
ReplyDeleteकोई असली तो कोई गच्चा
ReplyDeleteकोई बूढ़ा खोल में भी बच्चा
कोई उत्तम तो कोई हेला !
साधो, हम कपूर का ढेला !
वाह!!!
कमाल का सृजन...हम कपूर के ढेले ही हैं बस एक चिंगारी और राख तभी खाक...
बहुत ही लाजवाब।
आदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर रचना, इंसान के विविध स्वभाव को दिखाती हुई । एक मस्त- मौला कविता। मुझे सब से अच्छा तो लगा "साधु हम कपूर का ढेला। हृदय से आभार इस आनंदकर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
ReplyDeleteगज़ब ...
ReplyDeleteव्यंग कहूँ, रचना कहूँ, चोट कहूँ, साहित्य कहूँ ... सब कुछ एक ही लाजवाब रचना में समेत लिया है आपने ... बहुत उत्तम .. कमाल की रचना और रचना के तेवर ...
सबद-सबद है सिसकी पीड़ा।
ReplyDeleteउझक-उझक झाँके कबीरा।।
वाह-वाह। बार-बार पढ़ने लायक। उत्तम सृजन।बहुत ही सुंदर। बहुत-बहुत शुभकामनाएं आपको।
ReplyDeleteबहुत बहुत प्रशंसनीय | बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteबेहतरीन ��
ReplyDeleteइन शब्दों के सृजनकर्ता के लिए बस एक ही शब्द...
ReplyDeleteब्रेन स्कैनर विथ हार्ट एमआरआई मशीन। सर्वांग छवि उतारता हुआ...हैरतअंगेज।