ठक! ठक! ठक!
कृपया गरिमा बनाए रखें!
कृपया मर्यादा बनाए रखें!
अन्यथा सख्त कार्यवाही होगी
हमारे हर एक, झुठफलाँग-उटपटाँग सा
भ्रांतिकारी-क्रांतिकारी, क्रियाकलापों का
हमारे ही, कलह-क्लेशी कुनबे के, कटघरे में
तुरत-फुरत वाली, आँखों देखी, गवाही होगी!
ठक! ठक! ठक!
कृपया गरिमा बनाए रखें!
कृपया मर्यादा बनाए रखें!
अन्यथा सख्त कार्यवाही होगी!
इसलिए हमें मिल-बैठकर, पद की प्रतिष्ठा बचाकर
अपने परिजनों के, बेहतर आज के लिए, कल के लिए
नागरिक, भूगोल और इतिहास फाड़ू फैसला लेना है
और सबको चौंकाऊ-सा, चकाचौंध भरा हौसला देना है
ताकि हम संसार के, माथे पर, उचक कर बैठ सके
फिर चकाचक-झकाझक, फर्राटेदार विकास गति पर
अपनी पीठ थपथपाते हुए, आव-ताव देकर, खूब ऐंठ सके!
इसलिए कृपया कोई भी, जिंदा या मरे मुर्दों को, न उखाड़ें
और बेकार के बहाने से, बहिष्कार की रणनीति पर
न ही अपनी, चिंदी-चिंदी मानसिकता को
हल्के-फुल्के या गंभीर, मुद्दों पर भी, इस तरह से उघाड़ें!
अन्यथा सख्त कार्यवाही होगी
कृपया मर्यादा बनाए रखें!
कृपया गरिमा बनाए रखें!
रूकें! रूकें! रूकें!
बहुत ही, हीं-हीं, ठीं-ठीं, हो रहा है
बहुत ही, खों-खों, खीं-खीं, हो रहा है
ओह! ये किसने? किसको? किस अदा से आँख मारा?
और इतने सारे, कागजों को, किसने है फाड़ा?
ये मेजें-कुर्सियां, ऐसे क्यों उठ रही हैं?
उफ्फ! मेरी आवाज भी, इसमें घुट रही है
कृपया सब, अपनी जगहों पर, संतों की भांति, बैठ जाएँ
कानफाड़ू शोर-शराबा न करें, कोशिश करके ही सही, पर शांति लाएँ!
फिर अपनी, बादाम-अखरोट खायी हुई
याददाश्त को, फिर से, याद दिलाए कि
हम कुनबा चलाने वाले हैं, या उसको डूबाने वाले हैं
इस तरह से, आलतु-फालतू मुद्दों पर, जब आप सब
एक साथ ही, उलट कर, सड़क पर, ऐसे उतर जाएंगे
तो बताइए, सड़क पर रहने वाले, भला कहाँ जाएंगे?
तब, उनके लिए ही वर्षों से, अटकी-लटकी हुई सैकड़ों-हजारों
झोलझाली योजनाओं को, हम लोग, कैसे लागू करायेंगे?
यदि ईमानदारी से, आप सबों को, याद आ जाए
कि आखिर परिजनों ने, हमें किसलिए चुना है?
तो आइए, विकास की चाल को, सब मिलकर
जोर से, धक्का लगा-लगा कर, आगे बढ़ायें
बिना बात के ही, विरोध में, इस तरह से, काम रोक कर
कृपया परिजनों के, समय और संसाधनों को
इतनी निर्लज्जता से, राजनीति के गटर में, न डूबायें!
अन्यथा सख्त कार्यवाही होगी
कृपया मर्यादा बनाए रखें!
कृपया गरिमा बनाए रखें!
अरे! अरे! अरे!
अचानक से, ये क्या हो रहा है?
क्यों सबका, खोया हुआ आपा भी, खो रहा है?
इस तरह से, जुबानी जंग में, जुमलों का चप्पल-जूता
बिना सोचे-समझे, एक-दूसरे पर, यूँ ना उछालें
और अपने पैने-नुकीले, सवालो-जवाबों से
न ही ऐसे छिलें, एक-दूसरे की, नरम-मुलायम छालें!
हो सके तो, अपने-अपने हाथों-पैरों को
हाथ जोड़ कर, या प्यार-मोहब्बत से, जरा समझाएँ
कि बात-बेबात ही, भड़क कर कहीं, इधर-उधर न भिड़ जाए
फिर आपस में, इसतरह से, गुत्थम-गुत्थी कर के
आप सब मिलकर, इसे ओलंपिक जैसा विश्व स्तरीय
कुश्ती प्रतियोगिता का, चलता हुआ, अखाड़ा न बनाएँ
कृपया संयम बरतें, और मेरे आसन के सामने, ऐसे उछाल मारकर
यूँ दहाड़ते हुए, तख़्त विरोधी तख़्तियां, दिन-दिहाड़े न दिखाएँ!
आपसे हार्दिक अनुरोध है कि, अपने आसनों पर ही
बाकी सब लोग, विराजमानी जमाते हुए, मेजों को भी
अपने कोमल हथेलियों का, कुछ ज्यादा ख्याल रखते हुए
ढ़ोलक जान, जोर-शोर से, इतना ज्यादा न थपथपायें
न ही थोथेबाजी में, फिजुल का, नारेबाजी करते हुए
चलते सत्र को, बीच में ही छोड़कर, सब बाहर निकल जाएँ!
अन्यथा सख्त कार्यवाही होगी
कृपया मर्यादा बनाए रखें!
कृपया गरिमा बनाए रखें!
सुनें! सुनें! सुनें!
हमारे कुनबे से, बाहर के लोग सुनें!
आपके लिए है, करजोरी-बलजोरी, क्षमा याचना के साथ
एक अत्यन्त आवश्यक, सूचना एवं वैधानिक चेतावनी
कि हम अपने कुनबे में, एक ही चट्टे-बट्टे के, सब लोग
चाहे कितना भी, और कैसा भी, करते रहें मनमानी
पर कृपया दूर-दूर तक, कोई भी चरित्र अथवा पात्र
आगे बढ़कर इसे, बिल्कुल अन्यथा न लें
और इस कुपितरोगी-भुक्तभोगी, दृश्यकाव्य के
किसी भी, हिस्से से चुराकर, कोई भी कथा न लें!
कारण, इसका प्रत्यक्ष और प्रामाणिक संबंध
केवल और केवल, हमारे निहायत निजी, कुनबे से है
क्योंकि संसार के, बड़े-बड़े अलोकतांत्रिक देश, की तरह ही
हम अपने, छोटे-से कुनबे में भी, नियम-कानून बनाने के लिए
कुछ ऐसे ही, चिल्ल-पों कर-करके, शासन चलाते हैं
और काम-काज के बीच में ही, हुड़दंग मचा-मचाकर
ऐसे ही, कुढ़गा कुक्कुटासन, लगाते हैं!
इसलिए इसका, मुँह और दिल खोलकर
केवल और केवल, कृपया आनन्द उठाएँ
और गलती से भी, किसी दूसरे से, हमें जोड़कर
अथवा अन्यथा लेकर, हमारी जगहँसाई, न करवाएँ!
अन्यथा सख्त कार्यवाही होगी
कृपया मर्यादा बनाए रखें!
कृपया गरिमा बनाए रखें!
एक अलग अन्दाज।
ReplyDeleteआज तो संसद को सांसत में डाल दिया । जहाँ न गरिमा है न मर्यादा ।और न ही हो सकती सख्त कार्यवाही । आखिर जनता का प्रतिनिधित्त्व कर रहे हैं ।
ReplyDeleteज़बरदस्त व्यंग्य ।
( जहाँ विषय लिखे हैं -- नागरिक * कर लें । टाइपिंग की गलती है । )
प्रतिनिधित्व * पढ़ें
Deleteकुर्सी मिलते ही अपनी सारी प्रतिज्ञाओं को भूल जाते हैं परंतु जब वोट माँगने आते हैं तब शालीनता की मूरत बन जाते हैं। जब इनको संसद में जूतमपैजार और हाथापाई, भद्दे इशारों से लेकर नुकीले व्यंग्यबाणों का प्रयोग करते देखती हूँ तब मुझे इन पर नहीं खुद पर शर्म आती है और लगता है कि एक भारतीय होने के नाते मुझे चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।
ReplyDeleteआपका यह सटीक तीव्र धारदार व्यंग्य ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचे यही आकांक्षा है।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०९-०८-२०२१) को
"कृष्ण सँवारो काज" (चर्चा अंक-४१५१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
कृपया बुधवार को सोमवार पढ़े।
Deleteसादर
वाह ! रोचक रचना अमृता जी !!!!!!!!😀😀
Deleteअध्यक्ष महोदय की सब प्रार्थनाएं , सारे निवेदन पानी में बह गये | सुने सुने , सुनें सुनें -- का शोर अनर्गल साबित गा !! सत्तासुख के मद में चूर कान, कोई ऐसी बात कैसे सुनें जो उनके असीम आनंद में खलल डालें ! आपा कहाँ खोया -- ये तो खुद को कुछ विशेष दिखाने की कवायद है भाई - ! जूता- चप्पल का चलना -- चलाना तो फैशन है भाई जी !कुश्ती का बड़ा अरमान था जी -- राजनीति के अखाड़े में पहुँच कर ये साध पूरी हुई !इस दृश्यकाव्य में आनंद नहीं महा आनंद है जी ! और लोग अन्यथा ले भी लेंगे तो हमारा क्या कर लेगें ! पांच वर्ष के लिए अपनी कुर्सी सुरक्षित है जी | गरिमा बनी हुई है और नए =नए कानून बनाने की कोशिशें भी 😀😀
कुढ़गा कुक्कुटासनकुपितरोगी-भुक्तभोगी, जैसे शब्द भी जाने 👌👌🙏🙏😀😀
राजनीतिक उठापटक पर खूब कलम चलाई है आपने, बधाई इस धुआंधार लेखन के लिए, लोकतंत्र में हरेक को अपनी बात कहने का हक है, अब कोई सुने या न सुने इसका उसको भी हक है
ReplyDeleteसर्वकालिक, सामयिक, सुन्दर व्यंग्य-रचना!
ReplyDeleteजबरदस्त व्यंग्य के अंदाज हैं आपके, सटीक !!! आंखों के सामने एक गरिमामय देश के गरिमामय संसद का गरिमामय प्रलाप ।
ReplyDeleteअप्रतिम अभिव्यक्ति।
संसद के क्रियाकलापों का सजीव शब्द चित्र । लाजवाब व्यंगात्मक सृजन ।
ReplyDeleteगहरा व्यंग ...
ReplyDeleteपतन कैसे हो रहा है ... हम कहाँ जा रहे हैं इसको बाखूबी कटाक्ष किया है ... ऐसा आचरण देख के शर्म और शर्म ही आती है बस ...
शानदार हास्य-व्यंग्य रचना। संसद में आजकल जो हो रहा है उस पर शानदार व्यंग्य लिखा है।
ReplyDeleteवाह ,व्यंग्य मिश्रित आनंद की अनुभूति करती रचना।
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