अबकी सावन भी
सीझ-सीझ कर बीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता
बैरी बालम को
अब वो कैसे रिझाए
किस विधि अपने
बिधना को समझाए
अपने बिगड़े बिछुरंता से
ब्यथित बिछिप्त हो हारी
बिख से बिंध-बिंध कर
मुआ बिछुड़न बिछनाग जीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता
दिन तो यौवन का
याचनक राग गवाए
नित सूनी सर्पिनी सेज पर
रो-रो प्रीतरोगिनी रजनी बिताए
अँसुवन संग आस
बिरझ-बिरझ कर रीता
ओह ! मिलन मास में भी
मुरझ-मुरझ मुरझाए मधुमीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता
धधक-धधक कर
ध्वंसी धड़कन धमकावे
धमनियों में रक्त
धम गजर कर थम-थम जावे
न जाने न आवे किस कारन
तन मन प्राण पिरीता
आखिर क्यों बैरी बालम हुआ
बिन बात के ही विपरीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता
अंग-अंग को
लख-लख काँटा लहकावे
लहर-लहर कर
प्रीतज्वर ज्वारभाटा बन जावे
रह-रह मुख पर हिमजल मारे
तब भी होवे हर पल अनचीता
धत् ! अभंगा दुख अब सहा न जाए
कब तक ऐसे ही कुंवारी रहे परिनीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता
फुसक-फुसक कर
चुगलखोर भादो भड़कावे
ठुसक-ठुसक कर
बाबला मन धसमसकाए
कासे कहे कि
अरिझ-अरिझ हर धमक बितीता
हाय रे ! सब तीते पर
झींझ-झींझ हिय रह गया अतीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता
अबकी सावन भी
सीझ-सीझ कर बीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता .
ज़बरदस्त विरह लिखा है । प्रेम में नायिका क्या क्या अनुभव कर सकती है उसका विस्तृत वर्णन सहज रूप में किया है । बहुत भावपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-08-2021को चर्चा – 4,168 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 26 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
वाह!बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसच इस बार का सावन ऐसे ही सीझ-सीझ कर बीता है।
इंतजार में बैठे रहे।
सादर
बहुत सुन्दर श्रृंगार और विरह का सुंदर चित्रण , सावन होता है मन भावन तो आग भी लगती है, राधे राधे।
ReplyDeleteखीझ-खीझ
ReplyDeleteरह गई रतिप्रीता
अनेकानेक कारण जीता
बहुत सुन्दर रचना
अद्भुत शब्द विन्यास!
ReplyDeleteविप्रलंभ श्रृंगार रस पर आधारित अद्भुत कृति ।
ReplyDelete
ReplyDeleteफुसक-फुसक कर
चुगलखोर भादो भड़कावे
ठुसक-ठुसक कर
बाबला मन धसमसकाए
कासे कहे कि
अरिझ-अरिझ हर धमक बितीता
हाय रे ! सब तीते पर
झींझ-झींझ हिय रह गया अतीता
खीझ-खीझ
रह गई रतिप्रीता....उत्कृष्ट रचना प्रेम और विरह का सुंदर अन्वेषण किया है आपने। बहुत बधाई अमृता जी ।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबदरा ले जा नीर हमारे ,
ReplyDeleteजा के बरस साजन के द्वारे ,सुंदर विरह लिखा है अमृता जी !!
वाह बहुत सुन्दर |
ReplyDeleteकासे कहे कि
ReplyDeleteअरिझ-अरिझ हर धमक बितीता....