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Wednesday, August 25, 2021

खीझ-खीझ रह गई रतिप्रीता ............

अबकी सावन भी 

सीझ-सीझ कर बीता

खीझ-खीझ 

रह गई रतिप्रीता


बैरी बालम को 

अब वो कैसे रिझाए

किस विधि अपने 

बिधना को समझाए

अपने बिगड़े बिछुरंता से

ब्यथित बिछिप्त हो हारी

बिख से बिंध-बिंध कर

मुआ बिछुड़न बिछनाग जीता

खीझ-खीझ 

रह गई रतिप्रीता


दिन तो यौवन का

याचनक राग गवाए

नित सूनी सर्पिनी सेज पर 

रो-रो प्रीतरोगिनी रजनी बिताए

अँसुवन संग आस 

बिरझ-बिरझ कर रीता

ओह ! मिलन मास में भी

मुरझ-मुरझ मुरझाए मधुमीता

खीझ-खीझ 

रह गई रतिप्रीता


धधक-धधक कर

ध्वंसी धड़कन धमकावे

धमनियों में रक्त

धम गजर कर थम-थम जावे

न जाने न आवे किस कारन

तन मन प्राण पिरीता

आखिर क्यों बैरी बालम हुआ 

बिन बात के ही विपरीता

खीझ-खीझ

रह गई रतिप्रीता


अंग-अंग को

लख-लख काँटा लहकावे

लहर-लहर कर 

प्रीतज्वर ज्वारभाटा बन जावे

रह-रह मुख पर हिमजल मारे

तब भी होवे हर पल अनचीता

धत् ! अभंगा दुख अब सहा न जाए

कब तक ऐसे ही कुंवारी रहे परिनीता

खीझ-खीझ 

रह गई रतिप्रीता


फुसक-फुसक कर

चुगलखोर भादो भड़कावे

ठुसक-ठुसक कर

बाबला मन धसमसकाए

कासे कहे कि

अरिझ-अरिझ हर धमक बितीता

हाय रे ! सब तीते पर

झींझ-झींझ हिय रह गया अतीता

खीझ-खीझ

रह गई रतिप्रीता


अबकी सावन भी 

सीझ-सीझ कर बीता

खीझ-खीझ

रह गई रतिप्रीता .

13 comments:

  1. ज़बरदस्त विरह लिखा है । प्रेम में नायिका क्या क्या अनुभव कर सकती है उसका विस्तृत वर्णन सहज रूप में किया है । बहुत भावपूर्ण रचना ।

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-08-2021को चर्चा – 4,168 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 26 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. वाह!बहुत सुंदर सृजन।
    सच इस बार का सावन ऐसे ही सीझ-सीझ कर बीता है।
    इंतजार में बैठे रहे।
    सादर

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  5. बहुत सुन्दर श्रृंगार और विरह का सुंदर चित्रण , सावन होता है मन भावन तो आग भी लगती है, राधे राधे।

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  6. खीझ-खीझ
    रह गई रतिप्रीता

    अनेकानेक कारण जीता

    बहुत सुन्दर रचना

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  7. अद्भुत शब्द विन्यास!

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  8. विप्रलंभ श्रृंगार रस पर आधारित अद्भुत कृति ।

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  9. फुसक-फुसक कर

    चुगलखोर भादो भड़कावे

    ठुसक-ठुसक कर

    बाबला मन धसमसकाए

    कासे कहे कि

    अरिझ-अरिझ हर धमक बितीता

    हाय रे ! सब तीते पर

    झींझ-झींझ हिय रह गया अतीता

    खीझ-खीझ

    रह गई रतिप्रीता....उत्कृष्ट रचना प्रेम और विरह का सुंदर अन्वेषण किया है आपने। बहुत बधाई अमृता जी ।

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. बदरा ले जा नीर हमारे ,
    जा के बरस साजन के द्वारे ,सुंदर विरह लिखा है अमृता जी !!

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  12. कासे कहे कि

    अरिझ-अरिझ हर धमक बितीता....

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