सँझाबाती के लिए
गोधुलि बेला में
जब गृह लक्ष्मियाँ
दीप बारतीं हैं
कर्पूर जलातीं हैं
अगरू महकातीं हैं
अपने इष्ट को
मनवांछित
भोग लगातीं हैं
और आचमन करवातीं हैं
तब टुन-टुन घंटियाँ बजा कर
इष्ट के साथ सबके लिए
सुख-समृद्धि को बुलातीं हैं
ये गृह लक्ष्मियाँ
प्रेम की प्रतिमूर्तियाँ
छुन-छुन घुंघरियाँ बजाते हुए
खन-खन चूड़ियाँ खनका कर
सिर पर आँचल ऐसे सँभालतीं हैं
जैसे केवल वही सृष्टि की निर्वाहिका हों
और अहोभाव से झुक-झुक कर
प्रेम प्रज्वलित करके
घर के कोने-कोने को छूतीं हुई
अपने अलौकिक उजाले से
आँगन से देहरी तक को
आलोकित कर देतीं हैं
जिसे देखकर सँझा भी
अपने इस पवित्रतम
व सुन्दर स्वागत पर
वारी-वारी जाती है
तब गृह लक्ष्मियाँ
हमारी सुधर्मियाँ
तुलसी चौरा का
भावातीत भाव से
परिक्रमा करते हुए
दसों दिशाओं में ऐसे घुम जातीं हैं
जैसे जगत उनके ही घेरे में हो
और सबके कल्याण के लिए
मन-ही-मन मंतर बुदबुदा कर
ओंठों को अनायास ही
मध्यम-मध्यम फड़का कर
कण-कण को अभिमंत्रित करते हुए
बारंबार शीश नवातीं हैं
फिर दोनों करों को जोड़ कर
सबके जाने-अनजाने भूलों के लिए
सहजता से कान पकड़-पकड़ कर
सामूहिक क्षमा प्रार्थना करते हुए
संपूर्ण अस्तित्व से समर्पित हो जातीं हैं
हमारी गृह लक्ष्मियाँ
दया की दिव्यधर्मियाँ
करूणा की ऊर्मियाँ
सदैव सुकर्मियाँ
सिद्धलक्ष्मियाँ
नित सँझा को
पहले आँचल भर-भरकर
फिर उसे श्रद्धा से उलीच-उलीच कर
मानो धरा को ही चिर आयु का
आशीष देती रहतीं हैं .
सचमुच अद्भुत होती हैं स्त्रियाँ...,
ReplyDeleteभोर की पहली किरण से शाम ढले अगस्त का तारा डूबने के बाद तक स्त्रियाँ अपने स्पर्श से जिलाये रखती है सृष्टि में प्रेम,करूणा और आँचल के छोर से सँभाल कर रखती ईश्वर का अस्तित्व।
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति प्रिय अमृता जी।
गृहिणियों का मंत्रमुग्ध करता शब्दचित्र । आपकी रचना को पढ़
ReplyDeleteकर माँ साकार हो गई नजरों के समक्ष ।
कितना सुंदर और मनोरम शब्द चित्र खींचा है । तुलसी चौरे के चारों ओर घूमते हुए मानो दसों दिशाओं की परिक्रमा कर लेती हैं । सच्ची अद्भुत रस से सराबोर कर दिया ।
ReplyDeleteवाह सुन्दर और सटीक
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 22 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह ! अद्भुत भाव और मनोहारी चित्रण, गृहलक्ष्मियों के प्रति मन प्रेम और श्रद्धा से झुक ही जायेगा जो भी इसे पढ़ेगा, सारे अस्तित्त्व को अपने आँचल में समेटने की यह भारतीय परंपरा ही युगों-युगों से विश्व में परमात्मा की अजस्र शक्ति को प्रवाहित कर रही है, आपकी लेखनी को नमन !
ReplyDeleteगृहलक्ष्मियां सच में महान होती हैं। सुंदर रचना। आजकल ऐसी रचनाएं बहुत कम पढने को मिलती हैं।
ReplyDeletehttps://hindisuccess.com
बहुत ही सुन्दर रचना, आँखों के सामने सांध्य प्रदीप, तुलसी तले जैसे मद्धम रौशनी बिखेरता हुआ सा अंतर्मन को आलोकित कर जाए।
ReplyDeleteसमर्पण के अद्भुत भाव | बहुत सुंदर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteआपकी लिखी कोई पुरानी रचना सोमवार 23 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
सारे विशेषण सटीक बैठते हैं। सुन्दर कविता।
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता।आपको बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं
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ReplyDeleteसच ऐसी ही तो होती हैं गृह लक्ष्मियाँ।
भावों से सराबोर लाज़वाब सृजन।
वाह!
ये गृहलक्ष्मियाँ संसार होती हैं ... आशा का संचार होती हैं ... सबका प्यार, दुपार होती हैं ... जिंदगी इन्ही से होती हैं, ये ज़िन्फागी होती हैं ... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteमन मोह लिया!
ReplyDeleteअद्भुत बस अद्भुत!!
इतना सजीव चित्रण जैसे एक एक प्रक्रिया करते हुए मन के पवित्रतम भावों को समसी में ढाला हो आपने।
बहुत सुंदर सुंदरतम सृजन।
सच ऐसा ही लगता है कि मन्नत के धागों में संसार को सहेज रखा है इन सुकुमार गृहणियों ने।
अभिनव सृजन।
मन आह्लादित कर गई आपकी सुंदर रचना,हर स्त्री को कुछ न कुछ सौगात दे गई । नायाब कृति ऊर्जा भरती हुई ।
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