अहा! चहुँओर आज तो मंगल गान हो रहा है
बची हुई नाक का देखो ना यशोगान हो रहा है
सदियों से एक सिरे से उन सारी उपेक्षितों का भी
इतना ज्यादा अनपेक्षित मान-सम्मान हो रहा है
भूरि-भूरि प्रशंसाओं के हैं काले-सफेद बोल
सब खजाना भी लुटा रहे हैं हृदय को खोल
हर चेहरे पर ओढ़ी हुई है लंबी-चौड़ी मुस्कानें
हर कोई जीते पदकों से खुश होकर रहा है डोल
पर आज उन कोखों की भी कुछ बात की जाए
जिनपर दबाव होता है कि वे बेटी को ही गिराये
कोई समाज के सारे पाखंडी परंपराओं को तोड़
उन भ्रूण बेटियों के लिए भी सुरक्षित घर बनाये
क्यों बेटों के लिए बेटियों को कुचला जाता है ?
कोई क्यों बेटियों का ही भ्रूण हत्या करवाता है ?
घरेलू हिंसा की पीड़िता सबसे है पूछना चाहती
क्या इस तरह ही समाज गौरवशाली बन पाता है ?
यदि सारी बेटियाँ अपने ही घर में बच जाएँगी
तो वे विरोध से नहीं बल्कि प्रेम से बढ़ पाएँगी
तब तो दो-चार ही क्यों अनगिनत पदकों का भी
अंबार लगाकर ढ़ेरों नया-नया इतिहास बनाएँगी .
*** बेटी खेलाओ पदक जिताओ ***
बेटियों की प्रेरक उपलब्धियों से ज्यादा
ReplyDeleteउपेक्षित बेटियों का दर्द ,अनकही दास्तान नित आत्मा झकझोरती है।
नभ,अंतरिक्ष,धरा,नीर के कण-कण में पाँव छपछपाती कहानियोंं से ज्यादा अस्तित्वहीन बेटी की कुहक हृदय मरोड़ती है।
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प्रिय अमृता जी
बेहद प्रभावशाली रचना।
गर्भ में ही मार डाली गयीं भ्रूण बेटियों का दर्द हम बेटियाँ महसूस कर सकती है,और.बदलाव के इस दौर में इन हत्याओं का विरुद्ध काली दुर्गा भी बन सकती है।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर। भ्रूण सही कर लें।
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत सृजन
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०५-०८-२०२१) को
'बेटियों के लिए..'(चर्चा अंक- ४१४७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
समय बदल गया है स्त्री के लिए फिर भी दुर्भाग्यपूर्ण है की आज भी कुछ बेटियां त्रासदी झेलती हैं |प्रभावशाली रचना |
ReplyDeleteसच में, समाज कितना स्वार्थी और दोहरे मापदंडों से भरा है -- बेटियों के लिए | बेटियों के लिए कामयाबी की राह कभी आसान नहीं रही |भ्रूण ह्त्या के रूप में समाज ने नाजाने कितनी होनहार बेटियों को अपनी हे संकीर्ण सोच के चलते गँवा दिया | अब नाक बचाने बेटियां आयीं तो समा बदल गया | |समाज को उसकी ही दोहरी सोच के लिए आईना दिखाती रचना| बधाई अमृता जी |
ReplyDeleteयदि सारी बेटियाँ अपने ही घर में बच जाएँगी
ReplyDeleteतो वे विरोध से नहीं बल्कि प्रेम से बढ़ पाएँगी
तब तो दो-चार ही क्यों अनगिनत पदकों का भी
अंबार लगाकर ढ़ेरों नया-नया इतिहास बनाएँगी
वाह !! बहुत खूब !!
उत्साहित हो गया मन इन पंक्तियों को पढ़ कर । उचित परवरिश हो और उड़ान के लिए खुला आसमान..तो क्या नहीं कर सकती बेटियाँ।
यदि सारी बेटियाँ अपने ही घर में बच जाएँगी
ReplyDeleteतो वे विरोध से नहीं बल्कि प्रेम से बढ़ पाएँगी
बहुत सही लिखा आपने अमृता तन्मय जी...
बहुत सुंदर कविता 🌹🙏🌹
आपने ठीक कहा। सारी बात कामयाबी पर ही आकर टिक जाती है। यह मंगल-गान बेटियों का नहीं, उस कामयाबी का हो रहा है जो उन्हें मिली है। बेटियों की सुरक्षा, उचित पोषण एवं सम्मान हेतु सफलता की शर्त क्यों? और सफलता उन्हीं बेटियों को मिल पाती है जिन्हें पहले यह सब (साथ ही स्वतंत्रता भी) दिया जाए।
ReplyDeleteयदि सारी बेटियाँ अपने ही घर में बच जाएँगी
ReplyDeleteतो वे विरोध से नहीं बल्कि प्रेम से बढ़ पाएँगी
तब तो दो-चार ही क्यों अनगिनत पदकों का भी
अंबार लगाकर ढ़ेरों नया-नया इतिहास बनाएँगी .
बिल्कुल सही कहा अमृता दी।
क्या इस तरह ही समाज गौरवशाली बन पाता है ? आपका सवाल सौ फीसदी सही है...यह सवाल सभी नीतिनियंताओं को खामोश कर देता है, बहुत अच्छी और गहरी रचना।
ReplyDeleteवाह ! सही कहा है आपने, बेटियों ने देश को गौरव दिलाया है, अब समाज की जिम्मेदारी है उन्हें बेख़ौफ़ होकर जीने का अवसर दे
ReplyDeleteयदि सारी बेटियाँ अपने ही घर में बच जाएँगी
ReplyDeleteतो वे विरोध से नहीं बल्कि प्रेम से बढ़ पाएँगी
तब तो दो-चार ही क्यों अनगिनत पदकों का भी
अंबार लगाकर ढ़ेरों नया-नया इतिहास बनाएँगी .
काश अभी भी लोगों की आँखें खुलें । बेटियों को पूरा मान सम्मान मिले
, विचारणीय रचना ।
बहुत सुन्दर लेख
ReplyDeleteसच कहा आपने,पर बेटियों के लिए आज का समाज भी उतना कहाँ सोच रहा है,बस दिखावा चल रहा है, कुछ प्रतिशत को छोड़कर । आगे हर स्तर पर सोच जाय, बस यही कामना है।
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