पहले प्यास हुए
अब तृप्ति की आवृत्ति हो तुम
मेरी प्रकृति की पुनरावृत्ति हो तुम
पहले उद्वेग हुए
अब आसक्ति के आवेग हो तुम
मेरी अभिसक्ति के प्रत्यावेग हो तुम
पहले आकर्ष हुए
अब भक्ति के अनुकर्ष हो तुम
मेरी आकृति के उत्कर्ष हो तुम
पहले श्रमसाध्य हुए
अब आप्ति के साध्य हो तुम
मेरी प्रवृत्ति के अराध्य हो तुम
पहले साकार हुए
अब अनुरक्ति के आकार हो तुम
मेरी अतिश्योक्ति के अत्याकार हो तुम
पहले अलंकार हुए
अब अभिव्यक्ति के शब्दालंकार हो तुम
मेरी गर्वोक्ति के अर्थालंकार हो तुम
पहले भ्रम हुए
अब जुक्ति के उद्भ्रम हो तुम
मेरी मुक्ति के गुरुक्रम हो तुम .
*** गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ ***
*** हार्दिक आभार समस्त गुणी जनों को ***
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ReplyDeleteपहले अलंकार हुए
ReplyDeleteअब अभिव्यक्ति के शब्दालंकार हो तुम
मेरी गर्वोक्ति के अर्थालंकार हो तुम//
सचमुच अदभुत!!!! किसी ने क्या दिया उसे कैसे परिभाषित किया जाए! पर अनुभूतियां अपने शब्द, अपना मार्ग खुद ढूंढ लेती हैं। कृतज्ञता का अनुपम अंदाज़ g! निशब्द हूं। सराहना हो भी तो किन शब्दों में!!
समस्त गुरू सत्ता को सादर नमन🙏💐💐💐💐
पहले प्यास हुए
ReplyDeleteअब तृप्ति की आवृत्ति हो तुम
मेरी प्रकृति की पुनरावृत्ति हो तुम......वाह!अद्भुत शब्द संयोजन!!!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 25 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह... अत्यंत प्रभावशाली सृजन।
ReplyDeleteआपके समृद्ध शब्दकोश और वैचारिकी युति का संयोजन अचंभित करता है।
सस्नेह
सादर।
वाह लाजवाब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगुरु पूर्णिमा पर हार्दिक शुभकामनायें,गुरु के प्रति श्रद्धा को व्यक्त करने हेतु अत्यंत परिष्कृत शब्दावली का प्रयोग करती हुई श्रेष्ठ रचना !
ReplyDeleteसचमुच अद्भुत रस
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२५-०७-२०२१) को
'सुनहरी धूप का टुकड़ा.'(चर्चा अंक-४१३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मन के शब्दकोश में संग्रहित शब्दों की तूलिका और श्रद्धाभाव से पनपी भावनाओं के बहुआयामी रंगों से सजी अतुल्य साहित्य-शिल्प की एक मनमोहक बानगी .. शायद ...
ReplyDeleteसुन्दर आदरणीय भाव..
ReplyDeleteपहले अलंकार हुए
ReplyDeleteअब अभिव्यक्ति के शब्दालंकार हो तुम
मेरी गर्वोक्ति के अर्थालंकार हो तुम
बेहतरीन व लाजवाब सृजन ।
सुन्दर शब्द संयोजन, सुन्दर भाव, सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteसार्थक सामयिक रचना
ReplyDeleteपहले अलंकार हुए
ReplyDeleteअब अभिव्यक्ति के शब्दालंकार हो तुम
मेरी गर्वोक्ति के अर्थालंकार हो तुम ।
हर बन्द नई परिभाषा देता हुआ। क्या गज़ब लिखा आपने ।
अनुपम शब्द संयोजन । आनंद आया पढ़ कर ।
बहुत हो प्रभावशाली रचना, हर बंद ने एक नई जिज्ञासा पैदा की , हिंदी को समृद्ध करती रचना।
ReplyDeleteअद्भुत शिल्प । बेहद गूढ़ रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteपहले प्यास हुए
ReplyDeleteअब तृप्ति की आवृत्ति हो तुम
मेरी प्रकृति की पुनरावृत्ति हो तुम--- बहुत सुन्दर रचना |