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Wednesday, July 28, 2021

रूठी रहूंगी सावन से ......

तुम्हारे आने तक 
रूठी रहूंगी सावन से

हिय रुत मनभावन से
बूंदों के सरस अमिरस गावन से
अगत्ती अगन लगाने वाला 
छिन-छिन काया कटावन से
नव यौवनक उठावन से
कनि-कनि कनेरिया उमगावन से
ऐसे में मुझ परकटी को छोड़ कर
पीड़क परदेशी तेरे जावन से
तुम्हारे आने तक
रूठी रहूंगी सावन से

घिर-घिर आएंगी कारी बदरिया
बन कर तेरी बहुरूपिनी खबरिया
कभी गरज कर, कभी अरज कर
कभी चमका कर बिजई बिजुरिया
बरस-बरस कर मुझे मनावेंगी
पर मुझपर न चलेगा
कोई भी तेरा जोर जबरिया
न मानूंगी किसी भी लुभावन से
तुम्हारे आने तक
रूठी रहूंगी सावन से

ढोल, मंजीरों पर थाप पड़ेंगी
मृदंग संग झांझे झमकेंगी
घुंघरू पायल की रुनझुन में
सब सखियन संग झूलुआ झूलेंगी
सबके हाथों सजन के लिए मेंहदी रचेंगी
और हरी-भरी चूड़ियां खन-खन खनकेंगी
पर मुझ बिरहिन, बैरागिन को
बिरती है सब सिंगार सजावन से
तुम्हारे आने तक
रूठी रहूंगी सावन से

कली-कली चहक कर चिढ़ाती
अकड़ कर डाली-डाली अँगड़ाती
फूल-फूल कंटक-सा चुभता
क्यारी-क्यारी यों कुबानी सुनाती
जलहीन मीन सी अँखियां अँसुवाती
और उर अंतर चिंता ज्वाल से धुँधुवाती
हाय! बड़ा बेधक है ये बिलगना
पर क्या हो अब पछतावन से
तुम्हारे आने तक
रूठी रहूंगी सावन से

पंथ है बड़ा कठिन ज्यों जानती
परदेशी तुमको बस पाहुन ही मानती
हर रुत परझर सा है लगता
तुम्हें हिरदेशी बना मैं ऐसे न कानती
और तेरी जोगनिया बन हठजोग न ठानती 
तब अंधराग तज सावन का संदेसा पहचानती
तन-मन से हरियाती, झुमरी-कजरी गाती
बस एक तेरे आवन से
तुम्हारे आने तक
रूठी रहूंगी सावन से

तुम्हारे आने तक
रूठी रहूंगी सावन से .

***सुस्वागतम्***

24 comments:

  1. बहुत सुंदर भावों का अनूठा,उत्कृष्ट सृजन,सावन तो खुद ही झूम जाएगा इस रचना का रसास्वादन कर,मन को भिगाती,रसमय बनाती इस रचना के लिए बहुत बधाई अमृता जी।

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  2. शब्द चयन की हिन्दीनिष्ठता मन मोह रही है। कोमल भावों की सुंदर अभिव्यक्ति।

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  3. अहा अतिसुन्दर ...

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  4. सोच कर थोड़े ही मन लगाया जाता है कि जानती विरह पीड़ा क्या होती है तो हिरदेश न बनाती । सावन का सुंदर चित्रण और विरहणी का इन सबसे विमुख होना । बहुत खूबसूरती से समेटा है ।
    बहुत सुंदर रचना ।

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  5. आहा विरहिणी का सावन अँखियाँ भिगवान
    सुंदर शब्द चित्र पढ़कर कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी-

    -----
    पिया-पिया बोले/हिय बेकल हो डोले
    मन पपीहरा/तुमको बुलाये बार -बार
    भीगे पवन झकोरे/छू-छू कर मुस्काये
    बिन तेरे मौसम का/चढ़ता नहीं खुमार
    सीले मन आँगन में/सूखे नयना
    टाँक दी पलकें दरवाजे पर
    है तेरा इंतज़ार/
    बाबरे मन की /ठंडी साँसें
    सुलगे गीली लकड़ी/धुँआ-धुँआ जले करेजा
    कैसे आये करार।

    सस्नेह।

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  6. गीत अत्यंत भावपूर्ण बन पड़ा है। एक-एक पंक्ति हृदय में हूक उठा देने वाली है। अभिनंदन आपका इस अतिशय सुंदर एवं मर्मस्पर्शी रचना के लिए।

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  7. बड़ी सुंदर सी सावन पर उत्कृष्ट शब्दों से सजी हर पंक्ति।

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  8. तुम्हारे आने तक
    रूठी रहूंगी सावन से....
    आपकी उच्च कोटि की लेखनी से निकली इस रचना ने वाकई मन मोह लिया। इतनी खूबसूरती से भावों को पिरोया है आपने कि बस मन बाहर निकल ही नहीं पा रहा। आप ही कोई युक्ति बताएं ....
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया अमृता तन्मय जी।

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  9. वह आया ही हुआ है पर दिल रूठने के सुख में डूबा है, कोई मनाए इस ख़्याल में खोया है, तभी उपजती है ऐसी मोहक रचनाएँ!

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  10. अब इतना कुछ लिख दिया ... इतनी तारीफ़ कर दी मौसम की तो मौसम कहाँ आपको रुठाये रखेगा ... आपके मन का पूरा कर के रहेगा ... बहुत सुन्दर बिम्ब संयोजन ...

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  11. मने धुंधुवाना पढ़कर मज़ा आ गया। आंचलिक शब्दों का आप गज़ब प्रयोग करती हो।

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  12. तुम्हारे आने तक
    रूठी रहूंगी सावन से---वाह अनुपम सृजन।

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  13. ये व‍िरह‍िणी का श्रृंगार रस---वाह , क्‍या खूब ल‍िखा है अम्ता जी, कोई भी तेरा जोर जबरिया
    न मानूंगी किसी भी लुभावन से
    तुम्हारे आने तक
    रूठी रहूंगी सावन से। वाह

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  14. घिर-घिर आएंगी कारी बदरिया
    बन कर तेरी बहुरूपिनी खबरिया
    कभी गरज कर, कभी अरज कर
    कभी चमका कर बिजई बिजुरिया
    बरस-बरस कर मुझे मनावेंगी
    पर मुझपर न चलेगा
    कोई भी तेरा जोर जबरिया
    न मानूंगी किसी भी लुभावन से
    तुम्हारे आने तक
    रूठी रहूंगी सावन से
    बेहद खूबसूरत रचना।

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  15. वाह अद्भुत।
    सारे प्रतीक और बिंब जैसे स्नेह का उल्हाना बन कर रह गागर भर रहे हैं।
    सुंदर वियोग श्रृंगार, सुंदर प्रयोग,लक्षणा की दक्षता।👌

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  16. न मानूंगी किसी भी लुभावन से
    तुम्हारे आने तक
    रूठी रहूंगी सावन से

    बहुत सुंदर रचना .....

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  17. बहुत सुंदर काव्य सृजन अमृता जी। पिया बिना कैसा सावन!! विरहन के मन की वेदना एक वेदना नहीं, एक मानिनी का मान है जो आपकी कलम का स्पर्श पाकर , विरह पगे आनंद राग में परिवर्तित हो गई है!
    -----तुम्हें हिरदेशी बना मैं ऐसे न कानती
    और तेरी जोगनिया बन हठजोग न ठानती!!!!////
    लोक शब्दों ने रचना में सादगी का अजब मिठास भर दी है 👌👌🙏🙏🌷🌷

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  18. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
    मन मुग्ध हो गया।
    हार्दिक आभार

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  19. वाह! अद्भुत। शृंगार रस में डूबा अनुपम भावपूर्ण गीत सृजन। आपको बहुत-बहुत बधाई।

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  20. रूठना मनाना ही तो सावन है !! सुंदर रचना !!

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  21. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०१-०८-२०२१) को
    'गोष्ठी '(चर्चा अंक-४१४३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  22. ढोल, मंजीरों पर थाप पड़ेंगी
    मृदंग संग झांझे झमकेंगी
    घुंघरू पायल की रुनझुन में
    सब सखियन संग झूलुआ झूलेंगी
    सबके हाथों सजन के लिए मेंहदी रचेंगी
    और हरी-भरी चूड़ियां खन-खन खनकेंगी
    पर मुझ बिरहिन, बैरागिन को
    बिरती है सब सिंगार सजावन से
    तुम्हारे आने तक
    रूठी रहूंगी सावन से

    सावन में लाजवाब विरह गीत...अद्भुत शब्दसंयोजन... बहुत ही भावपूर्ण
    लाजवाब सृजन

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  23. अति सुन्दर सराहनीय

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