क्यों मैं डालूं तुम्हारे पैरों में
अपनी कल्पनाओं की बेड़ियाँ
क्यों मैं बांध लूँ तुम्हें
अपने इन्द्रधनुषी सपनों में
क्यों मैं घेर लूँ तुम्हें
अपनी बांहों के घेरे में
क्यों मैं बनाऊं तुम्हारे लिए
अपनी सीमाओं का लक्ष्मण रेखा
क्यों मैं खींचती रहूँ तुम्हें
अपने तन मन के आकर्षण में
मेरे लिए तुम्हारा भावस्पर्श ही
अद्भुत वरदान है
जिससे मैं पाषाण से बन गयी
जीती जागती इन्सान
परिपक्व चेतना युक्त
और तुम्हारे असीम सीमा में
हो गयी अवस्थित
साक्षी भाव में तन्मय
तुममे तन्मय .
अभिव्यक्ति का यह अंदाज निराला है. आनंद आया पढ़कर.
ReplyDeleteकभी 'आदत.. मुस्कुराने की' पर भी पधारें !!
new post par
.............मेरी प्यारी बहना ?
truly brilliant..
ReplyDeletekeep writing..all the best
साक्षी भाव.. यही तो कठिन है।
ReplyDeleteone of your finest poetry i have ever read. thanks for such beautiful lines.
ReplyDeleteaapki ye rachna mujhe bhut acchhi lagi amrita ji...bhut gehri baahw....
ReplyDeletewavelength of spiritual eye .....
ReplyDeleteवाह! अद्भुत .. सारगर्भित, आध्यात्मिक!
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