अपनी दया पर आश्रित मैं
मुझसे कैसी अपेक्षा
सद्गुणों की या
उसकी किसी भी धारणा की
मूल्यों की या
उसकी किसी भी ऊंचाई की
मौलिकता की या
उसकी किसी भी छाया की
सर्वश्रेष्ठता की या
उसके किसी भी दु:स्वप्नों की
मानवता की या
उसकी किसी भी प्रतिबद्धता की
यदि मैं स्वयं से ही
स्वतंत्र हो जाऊं तो
मुझसे की जाने वाली
तमाम अपेक्षाएं
जायज है .
अमृता जी,
ReplyDeleteवाह....बहुत गहराई है रचना में .......पूरी रचना बेहतरीन कोई भी एक पंक्ति किसी दूसरी से किसी कद्र कम नहीं..........बहुत खूब |
यदि मैं स्वयं से ही
ReplyDeleteस्वतंत्र हो जाऊं तो...
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