शब्दों की
व्यग्रता व्याकुलता
अर्थों की सीमा को
तोड़ देने की हठता
स्वयं को इस तरह
व्यक्त करने की अधीरता
हाय ! शब्दों में ही
इतनी अराजकता
प्रिय !
इन बेतरतीब शब्दों से
कुछ अर्थ ग्रहण कर पाओ तो
समझ लेना मेरी विह्व्लता
और शब्दों से
बंघी होने की विवशता
पर प्रिय !
कैसी है ये विषमता
पास जो होते हो तुम तो
शब्दों की क्यों
नहीं होती आवश्यकता
दिखती है क्यों
इतनी निरर्थकता
कुछ कहती है क्यों
उद्वेलित नि : शब्दता
जिसमें हो जाते हैं
दोनों समाहित और
रह जाती है केवल
प्रेम की मधुरता
अमृता जी,
ReplyDeleteहमेशा की तरह लाजवाब.......मैं तो आपका प्रशंसक बन गया हूँ.........बहुत गहरी अभिव्यक्ति...सच कहा है, जो मौन में कहा जा सकता है...वह कभी भी शब्दों में नहीं.........शब्द तो आडम्बर मात्र है अपनी व्यथा को ढंकने के लिए....दुनिया में शब्दों के माध्यम से न जाने कितनी बकवास प्रतिपल की जा रही है ..........सुन्दर पोस्ट .......शुभकामनाये|
अमृता जी,
ReplyDeleteएक बात और आपकी पुरानी रचनाओ में मेरी कोई भी टिप्पणी नहीं दिख रही....क्या आप टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं करती?
prem ki madhurta tabhi
ReplyDeletehoti hai paas
jab krishan ban jaaye radha
aur radha ban jaye shayam
आप इतना अच्छा अच्छा कैसे लिख लेती हो ... मैं तो कई कई बार इस कविता को पढ़ गया... हाँ मौन की अपनी अभिव्यक्ति होती है ..
ReplyDeleteमौन का चीत्कार ....
ReplyDelete'आह' निकल आया इसे पढ़कर! बेहद सुन्दर!
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