मुझमें
तेरा अवतरण
तुझमें
मेरा अवशोषण
हाय ! मुझसे
मेरा ही अवहरण
अब मेरी सांसों में
तेरा ही आवागमन
विरह वेदना में
तेरा अवगाहन
और
मिलन - बेला में
देह को लाँघ
तुम्हे छूने का जतन
क्यों इस पूर्णता में भी
है एक अधूरापन
प्रिय ! यही प्रेम है तो
आओ इसी का
हम लें आलंबन .
बस यही कह सकता हूँ........वाह....वाह.......अमर प्रेम यही है...
ReplyDeletenicely written poem...jaise prem ka pura ek jeevan jee liya...thanks archana
ReplyDeleteawesome...
ReplyDeleteexactly.....
ReplyDeleteसुन्दर! खुसरो याद आ गए ..
ReplyDelete'तु मंशुदन मं तनशुदि, मं तन शुदन तु जाँशुदी ..'