जीवन की असारता
पश्चाताप
जिसे सुनने के लिए
केवल मैं या
एकांत तथा शांत प्रकृति
आँखों को दिखता
क्रूर नृत्य
प्रलय की लहरों का
जो बाहुपाश में मुझे
जकड़ती जा रही है
और मैं हो रही हूँ
विलीन तथा विनष्ट
स्वयं में ही ........
पश्चाताप में
निमग्न होकर भी
कोई शक्ति मुझे
देती है प्रेरणा
आभ्यंतर प्रेरणा
कर्मशील होने की
मैं पुनः
आसक्त होती हूँ
जीवन के प्रति
मुझमें संचार होता है
आशा का
सुनहरे तीर बरसाती
अलौकिक सुबह
मुझे आलोकित करती है
जिसमें दिखता है प्रेम
मेरा प्रेम
मंद-मंद मुस्कुराता हुआ
दूर होकर भी
बहुत पास बहुत पास
मेरे पैर स्वतः
बढ़ चलते हैं
धीरे -धीरे
धीरे -धीरे
उसकी ओर .... .
bahut door ya bahut nahin abhinna aur samhit fir brahmand me sirf ham aur kuchh bhi nahin
ReplyDeletebir
prem divya ehsason ki paawan si yatra hai.
ReplyDeletebemishaal hai aapki kavita
rahul
simply divine...
ReplyDelete'कोई शक्ति मुझे
ReplyDeleteदेती है प्रेरणा
आभ्यंतर प्रेरणा
कर्मशील होने की
मैं पुनः
आसक्त होती हूँ
जीवन के प्रति'
बहुत ही सुन्दर!