मैंने लिखना चाहा
केवल एक गीत
तुम्हारे लिए...
हर बार
सबकुछ हार कर
वही एक गीत लिखती हूँ
पर तुम्हारा रूप
और विस्तार पा जाता है
जो मेरे गीतों में
नहीं समा पाता है...
हर बार
मेरा गीत हार जाता है....
मैं फिर लिखती हूँ
नए गीतों को
जिसमें तुम्हें
पिरो देना चाहती हूँ..
लेकिन कुछ
शेष रह जाता है
जिसे मेरा गीत
नहीं अटा पाता है....
जो शेष रह जाता है
वही मुझसे
बार-बार
नये गीत लिखवाता है
मुझे स्तब्ध कर
फिर से
वही शेष रह जाता है ....
तुम्हारे लिए
मैंने लिखना चाहा था
केवल एक गीत
पर यूँ ही
मेरा सारा आयोजन
धरा का धरा रह जाता है .
केवल एक गीत
तुम्हारे लिए...
हर बार
सबकुछ हार कर
वही एक गीत लिखती हूँ
पर तुम्हारा रूप
और विस्तार पा जाता है
जो मेरे गीतों में
नहीं समा पाता है...
हर बार
मेरा गीत हार जाता है....
मैं फिर लिखती हूँ
नए गीतों को
जिसमें तुम्हें
पिरो देना चाहती हूँ..
लेकिन कुछ
शेष रह जाता है
जिसे मेरा गीत
नहीं अटा पाता है....
जो शेष रह जाता है
वही मुझसे
बार-बार
नये गीत लिखवाता है
मुझे स्तब्ध कर
फिर से
वही शेष रह जाता है ....
तुम्हारे लिए
मैंने लिखना चाहा था
केवल एक गीत
पर यूँ ही
मेरा सारा आयोजन
धरा का धरा रह जाता है .
पर मेरे पास सात सुर हैं , ... तुममें ढलते ढलते कई गीत बन गए , तो निश्चय ही एक दिन तुम्हें गीत बना लूँगी
ReplyDeleteपर यूं ही
ReplyDeleteमेरा सारा आयोजन
धरा का धरा रह जाता है ..
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ह्रदय के प्रेमपूर्ण भावों की अप्रतिम प्रस्तुति.
ReplyDeleteअद्भुत सुन्दर कविता लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! चर्चा में शामिल होकर चर्चा मंच को समृध्द बनाएं....
ReplyDeleteWah....bahut sundar
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
उसकी अशेष व्यापकता ही सृजन का आधार है... सुन्दर रचना आदरणीया अमृता जी...
ReplyDeleteसादर...
मैंने लिखना चाहा था,
ReplyDeleteकेवल एक गीत,
पर यूँ ही,.....प्रेमभाव की सुंदर प्रस्तुति!!!!!!!
मेरे नये पोस्ट में आपका स्वागत है,....
अपने ईष्ट के प्रति प्रेम प्रदर्शित करती हुई मनमोहक कविता.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा आपने!!
कुछ न कुछ तो शेष रहेगा,
ReplyDeleteकह दे, तब न क्लेष रहेगा।
बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
कविता की अनवरत कहानी ...कह दी ..
ReplyDeleteअमृता जी बहुत खूबसूरत रचना ..इसे पूरा करने के प्रयास मे गीत लिखती रहेगी तो बहुत सारे गीत बन जायेंगे तो कुछ न कुछ
ReplyDeleteशेष रहने में भी लाभ ही है जरुरी नहीं कि एक ही गीत हो
ये शेष ही तो नव सृजन को प्रेरित करता है।
ReplyDeleteकल शनिवार ... 03/12/2011को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
हर बार कुछ शेष रह जाए तभी तो संभावनाएं बनी रहेंगी...!
ReplyDeleteपूर्णता प्राप्त हो जाए फिर तो पूर्णविराम लग जाएगा न:)
सुन्दर अभिव्यक्ति!
Behtreen Kavita...
ReplyDeleteSunder kavita
ReplyDeleteAabhaar.
वाह, क्या बात है
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता
sundar harday ke bhaavon se paripoorn rachna.
ReplyDeleteशेष न रहे तो नव सृजन कैसे हो .... बहुत अच्छ प्रस्तुति
ReplyDeleteयही शेष सृजन कर्ता है हर एक नए गीत का... बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबेहतरीन भाव।
ReplyDeleteसादर
अमृता
ReplyDeleteजो शेष है वही प्रेम है .और ये प्रेम हमेशा ही रहेंगा .और क्या लिखो ,समझ नहीं आ रहा है ...
बधाई !!
आभार
विजय
-----------
कृपया मेरी नयी कविता " कल,आज और कल " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/11/blog-post_30.html
वह अनंत है तो जब तक अनंत गीत न लिखे गए वह चुक नहीं सकता...तभी तो कबीर कहते है...सागर की स्याही हो और धरती के सारे जंगलों के वृक्षों की कलम..तब भी उसका बखान नहीं किया जा सकता...
ReplyDeleteNARI HAR BAR EK HI GIT LIKHATI HAI
ReplyDeleteवाह...बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
फिर से हमेशा की तरह बेहतरीन लिखा है... !
ReplyDeleteगीतों का जन्म यूँ ही नहीं होता , सुंदर रचना आभार
ReplyDeleteसारा आयोजन धरा रह जाता है...वाकई प्रेम इतना विराट तो है ही...
ReplyDeleteएक हृदयस्पर्शी रचना जो बिहारी के एक दोहे की याद दिला गयी ...
ReplyDeleteलिखन बैठि जाकी सबिह, गहि-गहि गरब गरूर।
भये न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर॥*
बिहारी नायिका के सौन्दर्य-चित्रण के लिए बड़े-बड़े और गर्वीले कलाकारों को बुलाया गया, किन्तु क्षण-क्षण परिवर्तित होते हुए उसके रूप को कोई भी चित्रकार-चित्रत नहीं कर सका। सारे कलाकार विफल होकर लौट गए।
वह धन्य है जो आपकी कृपा का पात्र बना है ....और धन्य आप भी कि अनवरत प्रयास में लगी हैं !
यह जो कुछ शेष है वही तो सृजन की प्रेरणा है...बेहतरीन अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव .
ReplyDeleteक्या बात है । आपेक पोस्ट ने बहुत ही भाव विभोर कर दिया । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है ।
ReplyDeleteप्रेम का चरमोत्कर्ष. खूबसूरत अदाज़.
ReplyDeleteलाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल!!!!!
ReplyDeleteजिस अनंत शक्ति के सम्मान में आप लिखती है वो लेखन तो इसी अनंत धारा के रूप में बहता रहेगा ....शुभकामनाएं
ReplyDeleteवही मुझसे बार बार
ReplyDeleteनये गीत लिखवाता है ...
वाह!
विचार-घट कभी रीता नहीं होना चाहिए।
ReplyDeleteसुंदर कविता।
sundar bhaav
ReplyDeleteजैसे जैसे प्रेम बड़ता जाता है ... शब्द कम होते जाते हैं ...
ReplyDeleteरचना में वो व्यक्तित्व समा नहीं पाता हर बार ...
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़एं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteprem rupi gahare pani ko vani dena wakai bahut mushkil kam hai..
ReplyDeletekhubsurat andaz..
जो शेष रहता है वही तो गीतों में नज़र आता है. खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteइश्क मजाज़ी से इश्क हक़ीकी तक ले कर ले जाती हुई बहुत ही खूबसूरत रचना.
ReplyDeleteयहाँ तो ये हाल है
एक हर्फ़ भी तेरे नाम लिखूं
तो भी बचता नहीं कुछ शेष,
खाली जो वर्क रखूँ तेरे नाम
तो भी हो जाता है विशेष.
बहुत सुन्दर .. शेष जो बहुत विशेष है.. सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुभानाल्लाह........प्रेम का प्याला कभी नहीं भरता.......छलक छलक जाता है..........बहुत खुबसूरत पोस्ट.......एक और हैट्स ऑफ |
ReplyDeleteजो अव्यक्त और अतृप्त रह जाता है वही सृजन कराता है. बहुत सुंदर अनुभूति और उसकी अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteआपके गीत में वह अमृत प्रीत कि
ReplyDeleteआप तो आयोजन पर आयोजन किये जा रही हैं.
और तन्मय हुईं है इतना कि आपको भान ही नही.
सबकुछ हार कर
ReplyDeleteवही एक गीत लिखती हूँ.....