घुमता हुआ चाक
ठहरी है कील
बौराया सा वर्तुल
नापे है मील
इतरा -इतरा कर
बहके है नागर
माटी का पुतला
है राज़ उजागर
कंचन की बेड़ी
सपनों की झाँकी
आँसू की लड़ियाँ
पाँसी में पाँखी
भर आये मनवा
उलाहना के बोल
फूट न पाए
बूझे तब मोल
बिन बताये ही
जो हाँक लगाई
दुविधा में पथिक
क्षण की पहुनाई
न - नुकुर करे
भंग होवे शील
घूम रहा चाक
ठहरी है कील .
घूम रहा चाक ठहरी है कील.......बहुत ही शानदार पोस्ट.......
ReplyDeleteपहुनाई ... एक अलग सांचा
ReplyDeleteख़ूबसूरत शब्दों से सुसज्जित उम्दा रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteक्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
कोई केन्द्र में बैठा है
ReplyDeleteइस दुनिया के,
जो घूम रही है।
बहुत सुन्दर ...!
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर
ReplyDeleteअमृता जी बहुत गहन भाव दिए हैं आज रचना को ..
ReplyDeleteजितनी बार पढ़ रही हूँ ...रिसती जा रही है ...अंदर ...कुछ ठहरी ठहरी ...सुकून सी देती हुई रचना ....बहुत ही सुंदर ...!!
वाह क्या बात है ! सुंदर रचना !
ReplyDeleteआभार !!
मेरी नई रचना ( अनमने से ख़याल )
वाह ....बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut sundar...bahut khub...
ReplyDeleteshaandaar shabd prayog....
bahut sikhne milta hai aapki rachnao ko padhkar..dhanyavaad
आदरणीय अमृता जी,
ReplyDeleteआपकी रचनाएं सचमुच अद्बुत होती हैं... आवाक कर देती हैं...
जितनी सहजता से आप गहन भाव गूँथ देती हैं वह अपूर्व है....
सादर बधाई स्वीकारें.
बुझौव्वल सरीखी कविता को बूझने में थोड़ा वक्त लगा। समझता गया अच्छा लगता गया। इसकी जितनी भी तारीफ की जाये कम है। शीर्षक बेहतरीन है। अंत मार्मिक सत्य को उजागर करता है। इसे लिखकर आपने अपनी पहुनाई चुका दी । इसे पढ़कर हम धन्य हुए...आभार।
ReplyDeleteकाल चक्र की चाकी तो घूंमती ही रहेगी...
ReplyDeletekya baat hai bahut khub
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteआंसु=आंसू
सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसुंदर रचना।
ReplyDeleteयही है जीवन और जगत की गति....और कील से बंधे चक्के की नियति... विचार मग्न करती कविता...
ReplyDeleteकविता में जीवन का स्पंदन !
ReplyDeleteघूम रहा चाक
ReplyDeleteठहरी है कील .
शाश्वत की काव्यात्मक अभिव्यक्ति...
साधु-साधु....
आपका पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट उपेंद्र नाथ अश्क पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteगज़ब की सोच और गज़ब का शब्द चयन ...गुरु हैं आप
ReplyDeleteसुन्दर अर्थ पूर्ण नए प्रतीक रचती रचना .बधाई अमृता जी ,आपके संग साथ सभी ब्लॉग कर्मियों को बड़ा दिन मुबारक .ईशामसीह का जन्म दिन मुबारक .नव वर्ष की पूर्व वेला मुबारक .
ReplyDeleteवीरुभाई ,सी -४ ,अनुराधा ,नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़िदेंशियल एरिया ,(नोफ्रा ),कोलाबा ,मुंबई -४००-००५ ./०९३५०९८६६८५ /०९६१९०२२९१४ आप ब्ब्लोग पर तशरीफ़ लाए शुक्रिया .
बहुत सुंदर रचना....
ReplyDeleteमेरी नई रचना...काव्यान्जलि ...बेटी और पेड़... में click करे
बड़ा दिन मुबारक नव वर्ष की पूर्व वेला भी .शुक्रिया आपका उत्साह वर्धन के लिए .ईसामसीह का जन्म दिन मुबारक .नव वर्ष की पूर्व वेला शुभ हो .
ReplyDeleteक्षण की पहुनाई... अद्भुत भाव...
ReplyDeleteकितनी सहजता से कितनी बड़ी बात कह दी आपने -पढ़ें तो लगे लोक-कथन , विचार करें तो गहरे उतर जाएँ !
ReplyDeleteघूम रहा है चाक
ReplyDeleteठहरी है कील
बहुत ही सुन्दर है आपकी दलील
इस सुन्दर प्रस्तुति ने चुराया है मेरा दिल.
जो भी पढ़े आपको उसका दिल जायेगा खिल.
हनुमान कहें पुकार कर मुझ से आकर मिल.
आ रहीं हैं न आप मेरे ब्लॉग पर.
कम शब्दों में बड़ी बात कह जाना, अद्भुत!
ReplyDeleteदुविधा में पथिक , क्षण भर की पहुनाई ...बहुत सुंदर कविता
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
ReplyDeleteगहन भावों को समेटे भावप्रवण रचना ..
ReplyDeletekuch duvidhayon ka naam hi jeevan hai...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteGyan Darpan
..
न - नुकुर करे
ReplyDeleteभंग होवे शील
घूम रहा चाक
ठहरी है कील .
Amrita ji bahut sundar abhivykti hai ... bahut adhik mn ko prabhavit karane wali rachan lgai. Abhar.
gahen vicharo ki sunder abhivyakti.
ReplyDeleteजगत की पहुनाई. बहुत ही सुंदर भाव से भरी अद्भुत कविता.
ReplyDeleteकितने कम शब्द, कितनी सुंदर रचना और कितने गहन भाव!
ReplyDeleteगहन भाव की बहुत सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteWELCOME to new post--जिन्दगीं--
गहन भाव....
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