जमाने से जमा
जमाने भर की
शिकवा - शिकायतों को
बड़ी सी गठरी में डाल
जोरदार गाँठ लगा
पीठ पर लादकर
जमाने से जमा
सारी खीज और झल्लाहटों को
पीसकर भांग सा गोली बना
झटके में हलक से उताड़ने पर
धीरे-धीरे चढ़ता है जो सुरूर
फुर्र हो जाता है सारा ग़रूर
अपने ही पिंजरे को तोड़
कोई उड़ जाता है
आसमानी जहाँ में पहुँच
आसमान सा हो जाता है
बादलों पर बैठ कर
हवा संग बलखाता है
कौंधते बिजली को पकड़
चाँद को मुँह चिढ़ाता है
लाख मना के बावजूद
अजीब सा दाढ़ी - मूँछ
उसके मुँह पर बनाता है
ऊँघते हुए सूरज के
सातों घोड़े की पूंछ में
जलता पटाखा बाँध आता है
बिखरे सितारों को भी
एक कतार में खड़ा कर
थोड़ा वर्जिश करवाता है
ओह ! वह चुहलबाज़
दम भर सबके
नाक में दम कर देता है
इसी भागा-दौड़ी में
पीठ पर लदी गठरी भी
कहीं गिर जाती है
सारी खीज और झल्लाहट
मीठी-मीठी शरारत में
बदल जाती है
और जमाने भर से
जमाने भर के लिए
दबा कर रखा हुआ
कुछ मीठा-मीठा सा
उभर आता है .
जमाने भर की
शिकवा - शिकायतों को
बड़ी सी गठरी में डाल
जोरदार गाँठ लगा
पीठ पर लादकर
जमाने से जमा
सारी खीज और झल्लाहटों को
पीसकर भांग सा गोली बना
झटके में हलक से उताड़ने पर
धीरे-धीरे चढ़ता है जो सुरूर
फुर्र हो जाता है सारा ग़रूर
अपने ही पिंजरे को तोड़
कोई उड़ जाता है
आसमानी जहाँ में पहुँच
आसमान सा हो जाता है
बादलों पर बैठ कर
हवा संग बलखाता है
कौंधते बिजली को पकड़
चाँद को मुँह चिढ़ाता है
लाख मना के बावजूद
अजीब सा दाढ़ी - मूँछ
उसके मुँह पर बनाता है
ऊँघते हुए सूरज के
सातों घोड़े की पूंछ में
जलता पटाखा बाँध आता है
बिखरे सितारों को भी
एक कतार में खड़ा कर
थोड़ा वर्जिश करवाता है
ओह ! वह चुहलबाज़
दम भर सबके
नाक में दम कर देता है
इसी भागा-दौड़ी में
पीठ पर लदी गठरी भी
कहीं गिर जाती है
सारी खीज और झल्लाहट
मीठी-मीठी शरारत में
बदल जाती है
और जमाने भर से
जमाने भर के लिए
दबा कर रखा हुआ
कुछ मीठा-मीठा सा
उभर आता है .
और तब ,कल्पनाओँ की पोटली खुल कर अक्षर- अक्षर बिखरने लग जाती है!
ReplyDeleteगठरी गिर ही जाए तो बेहतर ... और ये मिठास कायम रहे ..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteअपने मन का शरारती चेहरा. खूबी से ब्यान करती कविता.
ReplyDeleteआप भी न तन्मय होकर क्या क्या लिख देतीं हैं.
ReplyDeleteपर जो लिखतीं हैं सुन्दर और सटीक लिखतीं हैं
जिससे मन तन्मय हो जाता है.
मेरे ब्लॉग पर आप आईं और सुन्दर सुवचनों
से आपने मुझे निहाल कर दिया.कैसे शुक्रिया
कहूँ आपके गूढ गुरू वचनों के लिए.
नमन आपको,सादर नमन.
ज़माने से जमा ज़मीन मे जाने के समय कोई साथ नहीं ले जाता :)
ReplyDeletekhubsurat andaaj
ReplyDeleteवाह! सच है जब शिकवे शिकायत भुला दिए जाते हैं तो जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ रह जाती हैं..बहुत सारगर्भित और भावमयी प्रस्तुति..
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही मधुर शरारती सी रचना ....
ReplyDeleteWaah...!!
ReplyDeleteLajwaab rachna..
शिकवे शिकायतों को इस तरह मीठी मुस्कान में बदलते देखा कि सब कुछ आसमानी लगने लगा ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना !
वाह!!!!!:):):)
ReplyDeleteमिठास कायम रहे .... वाह
ReplyDeleteवाकई अमृता जी ... सारी खीज शरारत में बदल जाती है, बदल गई - बहुत अनुभवी अंदाज
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब ! सारी शिकायतें बांध कर आप सूरज के घर ही क्यों न छोड़ आयीं बाद में खुलने का डर भी न रहता...
ReplyDeleteसुभानाल्लाह........काश हम सब भी ज़माने भर की गंदगी (क्रोध, मोह, लालच) की एक गढ़री बाँध कर उन्हें कहीं फेक सकते...........बहुत ही सुन्दर पोस्ट..........हैट्स ऑफ इसके लिए|
ReplyDeleteबहुत ही मीठा -मीठा लगा सब कुछ ...
ReplyDeletemithas to aata hi hai ....bahut sundar rachana Amrita ji .
ReplyDeletebahut sunder bhulne mein hi bhalai hai...........
ReplyDeleteपहली बार आप के ब्लॉग पर आना हुआ,अच्छा लगा आप का ब्लॉग......आप की रचना भी मीठी मीठी लगी.....:)
ReplyDeleteउम्दा लिखती है आप .....
गहरी अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
अरे वाह! फंतासी की कोई तो पृष्ठभूमि होगी ? :)
ReplyDeleteBahut khub....
ReplyDeleteएक मीठी पोस्ट ..
ReplyDeleteरस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष -2012 के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteदबा कर रखा हुआ
ReplyDeleteकुछ मीठा-मीठा सा
उभर आता है
बहुत सुन्दर रचना
vikram7: आ,मृग-जल से प्यास बुझा लें.....
खुदा की खुमारी मदमस्त मस्ती
ReplyDeleteवही है हृदय मैं यही मेरी हस्ती
andaaz-e-bayan hi kuchh aur hai...
ReplyDeleteफिक्र का तो जिक्र ही न हो... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुती बेहतरीन रचना,.....
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..
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बहोत अच्छी कविता ।
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास .बेहद सुन्दर विस्तार और भाव समेटे रचना,व्यापक फलक पर फैलाती उजास .नव वर्ष मुबारक .
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति |
ReplyDeleteनव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
आशा
कल 31-12-2011को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
bhaang ki goli banakar nigalne ka khayl achchha hai ...aapke jivan me sadaiv mithas ghuli rahe..shubhkaamnaon kesaath navvarsh mangalmay ho
ReplyDeleteBehtareen....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत प्रस्तुति………………आगत विगत का फ़ेर छोडें
ReplyDeleteनव वर्ष का स्वागत कर लें
फिर पुराने ढर्रे पर ज़िन्दगी चल ले
चलो कुछ देर भरम मे जी लें
सबको कुछ दुआयें दे दें
सबकी कुछ दुआयें ले लें
2011 को विदाई दे दें
2012 का स्वागत कर लें
कुछ पल तो वर्तमान मे जी लें
कुछ रस्म अदायगी हम भी कर लें
एक शाम 2012 के नाम कर दें
आओ नववर्ष का स्वागत कर लें
बड़ी मनमोहक रचना है आदरणीया अमृता जी... सादर बधाई और
ReplyDeleteनूतन वर्ष की सादर शुभकामनाएं
अमृता जी, आपसे ब्लॉग जगत में परिचय होना मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है.बहुत कुछ सीखा और जाना है आपसे.आपके सुवचन गूढ़ और प्रेरणादायी रहे हैं.इस माने में वर्ष २०११ मेरे लिए बहुत शुभ और अच्छा रहा.
ReplyDeleteमैं दुआ और कामना करता हूँ की आनेवाला नववर्ष आपके हमारे जीवन
में नित खुशहाली और मंगलकारी सन्देश लेकर आये.
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्दों का संगम
ReplyDeleteनववर्ष की अनंत शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
आपको और परिवारजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteनया साल लो आ गया,गया पुराना साल.
ReplyDeleteखुशियों से कर जाए ये,तुमको मालामाल.
वाह वाकई मीठा है ....
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