हमारे - तुम्हारे विरह ने पिया
दर्द के गीत को जनम दे दिया
अनदेखे से परदेश में , हो तुम
न जाने किस वेश में , हो तुम
तेरी स्मृतियों में ही , मैं घूमूँ
नाम तेरा ही , ले लेकर झूमूँ
जोगन को मैंने भी जोग लिया
बेमोल ही दर्द को , मोल लिया
हमारे - तुम्हारे विरह ने पिया
दर्द के गीत को जनम दे दिया
हियरा रह - रह के हहराये
भीतर- भीतर घुट- घुट जाये
हर आहट पर ऐसे चिहुंक उठे
लाख मनाऊँ फिर भी क्यों रूठे
नेह ने जाने कैसा हिलोर लिया
आँधी बन मुझे झझकोर दिया
हमारे - तुम्हारे विरह ने पिया
दर्द के गीत को जनम दे दिया
कैसे बाँधूँ अपने बिखरे मन को
सूली के जैसे , इस सूनेपन को
मुझको यूँ , अब भटकाओ मत
साँसों की कथा लिखवाओ मत
शब्दों में बस मुझे ही ताना दिया
गीतों का तो , बस बहाना लिया
हमारे - तुम्हारे विरह ने पिया
दर्द के गीत को जनम दे दिया
कैसे तुझ तक , इन्हें पहुँचाऊँ
इतनी पीड़ा से , मैं ही लजाऊँ
मृग - जल मन को है भरमाता
मेघों से जुड़ गया है इक नाता
क्या तुने ऋतुओं को बोल दिया
इन पलकों में सावन घोल दिया
हमारे - तुम्हारे विरह ने पिया
दर्द के गीत को जनम दे दिया .
हियरा रह - रह के हहराए...
ReplyDeleteइस पंक्ति की ध्वनि सुनी जा सकती है... दिल पर दस्तक देती है यह आवाज़ आपकी रचना में!
प्रभावी विरहगीत की सबसे प्रभावी पंक्ति!
विरह भावनाओं का बहुत सुंदर और भावमयी चित्रण..
ReplyDeleteबहूत सुन्दर
ReplyDeleteकाश अजन्मा यह रह जाता,
ReplyDeleteपिया मिलन से पर हो जाता।
मन के कशमकश को दर्शाती सुन्दर रचना
ReplyDeleteविरह की सारी संवेदनाएं छलक गयीं इस गीत में ..
ReplyDeleteइस विरह गीत ने मन को संतप्त कर दिया ..लगा जैसे यह व्यक्तिनिष्ठ पीड़ा समस्त समष्टि से जुड़ती हुयी पाठकों से भी तादात्म्य स्थापित कर व्यथित कर गयी हो .....
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteसादर
है सब से मधुर वो गीत जिसे हम दर्द के सुर में गाते हैं...
ReplyDeleteविरह को शब्दों में गूँथ दिया है... सुन्दर रचना
अति सुन्दर |
ReplyDeleteशुभकामनाएं ||
dcgpthravikar.blogspot.com
विरह के भावो का सजीव चित्रण कर दिया।
ReplyDeleteप्रेम न होता तो पीर न होती पीर न होती तो गीत न होता :)
ReplyDeletevirah ki agni ka achcha vivrankiya hai bahut sundar.
ReplyDeleteवाह! सुन्दर गीत!
ReplyDeleteसादर...
बहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
ReplyDeleteआह!
ReplyDeleteवाह!
नही सुझती राह
क्या कहूँ आपकी इस अनुपम प्रस्तुति पर.
बस तन्मय हो रहा हूँ.
आभार... बहुत बहुत आभार आपका अमृता जी.
विरह को बेहतरीन शब्दों में बयां किया है. आभार
ReplyDeleteकैसे बांधूं अपने बिखरे मन को..
ReplyDeleteसुली के जैसे , इस सूनेपन को
बस कमाल का जादू है आपके शब्दों में!! आभार.
it is a fantastic experience to read your poetry after a long time. your poetry is running from the dense forest of the sprituality. a appearance of sufi way is also traceable...very nice keep it up.
ReplyDeletekya baat hai amrita....
ReplyDeleteआपका पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट नकेनवाद पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteआप इतना खूबसूरत गीत लिखतीं हैं कि क्या कहूँ सोचना पड़ जाता है!!
ReplyDeleteअति सुन्दर!
ReplyDeletevirah ke bhawon ko bahut hi achhe se likha hai...
ReplyDeleteमन की गहरी संवेदना लिए विरह गीत .....
ReplyDeleteअति सुन्दर ....!!
ReplyDeleteकोमल -कोमल प्यारा सा एहसास .
विरह के भावों का सुंदर तरीके से चित्रण।
ReplyDeleteदर्द की पीड़ा से भरी कविता
ReplyDeleteविरह दर्द को ही जनम देता है ... सुन्दर रचना है ...
ReplyDeleteएक प्यारा सा मीठा विरह गीत..सुन्दर..
ReplyDeleteविरह वेदना का सजीव चित्रण ..बधाई
ReplyDeleteअच्छी लगी रचना.........
ReplyDeleteहमारे तुम्हारे विरह ने पिया
ReplyDeleteदर्द के गीत को जन्म दे दिया
यही काव्य का संपूर्ण सत्य है जो सृष्टि के आदि-अंत को वर्णित करता है.
दर्द असीमित है कविता में,
ReplyDeleteशब्द-शब्द में आँसू दिखते।
बहन अमृता सच बतलाना,
ऐसी कविता कैसे लिखते।।
किसी ने लिखा है
ReplyDeleteजो धुन तार से निकली है उसे सबने सुनी है
पर जो साज पर गुजरा है सिर्फ उस दिल को पता है.
शब्द नहीं है,लगता है सबों के दिल का हालयही होगा .बधाई भी नहीं.सिर्फ एहसास .मीरा राधा की ब्यथा को सिर्फ जिया जा सकता है.फिर भी......
सुभानाल्लाह..........हैट्स ऑफ.....बेहतरीन और लाजवाब 'गीत' लिखा है इस बार आपने|
ReplyDeleteविरहे के भावों को शब्दों मे ढालकर बहुत ही खूबसूरती के साथ गीत के रूप मे सजाया है आपने ....बहुत खूब समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDeletehttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत सुदर चित्रण और एक लाजवाब अभिवयक्ति
ReplyDeletesundar rachna....
ReplyDeleteहमारे तुम्हारे विरह में पिया,
ReplyDeleteदर्द के गीत को ही जनम दे दिया
अनदेखे परदेस में हो तुम
ना जाने किस वेश में हो तुम
तेरी स्मृतियों में घूमू
नाम तुम्हारा लेकर झूमू
जोगन जैसा ही जोग लिया
बेमोल दर्द को मोल लिया !
अब हमारे तुम्हारे विरह ने पिया
दर्द के गीत को ही जनम दे दिया !
आनंद आ गया .....शुभकामनायें आपको !
बढ़िया गीत है। प्रवाह और भी होता तो लाज़वाब हो जाता।
ReplyDeletehriday ko jhakjhor dene wali abhivykti .. vah ... badhai.
ReplyDeleteशाश्वत प्रेम....बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुती बेहतरीन रचना,.....
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाए..
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कई पोस्ट पर आपको अमृता कह दिया ...
ReplyDeleteमुझे माफ़ कर दीजिये ....
इतना दर्द ! निशब्दहूँ | अक्सर आपके ब्लॉग पर आपकर भटकती हूँ और समझ नहीं पाती अनुराग के किस निर्जन वन में पहुँच गयी | प्यासे चातक सी अबूझ पहेली |
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