नहीं चाहा कभी
मिट्टी की सेज पर बिछना
और मिट्टी हो जाना
बस गंधी से कुछ गंध
उधार लेकर
भर दिया कल्पनाओं में
कर दिया हवा के हवाले
नहीं पता था कि
पंख समेट कर हवा भी
चल देगी अपने रस्ते
मिट्टी पर गिरकर वो
गंध जायेगी उसी गंध में....
वही भभका देगा
फूल बनने के स्वांग को और
कन्नी काटकर निकल लेंगे
भंवरे , तितलियाँ ....
बैठकखाने के सजावट को भी
खिल्ली उड़ाने का
मिलेगा मौका भरपूर...
नहीं पता था कि
मिट्टी में गड़कर
मरना होता है , सड़ना होता है
फूटती हैं तब कोंपले
चाहतों का क्या
बस चाहना काम है...
अभी भी बस
भनक ही लगी है कानों को
पता चलते - चलते
पतझड़ में तो
जरुर मिलना होगा उससे..
अभी दिख रहा है
भागता हुआ बसंत
पतझड़ के पीछे...
कल्पनाओं में ही खिले रहे
अमरबेलों पर फूल
न मुरझाने वाला
गंधी को उधार लौटाने का
जी नहीं कर रहा है ...
हाँ , नहीं बिछना चाहती हूँ
मिट्टी की सेज पर
नहीं होना चाहती हूँ मिट्टी
खुद से जो प्यार हो गया है .
मिट्टी की सेज पर बिछना
और मिट्टी हो जाना
बस गंधी से कुछ गंध
उधार लेकर
भर दिया कल्पनाओं में
कर दिया हवा के हवाले
नहीं पता था कि
पंख समेट कर हवा भी
चल देगी अपने रस्ते
मिट्टी पर गिरकर वो
गंध जायेगी उसी गंध में....
वही भभका देगा
फूल बनने के स्वांग को और
कन्नी काटकर निकल लेंगे
भंवरे , तितलियाँ ....
बैठकखाने के सजावट को भी
खिल्ली उड़ाने का
मिलेगा मौका भरपूर...
नहीं पता था कि
मिट्टी में गड़कर
मरना होता है , सड़ना होता है
फूटती हैं तब कोंपले
चाहतों का क्या
बस चाहना काम है...
अभी भी बस
भनक ही लगी है कानों को
पता चलते - चलते
पतझड़ में तो
जरुर मिलना होगा उससे..
अभी दिख रहा है
भागता हुआ बसंत
पतझड़ के पीछे...
कल्पनाओं में ही खिले रहे
अमरबेलों पर फूल
न मुरझाने वाला
गंधी को उधार लौटाने का
जी नहीं कर रहा है ...
हाँ , नहीं बिछना चाहती हूँ
मिट्टी की सेज पर
नहीं होना चाहती हूँ मिट्टी
खुद से जो प्यार हो गया है .
बहुत रह लिये,
ReplyDeleteबीज बने थे,
मिट्टी भीतर,
अब खिलना है,
फूलों जैसे।
सुंदर भाव अच्छी रचना
ReplyDeletenahin hona chahti mitti
ReplyDeletekhud se pyaar ...... bahut gambheer ehsaas
अभी बस भनक ही लगी है कानो को
ReplyDeleteपता चलते चलते
पतझड़ में तो जरुर मिलना होगा उससे ...
शानदार रचना के लिए बधाई
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति...
ReplyDeleteजीवन के शास्वत सत्य की गहन और सुंदर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteमाटी में मिल के माटी.... अंजाम ये के माटी :(
ReplyDeleteहाँ, नहीं बिछना चाहती हूँ...
ReplyDelete... खुद से जो प्यार हो गया है।
बहुत मजबूत है कथन आपका
प्यार के महत्व को समझने और जीने के लिए खुद से प्यार करना बहुत जरुरी है ..बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना. शुभकामनाएं!!
ReplyDeleteमिट्टी के खिलौने में प्राण क्या फूंक दिया तूने, वह मिट्टी से ही भागने लगा! हे ईश्वर! तू भी कमाल करता है।
ReplyDeleteखुद से प्यार होना तो बहुत ही बड़ी बात है जी.
ReplyDeleteआपकी सुन्दर तन्मय प्रस्तुति के लिए आभार,अमृता जी.
tamam bhavon se labrej panktiyan...
ReplyDeletebahut sundar rachana ...abhar.
ReplyDeleteकल १७-१२-२०११ को आपकी कोई पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
वाह, कमाल की पंक्तियाँ हैं !
ReplyDeleteआभार !!!!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
ReplyDeleteइतनी खुबसूरत पंक्तियाँ हैं की बस खामोश रहके तारीफ़ की जाए तो बेहतर होगा. बस इतना ही कहूँगा खुद से प्यार की बात बहुत निराली है.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteआभार !!
पंख समेट कर हवा भी
ReplyDeleteचल देगी अपने रास्ते
वाह, एक समातन सत्य को सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया है. स्वयं से जब प्रेम हो जाता है तो व्यक्ति शब्द हो जाता है और शब्द को मिट्टी और गंध से मोह या भय नहीं रह जाता. आपकी यह रचना यह कह रही है. बहुत सुंदर.
अभी खिल रहे हैं कल्पनाओं की अमरबेलो पर फ़ूल, नहीं होना है अभी मिट्टी... बहुत सुंदर अहसास... आभार
ReplyDeleteसुभानाल्लाह..........मिटटी की सेज और मिट कर फिर बन जाना और फैलती खुशबू........क्या बात है बहुत खूब|
ReplyDeleteगहरे भाव
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteकोमल भाव ....
ReplyDeleteWah!!! Bahut Sundar....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति....!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteशाश्वत की गहनाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर...
बेहद गहन भावो का समन्वय्।
ReplyDeleteजीवन में रागात्मकता बनी रहे ..जीवन का स्पंदन है ....यह रचनाधर्मिता बनी रहे ....कविता तो कल ही पढ़ डाली थी टिप्पणी आज ....
ReplyDeleteबहुत गहन अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteसुंदर कविता अमृता जी बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteवाह ....बेहतरीन और अर्थपूर्ण पंक्तियाँ
ReplyDeleteमधुर संयोजन......
ReplyDeleteसुन्दर रचना.....
नामुमकिन सी एक रात में
ReplyDeleteअपने को जी लो तुम...
खुद को एक पल नवाज दो...
निर्मम वक़्त की चाक पर
मिट्टी सी अधूरी हसरतें
बार-बार टूटती बिखरती है
सदी तो लौट कर चली आती है
पर.. नामुमकिन सी रात का वो पल....
बहुत सुंदर अहसास और प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई.
बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना! बहुत बढ़िया लगा!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा ।
ReplyDeletebahut sundar, bhavpoorn rachana,badhai.
ReplyDeletebahut dinon se aapaka mere blog par aagaman naheen huaa, padhaaren,swagat hai.
जीवन चक्र में बने रहने के लिए खुद से प्यार ....बहुत सुन्दर
ReplyDeleteकल्पना शक्ति को सलाम
ReplyDeleteकल्पना शक्ति को नमन।
ReplyDeleteachhi rachana hae
ReplyDeleteखुद से प्यार होना यानी जीवन का सफल होना।
ReplyDeleteबढि़या कविता।
Amrita,
ReplyDeleteTEEN KAVITAYEN PARHI. PIYA SE BICHHURNE KAA VARNAN HRIDEY KO CHHOONE WAALAA HAI. IS KAVITA MEIN BHI GURH BAAT KAH DI HAI AAPNE.
Take care
बेहतरीन कविता |
ReplyDeleteटिप्स हिंदी में
क्या किसी भी गज़ल का बहर में होना जरूरी
आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअद्भुत
ReplyDeleteइंसान होने के लिए खुद से प्यार होना जरूरी है।
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