मेरे मन के
शांत संसार में
कुछ असामाजिक
विचारों ने अनायास
कर दिया है
बम - धमाका
पुनर्शान्ति के लिए
लगा दिया है
मैंने भी कर्फ्यु..
पर कविता तो
छूट गयी है
उन्हीं विचारों के
अभेद्य दुर्ग में..
न जाने कैसे
लुट-पीट रही होगी
और उसे
बचाने के लिए
रोक रही हूँ
मैं भी कलम .
कविता विचारों के अभेद्य दुर्ग से ही निकलती है...
ReplyDeletekalam ko rokane ka to koi kaaran nahi dikhta hain.
ReplyDeletelikhte rahiye
nice lines
wah kya baat....
ReplyDeleteअंतर्द्वंद्व ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteगहन अहसासों से परिपूर्ण एक सशक्त प्रस्तुति...
ReplyDeleteवो तो रास्ता निकाल ही लेगी बहार आने का .....!बल्कि अबकी कुछ गज़ब के भाव लिए आएगी ....!!
ReplyDeleteअशांत मन में कैसी कविता!!!!!!
ReplyDeleteअंतरद्वंद पर सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर.....
ReplyDeleteकृपया आप अपनी कलम ना रोकें.. थोड़ा विश्राम कर ले.
ReplyDeleteनए वर्ष की मंगलकामनाएं.
वाह, बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...वाह!
ReplyDeleteये भी होता है। नववर्ष की शुभकामनायें!
ReplyDeleteहलचल आती, थम जाती है,
ReplyDeleteसमय बहुत लेने के बाद।
निकल कर हलचल मचाने लगी।
ReplyDeleteबहोत अच्छे ।
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग
हिन्दी दुनिया ब्लॉग
नव-वर्ष की मंगल कामनाएं ||
ReplyDeleteधनबाद में हाजिर हूँ --
अंतर्द्वान्दीय कर्फ्यू ...
ReplyDeleteकविता कर्फ्यू में नहीं फसेगी
कोई फ़िक्र नहीं, कविता बड़ी सख्तजान है..सब कुछ झेल कर भी सुरक्षित निकल आयेगी...
ReplyDeleteगहन एहसास ......
ReplyDeleteशब्द शब्द बेजोड़...बधाई
ReplyDeleteनीरज
बेहतरीन और गहन भावों से सजी हुई रचना ...
ReplyDeleteबेहतरीन भाव संयोजन ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति, अच्छी रचना,
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट " जाके परदेशवा में भुलाई गईल राजा जी" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । नव-वर्ष की मंगलमय एवं अशेष शुभकामनाओं के साथ ।
ReplyDeleteअमृता जी,
ReplyDeleteयह गज़ब मत कीजिएगा .
कलम को मत रोकियेगा.
आपके कितने पाठक जां बहक हो जायेंगे.
कविता बाहर आने का रास्ता खोज ही लेती है.संक्रमण काल से गुजरने के दौरान व्यक्ति की तरह कविता भी निखरती है.अगर कविता की सीमा दिख रही हो तो निबंध ,रेखाचित्र या अन्य विधाओं का सहारा लिया जा सकता है.असामाजिक विचारों की बात और कर्फ्यू का रिश्ता पूरी तरह समझ में नहीं आया.
ReplyDeleteजीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ा नया ब्लॉग 'बेसुरम' और उसकी प्रथम पोस्ट 'दलितों की बारी कब आएगी राहुल ...' आपके स्वागत के लिए उत्सुक है। कृपा पूर्वक पधार कर उत्साह-वर्द्धन करें
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब... मन के उद्दवेलन को बड़ी खूबसूरती से पेश करती रचना..
ReplyDeleteआभार..
vaah , man mein curfew..
ReplyDeletenovel idea..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
कड़े से कड़े कर्फ्यू में भी ढील दी जाती है......हम इंतज़ार करेंगे|
ReplyDeleteबहुत सुंदर अहसासों की प्रस्तुति,मगर मुझे कर्फ्यू से डर लगता है
ReplyDeleteकारण १२ घंटे तक कर्फ्यू में फसा रहा,मुशिकल से जान छुटी...
WELCOME to new post--जिन्दगीं--
रचना से प्रभावित होकर मै आपका समर्थक बन रहा हूँ,निवेदन है कि आप भी बने,तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,....
ReplyDeleteWELCOME to new post--जिन्दगीं--
कविता को बचाने के लिए कलम को रुकने की नहीं , चलने की जरुरत है.... !! एक अच्छी प्रस्तुति.... :)
ReplyDeleteHe kalam chalti rahni chahiye tabhi ye karfu khatam Bhi hoga .... Umda rachna ...
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना !
अरे बाप रे बाप!
ReplyDeleteकहाँ से आये ये असमाजिक विचार.
अब तो बम निरोधक यंत्र की भी जरुरत पड़ेगी जी.
भीतर की अशांति पर भी कर्फ्यू लगाना पड़ता है. सुंदर कविता.
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