एक ही फरमा में
भली-भांति कसकर
कितनी कुशलता से
सभी सम्पादित करते हैं
दैनंदिन दैनिक-चर्या
सेंटीमीटर , इंच से
नाप - नाप कर..
कांटा - बटखरा से
तौल - तौल कर..
रात को शुभरात्रि
कहने से पहले ही
करते हैं हिसाब-किताब
नफ़ा - नुकसान का
वही चित्रगुप्त वाला
बही-खाता पर
वही-वही लेखा-जोखा....
भावी योजना पर विचार
ज़रूरी फेर - बदल
कुछ ठोस उपाय
कुछ तय - तमन्ना
कल को और
बेहतर बनाने का....
आँख लगने के पहले ही
आँख खुलने के बाद के
कार्यक्रम को तय करना...
वाह रे ! माडर्न युगीन
मशीनी मानव
फिर -फिर
खुद को ही
फ़रमान जारी करते रहो
उसी फिक्स फरमा में
फिर से फ़िट होने का .
bahut achhaa prashn uthaayaa aapne
ReplyDeletejanm se ant tak yah karo yah naa karo
yah nahee karoge to anarth ho jaayegaa
yah karoge to swarg mil jaayegaa
in sab ke farmo mein insaan ko fit kar diyaa jaataa
apnee ichhaa se jee nahee paataa
समाज और देश के फरमों में कसा मानव जीवन
ReplyDeleteha ha ha bahut hi accha farma hai !! bahut sundar mem really ...insaani farma !!
ReplyDeleteadhunik jeevan ka sunder khaka khincha hai aapne.......
ReplyDeleteयह ख़ास अंदाज आपका ही है लिखने का .... बहुत अलग सा , बहुत बढ़िया
ReplyDeleteसार्थक प्रसन...
ReplyDeleteआज की रोबोटीय ज़िन्दगी के रोजनामचे की सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteऔरों से क्या रहते खुद से ही अलसाए लोग ,
बने बनाए सांचे लेके फिरतें हैं बौराए लोग .
जो फिट है वो हिट है...फरमे में कसे जाने पर ही जीवन निखरता है...
ReplyDeleteवक़्त के साथ चलना है कल को बेहतर बनाना है, तो भावी योजना पर विचार करना ही होगा... अच्छा अंदाज़
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने....
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.com
सच में...कभी नियमों को तोड़ कर भी तो जिया जाये...
ReplyDeleteये जीना भी कोई जीना है ???
बेहतरीन रचना.
आज सब रोबोट बन गए हैं और फरमें में फिट हो जाते हैं ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबढिया रचना।
ReplyDeleteवक्त किसी के लिए नहीं रूकता इसलिए इसका कद्र करना जरूरी है।
बहुत कुछ बांधते नापते फरमे ......सशक्त रचना
ReplyDeleteमाया, महा ठगिनी ...
ReplyDeleteकितनी प्रोत्साहन देती पंक्तियाँ है...... बहुत बढिया रचना
ReplyDeleteसच है .....वही फर्मा ...उसी में फिर फिट होने की जद्दोजहद में ही जीवन बीत रहा है ....!!
ReplyDeleteइसी तरह की फिटनेस सारे समाज में है.सफलता की चढ़ाई के लिए जरुरी है कि फिटनेस के खांचे में ही रहा जाए..इसमें वही लोग नहीं समा पाते जो या तो फिटनेस के खांचे से ज्यादा मोटे होते हैं..या जो विद्रोही होते हैं...अधिक मोटे लोग पिछडते रहते हैं और विद्रोही खत्म कर दिए जाते हैं.....हैरानी है कि खांचा में फिट होते रहने को लेकर फिर भी मारामारी कम नहीं होती....
ReplyDeletesach kaha aapne...bahut achchi prastuti :)
ReplyDeleteमिश्री की डली ज़िंदगी हो चली
लाजबाब ,बहुत कुछ कह दिया |
ReplyDeleteअमृताजी, आपने तो कितनों की दुखती रग पर हाथ रख दिया...
ReplyDeleteआखिरी पंक्तियाँ इस पूरी पोस्ट की जान है......मशीनी मानव......बिकुल सही शब्द दिया है आपने इस मॉडर्न युगीन मनुष्य को..........सुन्दर पोस्ट|
ReplyDeleteये ही सच है ...आज के वक्त का आईना
ReplyDeleteAmrita ji .......bilkul alag andaj aur prabhavshali rachana likhi hai apne ...badhai sweekaren .
ReplyDeleteफरमा को सही ही होना चाहिए .
ReplyDeleteफरमा हमारा मानक स्वरुप तय करता है .
हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट हो तब आनंद भी दुगुना होता है .
सुन्दर संवेगात्मक रचना के लिए बधाई
wah sunder prastuti .........alag andaj me alag sawal , alag khayal . badhai .
ReplyDeleteफरमा का फरमान बढ़िया लगा.
ReplyDeleteबधाई.
शानदार प्रस्तुति ! आज के मशीन होते जा रहे मानव की विवशता का सुन्दर चित्रण.
ReplyDeleteआभार.
..और दैव संजोग से फरमा में फिट होने वाला कवि ह्रदय हो तब तो उसे बेचैन रहना ही है।
ReplyDeleteबहुत ही प्रशंसनीय प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार्थक अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट....
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
जीवन को यंत्रवत हमने ही बना डाला है.बहुत ही यथार्थवादी रचना.कदम-कदम पर पैमाना, नापजोख, लेखाजोखा.
ReplyDeleteलकीर का फ़कीर बनने के फायदे इतने हैं
ReplyDeleteकि इंसान सिर्फ "फरमे" में सेट होने से ही संतुष्ट नहीं होता
फरमे को मजबूत बनाने के जतन भी करता है
इसे कमजोर बनाने वालों के खिलाफ भी रहता है
अगर वे सफल हुए तो मन मारकर तारीफ़ भी करता है.
एक बेहतर विचार के साथ आने की अच्छी कोशिश. स्वागत है.
आज का आदमी इसके सिवा और कर ही क्या सकता है।
ReplyDeleteप्रभावशाली कविता।
गहन प्रश्न उठाती कविता...
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति। धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रस्तुति........जन-मानस के मन की बात । अति उत्तम रचना :))
ReplyDeleteआज के मुकाबले भविष्य में बेहतर करना एक आवश्यकता बन गई है ताकि व्यक्ति दुनिया के बाज़ार में टिक सके. फ़रमे की सीमाएँ तो रहेंगी.
ReplyDeleteफरमा होंने के फायदे हैं और नुक्सान भी पर... छटपटाहट बखूबी व्यक्त की आपने
ReplyDeleteफर्में में फंसे
ReplyDeleteकैसे निकलें.
आत्मानुभूति करते हुए तन्मय होना ही इसका उत्तर है.
आज तक कहाँ बन पाया है बेहतर कल ?
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