अतृप्त अतीत ने
परिचय बताने से
क्या इनकार किया
कि भारग्रस्त भविष्य भी
पाला बदल कर हो लिया
अतीत के साथ ...
पहले रंग के पहले का
व सातवें रंग के बाद के रंग को
मिल गया सुनहरा मौका
चाँदी काटने का और
चहक कर भर लिया है
अपने अँधेरे आलिंगन में
इस आज को...
स्पर्श इन्द्रियाँ फड़फड़ा रही है
अपने ही दीवारों के अन्दर..
वीरानी पलकों में ही
सपनों के दर्प टूट रहे हैं..
यादों के हिमखंड भी
हिमरेखा पर पिघल रहे हैं...
सांसों के गाँव में
मरघट सा सन्नाटा है..
संबंधों-अनुबंधों के बीच
स्मृति-धागा टूट सा गया है..
भरे बाज़ार ने खोटे सिक्के को
संदेह की नजरों में घेर लिया है..
जिसे देखकर
उदासी की छाँव भी चुपचाप
अपने में सिमट गयी है..
उफ्फ़ ! मुश्किल हो रहा है
व्यर्थता के बोध को संभालना..
अब क्या करना चाहिए...?
चलो समेटा जाए
सुन्दर भ्रांतियों के सूक्ष्म संवेगों को...
बस मिल तो जाए
ये खोया हुआ ' आज '
तो अतीत-भविष्य को
धोबी-पाट लगा ही देना है
उनका नकेल कसकर
अपने हाथ में करके उन्हें
बस अपने हिसाब से चलाना है .
अमृता जी, क्या ऐसा नहीं है कि अतीत तो खो गया,भविष्य अभी आया ही नहीं... जिसका अस्तित्त्व ही नहीं उसे अपने हाथ में करेंगे कैसे उन्हें अपने हिसाब से चलाएंगे कैसे... जो भी है आज ही है..अभी ही है...बस देखना भर है...
ReplyDeleteबस मिल तो जाए
ReplyDeleteये खोया हुआ ' आज '
तो अतीत-भविष्य को
धोबी-पाट लगा ही देना है
उनका नकेल कसकर
अपने हाथ में करके उन्हें
बस अपने हिसाब से चलाना है .
सच है लोग या तो अतीत में जीते हैं या भविष्य का ख्याल रखते हैं ..अप जो आज है उसे भूल जाते हैं .. विचारणीय रचना
सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteजीवन की नकेल अपने हाथों में ही हो।
ReplyDeleteजब आज खो जाता है ...कर्म खो जाता है ,मन की वेदना का अंत नहीं होता ........!!
ReplyDeleteप्रबल रचना .
बहुत सही लिखा है आपने ....बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअमृता जी आप और आपकी कवितायेँ.........सलाम है |
ReplyDeleteaap achha likhti hain ... lock n lagayen , mujhe kai baar zarurat padti hai
ReplyDeleteखोया हुआ आज कल अतीत हो जाएगा और अतीत को पकडा नहीं जा सकता।
ReplyDeleteआपका मन किन गहराईयों मे डुबकी
ReplyDeleteलगा आता है यह आप ही जाने या फिर
राम जाने.
तभी तो संगीता जी कह रहीं हैं 'विचारणीय'
सुषमा जी कह रहीं हैं 'सशक्त,प्रभावशाली'
रविकर जी 'खूबसूरत' अनुपमा जी 'प्रबल'
रेखा जी 'बेहतरीन' और इमरान अंसारी जी
तो 'सलाम'फर्मा रहे हैं.
मैं तो फिर से 'तन्मय' ही कहूँगा जी.
अत्यंत सशक्त और प्रभावशाली रचना ...
ReplyDeleteकविता की शुरुआती पंक्तियाँ एक रहस्यमयी तस्वीर की रचना करती हैं
ReplyDeleteऔर भाव तो हमेशा की तरह सुन्दर हैं ही
nice poem
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुतिकरण।
behtareen abhivyakti...bahut sahi likha hai mam
ReplyDeleteमन भर आया .सूखे बदल बरसे तो कैसे.पल पल में ,अतीत आज और कल में और सिमटती जा रही आकांचा .कही दूर छितिज से उठता रंग बिरंगे भाव बादल और बिखरता बिखरता शुन्य में .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है |
ReplyDeleteचलो समेटा जाए
ReplyDeleteसुन्दर भ्रांतियों के सूक्ष्म संवेगों को..
बस मिल तो जाए
ये खोया हुआ 'आज'
तो अतीत-भविष्य को
धोबी-पात लगा ही देना है
उनका नकेल कसकर
अपने हाथ में करके उन्हें
बस अपने हिसाब से चलाना है.....!!
सही कहा....
अब तो मज़ा अपने हिसाब से ही चलने में है...!
सुन्दर अभिव्यक्ति...!!
बहुत खूबसूरत बात........
ReplyDeleteअतीत और भविष्य के द्वंद से जूझते मन की व्यथा को अभिव्यक्ति मिल रही है. वर्तमान में पूरी तरह जीना बहुत मुश्किल है. आइन्स्टीन ने अपने एल लेख में कहा कि वर्तमान (या पल) कुछ भी नहीं है. जब तक कोई अनभूति या घटना हमारे संज्ञान में आती है वह अतीत का हिस्सा बन जाती है. तो फिर क्षण(वर्तमान) कहाँ है? अतीत और भविष्य के संयुक्त वियाबान में भटकने वाला मन अपने वर्तमान में जीने का रास्ता खोज ही लेता है. मै यह नहीं कहता कि जो भी है बस यही एक पल है... मेरा मानना है जिंदगी एक निरंतरता या प्रवाह का नाम है. जिसके टूटने पर हम तड़फते हुए,उस प्रवाह को फिर से पाने की कोशिश करते हैं.साथ ही कभी-कभी तो नया प्रवाह भी तलाशते है....व्यर्थयता के बोध से जूझने के लिए. इस सुन्दर रचना का स्वागत है.
ReplyDeleteसुन्दर भावमयी गहन अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संवेदनशील रचना..
ReplyDeleteबहुत खूब !गहन हृदय की सम्वेदनाओं से प्रस्फुटित झरने सा आवेग है इस रचना में ...
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteसच है भविष्य भूत पर नकेल कसी जाये कि वर्तमान रोंदा ना जाये...
बहुत सुन्दर रचना..
वाह! स्वप्न न टूटे तो सत्य आरम्भ नहीं होता! असतो मा सद्गमय ...
ReplyDeletebahut sunder rachna
ReplyDeleteअतीत को गंगा में विसर्जित कर आज में जी लें , लेकिन भविष्य का मोह नहीं छुटता..... :)
ReplyDeleteउत्तम रचना..... !!
कल 14/1/2012को आपकी पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बढ़िया शब्द विन्यास, अच्छी अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteशुभकामनायें !
अप्रतिम प्रस्तुति सदी की मानिंद .आभार आपकी ब्लॉग टिपण्णी के लिए .
ReplyDeleteबहुत गहन चिंतन...इसी आज को तो पकड़ कर रखना मुश्किल होता है..सदैव की तरह उत्कृष्ट प्रस्तुति..
ReplyDeleteउत्कृष्ट....
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