Social:

Saturday, January 7, 2012

तरंगों में...


मेरे आशा के अनुरूप
सुलझाया तुमने
आपस में उलझे
मेरे अव्यक्त विचारों को
न चाह कर भी
उलझ रहे हैं उन्हीं में
मेरे अहसास...
अब न जाने क्यूँ
मौन होकर तुम
सुलझाना चाहते हो मुझे
जबकि उसे भरते-भरते
और भी मैं
उलझ ही रही हूँ...
अभिव्यक्ति दो तो
परिणति चाहता
वो परितप्त विचार
मुक्त हो सके
उन्मुक्त गगन में...
मौन तो होना ही है
चाहे सो जाए
चाँद की गोद में
या छू ले
उस दहकते सूरज को...
पर प्रिय !
रोक सकते हो तो रोक लो
उन तरंगो को
जो तुमसे निकल कर
आती है मुझतक...
तुम मुझे
अपने तरंगो में
इसतरह उलझा कर
कितना सुलझाओगे
या मुझसे भी
निकलती तरंगो में
तुम भी
मेरी तरह ही
उलझ जाओगे..?

39 comments:

  1. रोक सको तो रोक लो उन तरंगो को.........बहुत ही सुन्दर है ये पंक्तियाँ ......लाजवाब पोस्ट|

    ReplyDelete
  2. शानदार भाव संयोजन्।

    ReplyDelete
  3. nice lines amrita
    check out my blog also
    http://iamhereonlyforu.blogspot.com/

    ReplyDelete
  4. सुलाझ्कर भी उलझते विचार ... गहरे अर्थ बताते हैं

    ReplyDelete
  5. par priy......
    meri tarah ulajh jaoge

    bahut sunder likha hai.

    shubhkamnayen

    ReplyDelete
  6. तरंगें भी खूब सुलझन उलझन करती रहती हैं जी.
    तरंगों के कारण और उद्गम को ही समझा जाये फिर तो.

    सुन्दर तरंगित करती प्रस्तुति है आपकी.

    ReplyDelete
  7. प्रेम की संभावना ही प्रेरणा है !
    और मौन ही प्रेम होता है

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर गहरे भाव... न वह उलझाना चाहता है न वह उलझता है... वह तो साक्षी बना बस दूर से तकता रहता है...हमारी हर तरंग को देखते हुए...

    ReplyDelete
  9. “मौन तो होना ही है
    चाहे सो जायें
    चाँद की गोद में
    या छू लें
    उस दहकते सूरज को...

    गहनाभिव्यक्ति....
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  10. पर प्रिय !
    रोक सकते हो तो रोक लो
    उन तरंगो को
    जो तुमसे निकल कर
    आती है मुझतक...

    बेहतरीन पंक्तियाँ।

    सादर

    ReplyDelete
  11. गहरी सोच ..!
    उम्दा रचना !
    आभार !

    ReplyDelete
  12. अभिव्यक्ति सुलझने की और इशारा करती है,
    मौन हो जाना उलझने की निशानी है.

    बहुत ही दार्शनिक अभिव्यक्ति.
    शुभ कामनाएं.

    ReplyDelete
  13. उलझ उलझ कर सुलझना और सुलझ सुलझ कर उलझना ही जीवन है॥

    ReplyDelete
  14. एक बार फिर आपकी कलम ने अपना लोहा मनवाया है...कमाल की रचना...बधाई...

    नीरज

    ReplyDelete
  15. तरंगें किनारों पर स्थिर हो जाती हैं।

    ReplyDelete
  16. तुम मुझे
    अपने तरंगों में
    इस तरह उलझाकर
    कितना सुलझाओगे
    या मुझसे भी
    निकलती तरंगों में
    तुम भी
    मेरी तरह ही
    उलझ जाओगे.....?
    प्रभावशाली पंक्तियाँ.......

    ReplyDelete
  17. आपकी कविता "तरंगों में" काफी अच्छी लगी । आपने भावों को घनीभूत कर दिया है । मेरे नए पोस्ट " तुम्हे प्यार करते-करते कहीं मेरी उम्र न बीत जाए " पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  18. उन्मुक्त गगन में मौन तो होना ही है....


    सच अमृता... आपने कितना सुन्दर लिखा है ... राहुल

    ReplyDelete
  19. suljhaane ke chakkar mein hi kuchh log buri tarah ulajh jaate hain.....!

    bahut sundar rachna...

    ReplyDelete
  20. Adrishya tarangon ko chhoo lene waalee samvedansheelta aur maun mein machalte saagar kee kahani.
    Amrit mein tanmay karne waale gantavya kee kavymayee seedhiyan
    badhaaee

    ReplyDelete
  21. समय .......!!
    मन उलझता भी है ...और सुलझाता भी है ....क्योंकि मौन रह कर भी तरंगे तो मौन नहीं हैं न ...वो तो पहुँच ही रहीं हैं आप तक उसकी और उस तक आपकी ...तभी तो इतनी सुंदर रचना बन पड़ी ....
    बहुत ही सुंदर रचना ...!!
    खिल गया पढ़ कर मन ...!!

    ReplyDelete
  22. उलझने-सुलझने के गोरखधंधे में निबहती जिंदगी.

    ReplyDelete
  23. सुकोमल विचारों की सुंदर अभिव्यक्तिं

    ReplyDelete
  24. lajabab prsatuti ......mn ke tarang to samane khade vykati ko prabhavit karte hi hain.....abhar Amrita ji .

    ReplyDelete
  25. अच्छी लगी आपकी यह रचना. मन की उड़ान को कौन रोक सकता है?

    ReplyDelete
  26. सुन्दर, दार्शनिक मनोभाव - आभार.

    ReplyDelete
  27. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    ReplyDelete
  28. गहन उलझनों में सुलझे विचार..बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  29. खूबसूरत भाव ,खूबसूरत एहसास ...

    ReplyDelete
  30. नया साल मुबारक हो.....एक बात बताईए इतना बढ़िया लिखती कैसे हैं आप....

    ReplyDelete
  31. किसी ने कहा था " रोक सको , तो रोक लो मन की उड़ान को " ,
    उसके काफी करीब आपकी रचना.... !!
    मन उलझाता भी है , सुलझाता भी है.....!!!!

    ReplyDelete
  32. बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !

    ReplyDelete
  33. गहन भावों से भरा कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

    ReplyDelete
  34. सुंदर अभिव्यक्ति बहुत सुंदर भावों की बढ़िया रचना,....बधाई
    welcom to new post --"काव्यान्जलि"--

    ReplyDelete
  35. उलझने की आशंका उलझन ही है. यह नहीं है तो आशंका भी नहीं है. बहुत सुंदर कविता.

    ReplyDelete