हर तूफान से जीत जाना है
हैया-हो , हैया-हो गाना है
नहीं गिरने में क्या सौरभ
गिर कर उठने में है गौरव
जितना आये बाधा रौरव
ललकारे हैया-हो का आरव
विकराल सा भँवर का डर
घेरता रहे कहीं से आकर
जीतना है उन से लड़ कर
हैया-हो , हैया-हो गा कर
लहरों में बस उतर आना है
तूफानों के बीच में जाना है
सदा पतवार को चलाना है
हैया-हो , हैया-हो गाना है
किनारे पर है सूखा सौन्दर्य
निर्जीव शांति,निष्क्रिय धैर्य
लहरों से खेलने में है शौर्य
तब हैया-हो देता है ऐश्वर्य
जिसे लहरों में उतरना आता
उस साहस से सब है थर्राता
लहरों के पार वही है जाता
और झूम के हैया-हो है गाता
हर तूफान से जीत जाना है
हैया-हो , हैया-हो गाना है .
रौरव - भयंकर
आरव - तीव्र ध्वनि
behtreen kavy....samst shringar liye..
ReplyDeletemere blog par aapka intjaar rahega..
अदम्य साहस देती हुई ....थकन भगाती हुई ....बस कूद पड़ो ...जोश से भरी बहुत सुंदर रचना ....मैंने गाना प्रारंभ कर दिया ...हैया हो ...हैया हो...
ReplyDeleteरक्त संचार को बढ़ाती रचना
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन शब्दों का संयोजन !
ReplyDeleteआपकी हैया हो...एक नई उर्जा भर रही है !
आभार !
वीरांगना अमृता की अलहदा कलम.....
ReplyDeleteआपकी ललकार पर कौन न मिट जाए......
मुझे आपकी इस रचना पर हमेशा गर्व रहेगा ............राहुल
Wah!!! Utsah se paripurn....makkam iradon wali kavita....
ReplyDeleteBehtareen...."Haiya ho, haiya ho gaana hai....."
सकारात्मक सोच के साथ लिखी गई प्रेरक रचना
ReplyDeleteजीवन ऐसे ही जोश और उत्साह में निकल जाये
ReplyDeleteलहरों में बस उतड़ आना है
ReplyDeleteतूफानों के बीच में जाना है
सदा पतवार को चलाना है
हैया-हो , हैया-हो गाना है
जीवन को प्रेरणा देती आपकी यह रचना निश्चित रूप से प्रासंगिक है .
लहरों में बस उतड़ आना है
ReplyDeleteतूफानों के बीच में जाना है
सदा पतवार को चलाना है
हैया-हो , हैया-हो गाना है
जीवन को हौसला और साहस देती आपकी रचना ....!
हैया हो ही तो एक सहारा होता है जब आदमी खून पसीना एक करके थक जाता है और मंज़िल की ओर बढ़ता जाता है।
ReplyDeleteपुरुषार्थ के प्रति...एक रचना...
ReplyDeleteमन में उत्साह भरती अच्छी रचना .
ReplyDeletesunder abhivyakti ......maan ka uttsah badhai hui .
Deleteआपकी इस रचना में आपके अन्दर के उत्साही इंसान की झलक मिलती है. एक पल को तो मै हैरान रह गया.यूँ लगा जैसे ख़ामोशी से बहता कोई दरिया उछालें ले रहा हो. जो उसके स्वभाव के विपरीत लग रहा हो. इंसान के बारे में कोई धारणा बनाना सही नहीं है. यह जानने के बावजूद भी हम उसकी कोई न कोई छबि अपने मन में बना ही लेते हैं. कुछ नया पढकर और आपके एक नए पहलू से रूबरू होकर अच्छा लगा. इस रचना से मुझे अतीत के दिनों की याद हो आई. जब मै खुद अपने आप से और अपने आस-पास के परिवेश से संघर्ष करते हुए आगे बढ़ रहा था. शुक्रिया उन दिनों की याद दिलाने की लिए..
ReplyDeleteउत्साह का संचार करती रचना ....
ReplyDeleteएक नए उत्साह का संचार करती सुंदर प्रस्तुति लगी. बधाई.
ReplyDeleteउत्साह के बिना सब कुछ नीरस है....
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना।
जीत जाने की भावना प्रशंसनीय है. बहुत बढ़िया रचना.
ReplyDeleteआप की कविता तो मुर्दों में भी नवजीवन का संचार कर देगी .हम सभी अक्षय उर्जा के ही तो प्रतिरूप है .यह जो इर्द गिर्द निराशाओं के बदल फैले हुए हैं वह तो हमारे मन के अधोगामी प्रभाव के चलते ही है.एक जोर का हैया हो और जीवन फिर आशा से परिपूरन और दिखाती हुई कठिनाइय बर्फ की मानिंद पिघलती हुई.आशा है आपकी कविता मानवता को जीने की सन्देश दे गी .मकर संक्रांति की शुभ कामनाओं के साथ.
ReplyDeleteआप की कविता तो मुर्दों में भी नवजीवन का संचार कर देगी .हम सभी अक्षय उर्जा के ही तो प्रतिरूप है .यह जो इर्द गिर्द निराशाओं के बदल फैले हुए हैं वह तो हमारे मन के अधोगामी प्रभाव के चलते ही है.एक जोर का हैया हो और जीवन फिर आशा से परिपूरन और दिखाती हुई कठिनाइय बर्फ की मानिंद पिघलती हुई.आशा है आपकी कविता मानवता को जीने की सन्देश दे गी .मकर संक्रांति की शुभ कामनाओं के साथ.
ReplyDeleteजीवन के सकारात्मक पहलू को स्पर्श करती रचना
ReplyDeleteहैय्या हो ....
सुन्दर शब्दों से सजी सुन्दर रचना.
ReplyDeleteशब्द चयन लाजवाब.
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDeleteBAHUT HI URJA KA SANCHAR KARANE WALI RACHANA LAGI AMRITA JI BAHUT BAHUT BADHAI.
ReplyDeleteदिल में जोश जगाती बहुत बढि़या कविता।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है बधाई।
ReplyDeleteजोश जगाती उत्साह बढाती जीवन संचार बढाती बेहतरीन सुंदर रचना,...
ReplyDeletenew post--काव्यान्जलि --हमदर्द-
उत्साह का संचार करती बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteवाह..! उत्साहवर्धक कविता..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..
kalamdaan.blogspot.com
जोश और होश बना रहे तो जीवन एक उत्सव बन जाता है...बहुत सुंदर कविता !
ReplyDeleteइतना उत्साहित किया इस कविता ने की मै उद्दिग्नता भुलाकर चला आया . आभार
ReplyDeleteमाफ़ कीजिये मुझे पसंद नहीं आई ये पोस्ट :-(
ReplyDeleteप्रभावशाली एवं सशक्त रचना बधाई...
ReplyDeleteजोर लगाओ हे हिस्सा ,जोर लगाओ ओ हिश्षा का यही मूल मन्त्र है सामूहिक ऊर्जा जागृत होती है इस सम्मिलित स्वर से .बड़े से बड़ा लठ्ठा उठा लेतें हैं श्रमिक इस नाद से .सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रेरणादायी सुंदर रचना..
ReplyDeleteजोश जगाती सुंदर रचना,...
ReplyDeleteवाह बहुत खूब.. उम्दा
मैं आपको मेरे ब्लॉग पर सादर आमन्त्रित करता हूँ.....
सुन्दर सशक्त रचना..
ReplyDeleteआपके हर पोस्ट नवीन भावों से भरे रहते हैं । पोस्ट पर आना सार्थक हुआ। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteलहरों में बस उतडना है जिसे, लहरों में उतडना आता है ,यदि उतडना जन भाषिक प्रयोग नहीं है तो उतरना कर लें .
ReplyDeleteलहरों में बस उतड आना है है जिसे, लहरों में उतडना आता है ,यदि उतडना जन भाषिक प्रयोग नहीं है तो उतरना कर लें .उतर आना कर लें .चढ़ना और उतर ना प्रयुक्त होतें हैं .
ReplyDeleteदैया-हो!
ReplyDeleteकितनी उर्जा देता है
हैया-हो!!
..बहुत अच्छी लगी यह कविता भी।
गजब,अदभुत,लाजबाब
ReplyDeleteहैया हो,हैया हो
आपने तन्मय के साथ विस्मय कर दिया.
लगता है जोश का सागर ही उमड़ आया हो.
शानदार प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
बहुत ही सुन्दर भाव भीनी कविता
ReplyDeleteमैं गोताखोर मुझे गहरे जाना होगा
तुम तट पर बैठ भंवर की बातें किया करो
भवानी प्रसाद मिश्र जी की लाइन आपको भेंट